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जैव विविधता को पहुंच रही क्षति से बढ़ता धरती का संकट

योगेश कुमार गोयल

जयपुरMay 21, 2025 / 05:45 pm

Neeru Yadav

अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर विशेष

जैव विविधता की समृद्धि ही धरती को रहने तथा जीवनयापन के योग्य बनाती है लेकिन विडम्बना है कि दुनियाभर में लगातार बढ़ता प्रदूषण रूपी राक्षस वातावरण पर इतना भयानक प्रभाव डाल रहा है कि जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियां धीरे-धीरे लुप्त हो रही हैं। इसीलिए पृथ्वी पर मौजूद पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं के बीच संतुलन बनाए रखने तथा जैव विविधता के मुद्दों के बारे में लोगों में जागरूकता और समझ बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 22 मई को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष यह दिवस ‘प्रकृति के साथ सामंजस्य और सतत विकास’ विषय के साथ मनाया जा रहा है, जो न केवल पर्यावरण संरक्षण की वैश्विक प्रतिबद्धताओं को रेखांकित करता है बल्कि जैव विविधता और सतत विकास के बीच गहरे अंतर्संबंध को भी उजागर करता है। यह विषय विशेष रूप से दो महत्त्वपूर्ण वैश्विक ढांचों संयुक्त राष्ट्र का 2030 एजेंडा और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) तथा कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क (केएमजीबीएफ) के बीच समन्वय को बल देता है। विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की ‘लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट’ में यह तथ्य दुनिया के सामने आ चुका है कि विश्वभर में वन्यजीवों की आबादी तेजी से घट रही है और 1970 के बाद से लैटिन अमरीका तथा कैरेबियन क्षेत्रों में तो वन्यजीव आबादी में 94 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। दुनियाभर में विगत पांच दशकों में वन्यजीवों की आबादी करीब 70 प्रतिशत कम हुई है।
यदि भारत में कुछ जीव-जंतुओं की प्रजातियों पर मंडराते खतरों की बात करें तो भारत में इस समय सैंकड़ों दुर्लभ प्रजातियां खतरे में हैं। कई अध्ययनों में यह चिंताजनक तथ्य भी सामने आ चुका है कि खेती में कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग होने से दुनिया के 75 प्रतिशत कीट-पतंगे नष्ट हो गए हैं, जो पक्षियों का मुख्य भोजन होते हैं। कीट-पतंगों का सफाया होने से चिड़ियों तथा अन्य पक्षियों को खुराक नहीं मिल पाती, जिससे उनकी आबादी तेजी से घट रही है। इसी प्रकार तालाब समाप्त होने से पानी में रहने वाले कछुए, मेंढ़क इत्यादि कई जीवों की प्रजातियां समाप्त हो रही हैं। मेढ़कों की संख्या कम होते जाने से सांपों का अस्तित्व संकट में पड़ने लगा है। पृथ्वी पर पेड़ों की संख्या घटने से अनेक जानवरों और पक्षियों से उनके आशियाने छिन रहे हैं, जिससे उनका जीवन संकट में पड़ रहा है। पर्यावरण विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि यदि इस ओर शीघ्र ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में स्थितियां इतनी खतरनाक हो जाएंगी कि पृथ्वी से पेड़-पौधों तथा जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी।
दुनियाभर में जैव विविधता को लगातार पहुंच रही क्षति जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के साथ मिलकर धरती के संकट को बढ़ा रही है। जैव विविधता का संकट भी धरती पर जीवन के अस्तित्व के लिए उतना ही गंभीर है, जितना जलवायु परिवर्तन। मानवीय गतिविधियों के कारण जैव विविधता के तेजी से नष्ट होने से 10 लाख पशुओं और पेड़-पौधों की प्रजातियों के विलुप्त होने की संभावना है। जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं का आकलन करने वाली संस्था ‘अंतर सरकारी विज्ञान नीति