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बांग्लादेश में चीनी दखल भारत के लिए चिंता का सबब

रेणु राणा, फैकल्टी, अंतरराष्ट्रीय अध्ययन, फ्लेम विश्वविद्यालय, पुणे, महाराष्ट्र  

जयपुरMay 26, 2025 / 06:33 pm

Sanjeev Mathur

बांग्लादेश में लालमोनिरहाट हवाई अड्डे के पुनरुद्धार से जुड़ी हालिया गतिविधियों ने भारत के लिए गंभीर रणनीतिक चिंताएं खड़ी कर दी हैं। यह हवाई अड्डा भारतीय सीमा से लगभग 12-15 किलोमीटर और सिलीगुड़ी कॉरिडोर से लगभग 135 किलोमीटर की दूरी पर रंगपुर डिवीजन में स्थित है। रिपोट्र्स के अनुसार, इसे चीनी सहायता से पुनर्विकसित करने पर विचार किया जा रहा है। मूल रूप से ब्रिटिशों द्वारा 1931 में बनाया गया यह एयरबेस द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मित्र राष्ट्रों-अमरीका, सोवियत संघ और यूनाइटेड किंगडम का एक अग्रिम आधार रहा। 1958 में पाकिस्तान ने इसे थोड़े समय के लिए नागरिक उड्डयन के लिए पुन: खोला था, लेकिन बाद में यह उपयोग में नहीं रहा। यह स्थल 1,166 एकड़ में फैला है, जिसमें एक चार किलोमीटर लंबा रनवे, एक हैंगर, एक बड़ा टरमैक और एक टैक्सीवे शामिल है। 2019 में, प्रधानमंत्री शेख हसीना के कार्यकाल के दौरान इस स्थल का एक हिस्सा आधिकारिक रूप से ‘बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान एविएशन एंड एयरोस्पेस यूनिवर्सिटी’ को आवंटित किया गया था। फरवरी 2025 में, बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने देश में छह ब्रिटिशकालीन हवाई अड्डों के पुनरुद्धार का प्रस्ताव दिया- जिसमें लालमोनिरहाट भी शामिल है। इसका उद्देश्य आर्थिक विकास को गति देना बताया गया। खबरों के अनुसार, हाल ही में चीनी अधिकारियों ने लालमोनिरहाट स्थल का दौरा किया है और ढाका सरकार इसके पुनरुद्धार के लिए बीजिंग से मदद मांग रही है।
यह संभावित सहयोग तब और स्पष्ट हो गया जब अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार मोहम्मद यूनुस 26 से 29 मार्च 2025 तक चीन यात्रा पर गए और उन्होंने हैनान में आयोजित बोआओ फोरम फॉर एशिया वार्षिक सम्मेलन में भाग लिया। इस यात्रा के दौरान यूनुस ने चीन से ढांचागत परियोजनाओं में अधिक निवेश का आग्रह किया, जिसमें तीस्ता नदी परियोजना भी शामिल थी। चीनी सरकार और लगभग 30 चीनी कंपनियों ने बांग्लादेश के विशिष्ट चीनी औद्योगिक आर्थिक क्षेत्र में 1 बिलियन डॉलर का निवेश, मोंगला बंदरगाह के आधुनिकीकरण के लिए 400 मिलियन डॉलर, चीन औद्योगिक आर्थिक क्षेत्र के विकास के लिए 350 मिलियन डॉलर और तकनीकी सहायता के रूप में 150 मिलियन डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई। शेष राशि अनुदान और अन्य ऋणों के रूप में दी जानी है। चीन बांग्लादेश का एक प्रमुख आर्थिक साझेदार बनकर उभरा है और दोनों देशों के बीच व्यापारिक लेन-देन अब 25 बिलियन डॉलर से अधिक का हो गया है। मार्च 2025 में चीन यात्रा के दौरान मोहम्मद यूनुस ने कहा, ‘यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम चीन को अपने अच्छे मित्र के रूप में देखें।’ 2006 से ही चीन बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है। व्यापार के अलावा, चीन अब बांग्लादेश का चौथा सबसे बड़ा ऋणदाता भी है और अवसंरचना विकास में एक महत्त्वपूर्ण भागीदार बन चुका है। दोनों देशों के बीच सैन्य संबंध भी गहरे हुए हैं और चीन अब ढाका का प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता बन चुका है।