वाक् युद्ध से दुनिया अवाक! सीरीज 1 : ट्रंप-जेलेंस्की नोक-झोंक से यूरोप में चिंता के बादल
डॉ. एन.के. सोमानी, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार


वाइट हाउस के ओवल ऑफिस में अमरीका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच संसाधनों की डील को लेकर चल रही बैठक के दौरान जो कुछ हुआ, उसकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो। औपचारिक भेंट से शुरू हुई वार्ता जिस तरह से तीखी नोक-झोंक में तब्दील हुई, उससे पूरी दुनिया अवाक रह गई। युद्ध विराम के मुद्दे को सुलझाने के लिए डॉनल्ड ट्रंप, उनके उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और जेलेंस्की सहमति के किसी बिंदु पर पहुंच पाते, उससे पहले ही दोनों देशों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि बैठक बिना किसी नतीजे के समाप्त करनी पड़ी। बैठक के दौरान ट्रंप और जेलेंस्की के बीच तलवारें इस कदर खिंची, इसको इस बात से समझा जा सकता है कि बैठक बिना प्रेस-कॉन्फ्रेंस के समाप्त करनी पड़ी और जेलेंस्की को डिनर लिए बगैर ही लौटना पड़ा। हालांकि, दोनों नेताओं के बीच का यह वाक् युद्ध अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के इतिहास का विषय हो गया है, लेकिन इतिहास का हिस्सा बनने से पहले यह अपने पीछे कुछ ऐसे अनुत्तरित प्रश्न छोड़ गया है, जो अगले आने वाले दिनों में विमर्श के केंद्र में होंगे।
सबसे बड़ा और सबसे अहम प्रश्न यह है कि अनायास घटे इस घटनाक्रम के बाद यूक्रेन का क्या होगा? दूसरा, ट्रंप के युद्ध विराम समझौते से हाथ खींच लेने के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध किस दिशा में जाएगा? तीसरा, यूक्रेन के जिन संसाधनों पर कब्जा करने की नियत से ट्रंप समझौते पर आगे बढ़ रहे थे, अब उसे कैसे पटरी पर लाएंगे? दरअसल, ट्रंप के सत्ता में आने के बाद से यूक्रेन युद्ध का मुद्दा लगातार चर्चा के केंद्र में है। ट्रंप के इस एजेंडे में प्रतिदिन नए डवलपमेंट हो रहे हैं। 18 फरवरी को सऊदी अरब में युद्ध विराम समझौते को लेकर रूस और अमरीका के बीच बातचीत हुई। बातचीत में यूक्रेन के प्रतिनिधियों को नहीं बुलाया गया था। अमरीका के इस कदम से कीव सहित पूरा यूरोप बेचैन था। बातचीत के बाद अमरीकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो और रूसी विदेशी मंत्री सर्गेई लावरोव ने प्रेस को जो जानकारी दी, उसमें कहा गया था कि मॉस्को ने वाशिंगटन को बता दिया है कि वह नाटो के किसी भी सदस्य को युद्ध विराम के तहत यूक्रेन में सेना को भेजने का विरोध करता है, चाहे वह राष्ट्रीय ध्वज के तहत हो या यूरोपीय संघ के ध्वज के तहत। कुल मिलाकर कहें तो दोनों विदेश मंत्रियों के वक्तव्य का अर्थ यूक्रेन की सुरक्षा से समझौता था।