मंच’ (आइपीवीईएस) ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की विभिन सेवाएं खतरे में हैं। इस वैश्विक आकलन के मुताबिक पिछले 50 वर्षों में दुनिया से 85 प्रतिशत आर्द्रभूमि नष्ट हो गई है जबकि 75 प्रतिशत भूमि और 65 प्रतिशत महासागरों में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है और 10 लाख पशुओं तथा वनस्पतियों की प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं, जिनमें से हजारों एक दशक के भीतर ही विलुप्त हो जाएंगी। आइपीवीईएस अध्यक्ष रॉबर्ट वॉटसन चिंता जताते हुए कहते हैं कि तेजी से नष्ट हो रहे पारिस्थितिकी तंत्र पर सभी पूरी तरह से निर्भर हैं लेकिन हम पशु, खाद्य सुरक्षा और हमारी अर्थव्यवस्था की बुनियाद को नष्ट करते जा रहे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में केवल 15 प्रतिशत पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली से ही विलुप्ति का यह खतरा 60 प्रतिशत तक कम हो सकता है।
धरती के संतुलन को बनाए रखने में विभिन प्रकार के जीव-जंतुओं, कीट-पतंगों, पक्षियों और पेड़-पौधों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है लेकिन जलवायु परिवर्तन, मानवीय विकास, प्रदूषण तथा देखरेख के अभाव जैसे कारकों ने जैव विविधता को संकट में ला दिया है। जैव विविधता सम्मेलन के दौरान प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आइयूसीएन) की लाल सूची में डेढ़ लाख से भी ज्यादा प्रजातियां शामिल हैं, जिनमें से दुनियाभर में 42 हजार से ज्यादा प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं। विशेषज्ञों ने पाया कि भारत की भूमि, मीठे पानी और समुद्रों में पौधों, जानवरों और कवक की 9472 से अधिक प्रजातियों में से 1355 प्रजातियां लाल सूची के लिए खतरे में हैं, जिन्हें गंभीर रूप से लुप्तप्राय या विलुप्त होने की श्रेणी में माना गया है। भारत में विश्लेषण की गई 239 नई प्रजातियों को लाल सूची में शामिल किया गया है, जिनमें से 29 प्रजातियां खतरे में हैं। दुनिया के अन्य हिस्सों में समुद्री जीवों की संवेदनशील लुप्तप्राय प्रजातियों की आबादी, समुद्री घोंघों की कई प्रजातियां और एक प्रकार के कैरेबियन प्रवाल पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। अफ्रीका के पूर्वी तट से लेकर पश्चिमी प्रशांत महासागर के बीच पाया जाने वाला बड़ा और शांत समुद्री स्तनपायी जीव डगोंग भी विलुप्त होने के कगार पर है।
जीव विज्ञानियों के मुताबिक करीब 54 करोड़ वर्ष पूर्व प्रजातियों के कैंब्रियाई विस्तार का पता चलने के बाद से जीवाश्म रिकॉर्ड में प्रजातियों के सामूहिक रूप से विलुप्त होने के कम से कम पांच चरणों का पता लगाया जा चुका है और दुनियाभर में हम प्रजातियों के सामूहिक रूप से विलुप्त होने के छठे चरण में प्रवेश कर गए हैं। पृथ्वी की जीवन-समर्थन प्रणाली को सर्वाधिक नुकसान पिछली शताब्दी में हुआ है। 1950 के बाद से दुनिया में मनुष्यों की आबादी करीब तीन गुना हो गई है लेकिन दूसरी ओर दुनिया से करीब 10 लाख प्रजातियों पर बड़े पैमाने पर विलुप्त होने का खतरा है। यही नहीं, 10 हजार वर्ष पूर्व कृषि की शुरुआत के बाद से पृथ्वी पर कुल वनस्पति भी आधी रह गई है। जैव प्रजातियों के सामूहिक रूप से विलुप्त होने का यह क्रम मानव जाति के खतरे की घंटी है क्योंकि यदि प्रजातियों के विलुप्त होने की यह प्रक्रिया मौजूदा दर से जारी रहती है तो हम वर्ष 2200 तक अधिकांश प्रजातियों को खो देंगे, जिसके मानव स्वास्थ्य और कल्याण पर बेहद गंभीर परिणाम होंगे और विभिन्न प्रजातियों के असामान्य रूप से तेजी से विलुप्त होने के मद्देनजर हमारे गंभीर प्रयास ही भविष्य में जैव विविधता के लुप्त होने की भयंकर स्थिति को रोक सकते हैं।

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