संपादकीय : पूर्वोत्तर में बांग्लादेश की हलचल पर नजर जरूरी
सरकार ने उत्तर-पूर्वी राज्यों (असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम) के जमीनी मार्गों के जरिए बांग्लादेश से भेजे जाने वाले कई सामानों पर पाबंदी लगा दी है। ये मार्ग बांग्लादेश के लिए अहम व्यापारिक गलियारे थे। भारत ने बांग्लादेश के उन सभी सामानों पर भी प्रतिबंध लगाया है, जो उत्तर-पूर्वी राज्यों के जरिए तीसरे देशों को निर्यात […]


सरकार ने उत्तर-पूर्वी राज्यों (असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम) के जमीनी मार्गों के जरिए बांग्लादेश से भेजे जाने वाले कई सामानों पर पाबंदी लगा दी है। ये मार्ग बांग्लादेश के लिए अहम व्यापारिक गलियारे थे। भारत ने बांग्लादेश के उन सभी सामानों पर भी प्रतिबंध लगाया है, जो उत्तर-पूर्वी राज्यों के जरिए तीसरे देशों को निर्यात किए जाते थे। एक अनुमान के मुताबिक भारत के इस फैसले से बांग्लादेश को सालाना 5800 करोड़ रुपए के कारोबार से हाथ धोना पड़ सकता है। पिछले साल शेख हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के भारत विरोधी रुख को देखते हुए यह कड़ा फैसला जरूरी था। हालांकि सरकार का कहना है कि यह कदम बांग्लादेश के व्यापार को सीमित करने और भारत के कपड़ा, प्रोसेस्ड खाद्य जैसे स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देने के मकसद से उठाया गया है। यह कदम आत्मनिर्भर भारत नीति के अनुरूप है। नीति का लक्ष्य आयात पर निर्भरता कम कर स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देना है।
ताजा पाबंदियों से बांग्लादेश के रेडीमेड गारमेंट उद्योग पर गहरा असर पडऩे के आसार है। यह उद्योग उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। बांग्लादेश के गारमेंट निर्यात का बड़ा हिस्सा उत्तर-पूर्वी भारत के जमीनी मार्गों के जरिए होता था। इससे लागत और समय की बचत होती थी। अब निर्यात सिर्फ समुद्री मार्गों तक सीमित होने से बांग्लादेश के निर्यातकों को अतिरिक्त लागत और समय की परेशानी झेलनी पड़ेगी। भारत का अहम व्यापारिक साझेदार रहा बांग्लादेश सत्ता बदलने के बाद हमारे हितों की अनदेखी कर चीन और पाकिस्तान से दोस्ती बढ़ा रहा है। इसे देखते हुए भी उसे कड़ा संदेश देने की जरूरत थी।
बांग्लादेश भूल रहा है कि उसकी आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने के साथ भारत का उसके लोकतांत्रिक और आर्थिक विकास में भी बड़ा योगदान रहा है। वहां की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस ने एक तरफ कट्टरपंथियों को खुली छूट दे रखी है तो दूसरी तरफ चीन और पाकिस्तान के साथ मिलकर नए भू-राजनीतिक समीकरणों को हवा दे रहे हैं। बांग्लादेश में चीन निवेश भी बढ़ा रहा है और उसे सैन्य मदद भी दे रहा है। हाल ही चीनी अफसरों की एक टीम बांग्लादेश में लालमोनिरहाट में बन रहे एयरबेस का निरीक्षण करने पहुंची। यह बेस भारत की ‘चिकन नेक’ सिलीगुडी कॉरिडोर के करीब है।
पूर्वोत्तर भारत को दिल्ली से जोडऩे वाले इस कॉरिडोर पर यूनुस सरकार के बयान चिंता बढ़ाने वाले हैं। अगर बांग्लादेश के इस एयरबेस तक पाकिस्तान या चीन की वायुसेना की पहुंच होती है तो भारत के लिए यह भी चिंता की बात होगी। पाकिस्तान पहले भी बांग्लादेश के जरिए पूर्वोत्तर में अशांति की साजिश रच चुका है। भारत को पूर्वोत्तर की सीमा के पार चल रही बांग्लादेश की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखनी होगी। अपने सुरक्षा हित सुनिश्चित करने के लिए बांग्लादेश पर कूटनीतिक और रणनीतिक दबाब भी बढ़ाया जाना चाहिए।
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