चूंकि, सऊदी में हुई वार्ता से यूक्रेन को दूर रखा गया था। इसलिए जाहिर है जेलेंस्की के लिए बैठक में लिए गए किसी भी निर्णय को स्वीकार करने का कोई नैतिक दबाव नहीं था। लिहाजा जेलेंस्की ने अमरीका पर पुतिन को खुश करने और रूस के पक्ष में रियायतें देने का आरोप लगाते हुए दो टूक कह दिया कि हम प्रशंसा पाने के लिए किसी भी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे। जेलेंस्की ही क्यों दुनिया का कोई भी दूसरा नेता एकतरफा निर्णय को स्वीकार नहीं करता। एक सामान्य समझ का आदमी भी जानता है कि सुरक्षा की गारंटी के बिना शांति संभव नहीं है। ऐसे में सुरक्षा की गारंटी के बिना संघर्ष विराम पूरे यूरोपीय महाद्वीप पर रूस के कब्जे के लिए रास्ता देने जैसा था। लिहाजा यूरोप के दूसरे नेता भी यूक्रेन के बगैर होने वाली वार्ता से तमतमाए हुए थे। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने यूक्रेन मसले पर यूरोपीय नेताओं को पेरिस में एकत्रित कर ट्रंप को संदेश देने की कोशिश भी की। दूसरी तरफ यूक्रेन के खनिज भंडारों पर नजर गड़ाए ट्रंप ने यूक्रेन को ‘मिनरल डील’ का प्रस्ताव दिया। इस प्रस्ताव में कहा गया कि अगर यूक्रेन रूस के खिलाफ लगातार अमरीकी सैन्य मदद चाहता है तो उसे 500 बिलियन डॉलर (43 लाख करोड़ रुपए) के दुर्लभ खनिज अमरीका को सौंपने होंगे।
ट्रंप का तर्क था कि इस समझौते से अमरीकी करदाताओं को अपना वो पैसा वापस पाने में मदद मिलेगी जो उन्होंने युद्ध के दौरान यूक्रेन को सहायता के नाम पर दिया था। मिनरल डील के तहत युद्ध में तबाह हो चुके यूक्रेन के पुनर्निर्माण के लिए एक इनवेस्टमेंट फंड स्थापित किए जाने का प्रावधान किया गया। कहा जा रहा है कि जेलेंस्की इस डील के लिए तैयार थे और वे इस डील पर हस्ताक्षर करने के लिए ही वाशिंगटन गए थे। लेकिन डॉनल्ड ट्रंप, उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और जेलेंस्की के बीच हुई तकरार के बाद डील पर मुहर नहीं लग सकी। वाशिंगटन से लौटने के बाद जिस तरह से पूरा यूरोप (जर्मनी, पौलेंड, फ्रांस, नीदरलैंड, कनाडा) जेलेंस्की के साथ ताल ठोक रहा है, उसे देखते हुए एक प्रश्न यह भी उठ खड़ा हुआ है कि क्या आने वाले दिनों में यूरोप अमरीकी मदद के बिना ही रूस के साथ दो-दो हाथ करता दिखेगा। यह सवाल इसलिए भी बेजा नहीं है क्योंकि रविवार को ब्रिटेन में होने वाले यूरोपीय देशों के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए जब जेलेंस्की लंदन पहुंचे तो ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने डाउनिंग स्ट्रीट में उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने जेलेंस्की को गले लगाते हुए आश्वासन दिया कि ब्रिटेन आपके साथ मजबूती से खड़ा है। हम आपको अकेला नहीं छोड़ेंगे, चाहे इसमें कितना भी समय लगे। उन्होंने यूरोप की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तैयारियां तेज करने और यूक्रेन को अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने के लिए 2.84 अरब डॉलर की ऋण सहायता देने की घोषणा की।
अमरीका-यूक्रेन तनाव के बाद स्टार्मर ने यूरोप की सुरक्षा का सवाल उठाया है, उसके बाद सवाल यह भी उठने लगा है कि यह युद्ध केवल जंग के मैदान तक ही सीमित रह पाएगा या कूटनीतिक मोर्चे पर नित नए समीकरण बनते-बिगड़ते दिखेंगेे। क्या यूरोप एक साथ अमरीका और रूस का सामना कर सकता है। हाल-फिलहाल यूरोप के पास भी ऐसी सैन्य क्षमता नहीं है कि वह अमरीकी मदद के बिना रूस के दोबारा हमला करने की सूरत में उससे दो-दो हाथ कर सके। इसलिए यूरोप के तमाम नेताओं को ‘संभावित आपदा’ को अवसर में बदलने की हर कोशिश जारी रखनी होगी।
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