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, 2019 से 2023 के बीच पाकिस्तान के बाद चीन का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक बांग्लादेश रहा है। इस अवधि में बांग्लादेश के 72 प्रतिशत हथियार चीन से आयात किए गए थे। ये आंकड़े दिखाते हैं कि चीन का प्रभाव अब बांग्लादेश में आर्थिक और रक्षा दोनों क्षेत्रों में फैल चुका है। लालमोनिरहाट हवाई अड्डे में चीन की रुचि उसके आर्थिक और रणनीतिक लक्ष्यों के मेल को दर्शाती है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह हवाई अड्डा परियोजना बांग्लादेश को मार्च 2025 की चीन यात्रा के दौरान प्राप्त 2.1 बिलियन डॉलर के निवेश, ऋण और अनुदानों का हिस्सा है या नहीं, परंतु यदि यह शामिल होती है तो यह क्षेत्रीय जुड़ाव में बीजिंग के दृष्टिकोण के अनुरूप ही होगा। रंगपुर डिवीजन में स्थित यह एयरबेस अब चीन-बांग्लादेश सहयोग का एक प्रमुख केंद्र बनकर उभर रहा है। इसके आसपास के क्षेत्रों में चीनी कंपनियों ने पहले ही कई परियोजनाएं शुरू कर दी हैं, जिनमें कारखानों का विकास और एक सौर ऊर्जा संयंत्र का निर्माण शामिल है। इसके अतिरिक्त, पास में एक सैटेलाइट सिटी स्थापित करने की योजना भी बनाई जा रही है, जो उत्तरी बांग्लादेश में चीन की उपस्थिति को और अधिक स्थायी बनाएगी। यह स्थान भारत की सीमा के निकट होने के कारण रणनीतिक रूप से अत्यंत संवेदनशील बन जाता है। क्षेत्रीय अवसंरचना और संपर्क परियोजनाओं में चीन की भागीदारी इस संवेदनशीलता को और जटिल बना देती है।
हालांकि यह अब तक स्पष्ट नहीं है कि लालमोनिरहाट हवाई अड्डे का पुनर्विकास नागरिक या सैन्य उपयोग के लिए किया जाएगा, लेकिन भारतीय सीमा के इतने समीप किसी भी प्रकार की चीनी उपस्थिति भारत की रणनीतिक चिंताओं को बहुत अधिक बढ़ा सकती है- विशेष रूप से सिलीगुड़ी कॉरिडोर के संदर्भ में। ‘चिकन नेक’ के नाम से जाना जाने वाला यह 22 किलोमीटर चौड़ा सिलीगुड़ी कॉरिडोर भारत के लिए एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण भौगोलिक गलियारा है, जो देश को उसके पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ता है। यह न केवल नागरिक आवागमन के लिए बल्कि सैन्य रसद के लिए भी अत्यावश्यक है। इस गलियारे में किसी भी प्रकार की बाधा भारत की क्षेत्रीय एकता, सैन्य तत्परता और राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीर रूप से खतरे में डाल सकती है। 2017 का डोकलाम गतिरोध इस गलियारे की रणनीतिक कमजोरी को उजागर करता है। इसके बाद भारत ने इस क्षेत्र में अपने रक्षा ढांचे को सुदृढ़ किया है। यह बदलता हुआ परिदृश्य भारत के लिए एक जटिल सुरक्षा स्थिति उत्पन्न करता है- विशेष रूप से चीन और पाकिस्तान दोनों के बांग्लादेश के साथ मजबूत होते संबंधों की संभावित दोहरा मोर्चा चुनौती के रूप में व्याख्या की जा सकती है। यह उभरता हुआ भू-राजनीतिक समीकरण भारत के रणनीतिक संतुलन पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है और भारत को अपनी क्षेत्रीय सुरक्षा रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए बाध्य कर सकता है।

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