सम्पादकीय : भारतीय अंतरिक्ष अभियानों के लिए मील का पत्थर
अंतरिक्ष में अठारह दिन बिताने के बाद धरती पर लौटे भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सही ही कहा है कि आपने करोड़ों सपनों को प्रेरित किया है।


मन में दृढ़ संकल्प और दिल में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो कामयाबी सिर चढक़र बोलती है। अंतरिक्ष में अठारह दिन बिताने के बाद धरती पर लौटे भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सही ही कहा है कि आपने करोड़ों सपनों को प्रेरित किया है। अंतरिक्ष में विभिन्न अध्ययनों के बाद शुभांशु की धरती पर वापसी न केवल भारत के लिए बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि है बल्कि यह सदैव याद रखने लायक भी बन गई है। शुभांशु शुक्ला और एक्सिओम-4 मिशन के तीन अन्य अंतरिक्ष यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आइएसएस) से पृथ्वी पर लौटे तो यह सभी के लिए गर्व का क्षण बन गया।
ड्रैगन अंतरिक्ष यान के कैलिफोर्निया के सैन डिएगो में उतरने वाला पल भारतीय अंतरिक्ष अभियानों के लिए भी मील का पत्थर साबित हुआ है। शुभांशु ने अंतरिक्ष में रहकर साठ से ज्यादा प्रयोग किए, जिनमें मानसिक स्वास्थ्य और अंतरिक्ष में फसल उगाने जैसे शोध शामिल थे। भारत के आने वाले गगनयान मिशन और भविष्य के अन्य अंतरिक्ष अभियानों के लिए निश्चित ही यह उपलब्धि नया मार्ग तय करने वाली होगी। भारत के लिए यह पल उपलब्धियों भरा इसलिए भी है क्योंकि 41 साल बाद कोई भारतीय अंतरिक्ष में पहुंचा था। जिस ग्रेस यान से शुभांशु तीन अन्य सहयात्रियों के साथ धरती पर लौटे, वह 580 पाउंड (लगभग 263 किलोग्राम) सामान लेकर लौटा, जिसमें नासा का हार्डवेयर, प्रयोगों का डेटा और इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आइएसएस) का कुछ कचरा शामिल है। आइएसएस पर अपने प्रवास के दौरान शुभांशु ने कुछ ऐसे सैम्पल भी लिए हैं, जो भविष्य में बड़े अंतरिक्ष अभियानों के लिए भोजन, बॉयोफ्यूल व ऑक्सीजन का स्रोत बन सकते हैं। अंतरिक्ष यात्री वातावरण मेें कैसा महसूस करते हैं और उसके साथ कैसे तालमेल बनाते हैं, यह भी इस यात्रा में होने वाले शोध का हिस्सा रहा है। सही मायने में अंतरिक्ष से पृथ्वी पर वापस लौटने की जटिल प्रक्रिया है, जिसमें बाधाएं आने का खतरा सदैव बना रहता है। स्पेसक्राफ्ट का आइएसएस से जुडऩा जितना जटिल है उतना ही जटिल उससे अलग होना भी है। वैसे भी जब भी कोई वस्तु पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती है तो गुरुत्वाकर्षण और प्रतिरोध समेत कुछ दूसरे बल भी काम करते हैं।
उम्मीद है कि यह मिशन भारत को अंतरिक्ष, विज्ञान और तकनीक में नई उपलब्धियां दिलाने वाला होगा। उम्मीद यह भी की जानी चाहिए कि शुभांशु शुक्ला का यह अनुभव इसरो की ओर से अंतरिक्ष विज्ञान से जुड़े प्रयोगों को और मजबूती देने वाला होगा। सही मायने में भारत की अंतरिक्ष में बढ़ती भूमिका को इस उपलब्धि से न केवल मजबूती मिली है बल्कि वैश्विक शक्ति के रूप में हमारी धाक भी कायम हुई है। भविष्य में अंतरिक्ष में जाने वाले भारतीय यात्रियों के लिए यह एक सुखद संकेत है।
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