एक ऐसे समय में जब आगे बढऩे के तौर-तरीकों में विद्युत गति से बदलाव हो रहे हैं तो यह सवाल उठता है कि दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की आकांक्षा संजोने वाले भारत जैसे देश के लिए इसके क्या मायने हैं? नि:संदेह चुनौती दोहरी है। एक तरफ, हमें भौतिक आधारभूत संरचना के क्षेत्र में अपने पीछे रहने की भरपाई करनी है, जिसमें हम न केवल पश्चिमी विकसित देशों से बल्कि पिछले कुछ दशकों में इस क्षेत्र में तेज प्रगति करने वाले चीन जैसी उभरती शक्तियों से भी पीछे हैं। दूसरी तरफ, हमें प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए भविष्य की डिजिटल अवसंरचना का निर्माण करना होगा।
भारत की वर्तमान सरकार ने नई डिजिटल विश्व व्यवस्था की चुनौतियों और अवसरों को समझते हुए अर्थव्यवस्था के तेजी से डिजिटलीकरण पर जोर दिया है। यह न केवल भारत के डिजिटल भविष्य को मजबूत करने की दिशा में एक कदम है, बल्कि वैश्विक स्तर पर देश की भूमिका को भी सशक्त बनाता है। सरकार डेटा सेंटर विकसित करने और भारत को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) का वैश्विक केंद्र बनाने की महत्त्वाकांक्षी योजना पर काम कर रही है। प्रधानमंत्री स्वयं इस दिशा में व्यक्तिगत रूप से सक्रिय हैं और अंतरराष्ट्रीय तकनीकी कंपनियों और विशेषज्ञों के साथ चर्चा कर रहे हैं। यह दर्शाता है कि भारत डिजिटल तकनीक में अग्रणी बनने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में अब तक सरकार का मुख्य ध्यान कनेक्टिविटी और लॉजिस्टिक्स पर रहा है जैसे सडक़ें (हाईवे और पुल), रेलवे (जिसमें बुलेट ट्रेन, शहरी मेट्रो रेल और माल ढुलाई कॉरिडोर शामिल हैं), हवाई अड्डे और बंदरगाह। हवाई अड्डों और बंदरगाहों को तो निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया है, लेकिन सडक़ें और रेलवे अब भी मुख्य रूप से सरकार के नियंत्रण में हैं और यह उचित भी है। सभी देशों में भौतिक बुनियादी ढांचे का निर्माण मुख्य रूप से राज्य की वित्तीय सहायता के माध्यम से ही होता है और यह रोजगार सृजन की संभावनाओं को कई गुना बढ़ाता है।
हालांकि, आइटी और एआइ (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) की आधारशिला पर आधारित डिजिटल आधार संरचना के निर्माण के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी अपरिहार्य है। यहां तक कि स्टारगेट प्रोजेक्ट के लिए भी ट्रंप प्रशासन को ओपन एआइ, सॉफ्ट बैंक, माइक्रोसॉफ्ट, ओरेकलव एनवीडिया जैसी कंपनियों और निवेश बैंकों को शामिल करना पड़ा। भारत को भी ऐसा ही करना होगा। लेकिन सवाल यह है कि निजी क्षेत्र को इस ओर आकर्षित करने के लिए भारत के पास ऐसा क्या है, जो उसे लुभा सके?
पहला और सबसे स्पष्ट कारक है भारत की बौद्धिक संपदा और जनसांख्यिकीय बढ़त हमारी सबसे बड़ी ताकत है, क्योंकि हमारे पास विशाल और शिक्षित युवा जनसंख्या है। हालांकि, इसे सफल बनाने के लिए हमें निरंतर और बढ़ती हुई प्रतिभा श्रृंखला की आवश्यकता होगी। एआइ के क्षेत्र में प्रगति के लिए केवल तकनीकी ज्ञान ही नहीं, बल्कि उच्च स्तर की रचनात्मकता और विशिष्ट कौशल वाले निपुण लोगों की जरूरत होगी। इसके लिए उच्च शिक्षा को निजी क्षेत्र के साथ मिलकर विकसित किया जा सकता है, ताकि उद्योग की आवश्यकताओं के अनुसार प्रतिभा को तैयार किया जा सके। वहीं, सरकार को प्राथमिक शिक्षा में भारी निवेश करना होगा। इसमें एआइ से जुड़े स्मार्ट कोर्सेज और कक्षाओं का निर्माण महत्त्वपूर्ण होगा, जो नई पीढ़ी को तकनीक-प्रेमी और नवाचारी बनाए। इस दिशा में सफलता प्राप्त करने के लिए बड़े पैमाने पर राज्य की अगुवाई वाले प्रयासों की आवश्यकता होगी। शिक्षा नीति और संसाधनों में व्यापक सुधार करके, भारत एआई के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्वकर्ता बन सकता है। यह न केवल हमारी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगा, बल्कि समाज में समग्र विकास का आधार भी बनेगा।
दूसरा, डेटा सेंटर बहुत अधिक ऊर्जा की खपत करते हैं। अनुमान है कि स्टारगेट परियोजना अमरीका में बिजली की खपत को तीन गुना बढ़ा देगी, जिससे वहां ऊर्जा संकट पैदा हो सकता है। इसे देखते हुए ऊर्जा आवश्यकताओं पर फिर से विचार करने की मांग उठ रही है, जिसमें ‘क्लीन कोल’ जैसी तकनीकों के माध्यम से जीवाश्म ईंधन का उपयोग दोबारा शुरू करना शामिल हो सकता है। भारत को भी अपनी ऊर्जा क्षेत्र की योजनाओं पर फिर से विचार करना होगा। डिजिटल बुनियादी ढांचे में अमरीका जैसे देशों के निवेश की अभूतपूर्व गति से भारत के लिए सबक साफ हैं। सार रूप में कहें तो हमें अपने भौतिक और डिजिटल बुनियादी ढांचे को संतुलित करने और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए तत्परता दिखानी होगी। सरकार के अब तक के प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन इस चुनौती को पार करने के लिए भारत को साहसिक नीतियों और निवेश की आवश्यकता है।