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नेतृत्व : वटवृक्ष देता मूल्य, धैर्य व नवजीवन की सीख

— प्रो. हिमांशु राय 
(निदेशक, आइआइएम इंदौर)

जयपुरMay 05, 2025 / 05:25 pm

विकास माथुर

प्रकृति सदैव उस जिज्ञासु मन के लिए गुरु की भूमिका निभाती रही है, जो ठहरकर देखना जानता है। अनेक प्रतीकों में, वटवृक्ष सशक्तता, प्रज्ञा और नेतृत्व का शाश्वत प्रतीक बनकर उभरता है। भारतीय संस्कृति में यह जीवन, निरंतरता और चेतन नेतृत्व का रूपक है। वटवृक्ष ने शांत, स्थिर व सजीव स्वरूप से पीढिय़ों का मार्गदर्शन किया है।
मूल्यों में स्थिरता: वटवृक्ष की जो विशालता ऊपर दिखाई देती है, उसका आधार गहराई में फैली उसकी जड़ें हैं। उसी प्रकार, एक सच्चे लीडर की समस्त क्रियाएं और निर्णय गहरे मूल्यों और अडिग निष्ठा में प्रतिष्ठित होने चाहिए।
विस्तृत छाया: वटवृक्ष एक लघु विश्व का प्रतीक है। इसकी विशाल छाया में पक्षी, पशु, पथिक और साधक सभी को स्थान मिलता है। यह हमें समावेशी नेतृत्व का पाठ पढ़ाता है। ऐसा नेतृत्व, जो विविधताओं को स्वीकार करता है, सहयोग को प्रोत्साहित करता है और ऐसा पारिस्थितिक तंत्र रचता है जहां प्रत्येक जीवित तत्त्व फलता-फूलता है। प्राचीन भारत में ग्राम सभाएं, सांस्कृतिक आयोजन और आध्यात्मिक चर्चाएं वटवृक्ष के नीचे होती थीं। यह वृक्ष लोकतांत्रिक और सहभागी संवाद का जीवंत प्रतीक रहा है।
दृढ़ता और पुनरुत्थान : वटवृक्ष की सबसे विलक्षण विशेषता है उसकी जमीन की ओर बढ़ती हुई जड़ें। जब शाखाएं फैलती हैं, तो वे बीच में से लटकती हैं, जो भूमि में समाहित होकर स्वयं स्तंभ बन जाती हैं। ये स्तंभ वृक्ष को और अधिक स्थायित्व व पोषण प्रदान करते हैं। यह स्थायी नेतृत्व का प्रतीक है। ऐसा नेतृत्व, जो शक्ति को संजोता नहीं, बल्कि दूसरों को भी जड़ें फैलाने, नेतृत्व करने और विकसित होने का अवसर देता है।
मौन शक्ति और सेवा : वटवृक्ष प्रदर्शन नहीं करता, वह उपस्थित होता है। स्थिर, विश्वसनीय, और देने वाले वृक्ष के रूप में। उसकी शक्ति उसकी मौन गरिमा में है, न कि शोर या प्रदर्शन में। वटवृक्ष सिखाता है कि सच्चा नेतृत्व केवल व्यक्तित्व से नहीं, चरित्र से उत्पन्न होता है स्थिरता, सेवा और मौन प्रभाव से। एक ऐसा युग जिसमें गति और प्रदर्शन ही सब कुछ मान लिया गया है, वटवृक्ष हमें सार की ओर वापस बुलाता है। यह हमें निमंत्रण देता है, गहराई में जड़ें फैलाने, विस्तृत आलिंगन देने व मौन में विकसित होने का। संभवत: इसी कारण ऋषि इसकी छाया में ध्यान करते थे, केवल शांति पाने के लिए नहीं, स्वयं वटवृक्ष बनने के लिए।

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