सख्त कार्रवाई होनी चाहिए
घर के बाहर गाड़ी की पार्किंग करना असभ्य समाज का उदाहरण है। आमजन को आने-जाने में परेशानी होती है एवं यातायात बाधित होता है। सरकार को चाहिए कि इस परेशानी को दूर करने के लिए पार्किंग करने वालों सख्त कार्रवाई करे। – राम नरेश गुप्ता, जयपुर
घर के बाहर गाड़ी की पार्किंग करना असभ्य समाज का उदाहरण है। आमजन को आने-जाने में परेशानी होती है एवं यातायात बाधित होता है। सरकार को चाहिए कि इस परेशानी को दूर करने के लिए पार्किंग करने वालों सख्त कार्रवाई करे। – राम नरेश गुप्ता, जयपुर
गाड़ी हमारी तो पार्किंग की जिम्मेदारी भी हमारी
आजकल ज़्यादातर घरों में पार्किंग की जगह नहीं होती, तो लोग मजबूरी में गाड़ियां बाहर खड़ी कर देते हैं। इससे सड़कें सिकुड़ जाती हैं, जाम लगता है और मोहल्ले में झगड़े तक हो जाते हैं। सरकार को चाहिए कि कॉलोनियों में पार्किंग की ठोस व्यवस्था करे। हमें भी सोचना होगा कि अगर गाड़ी ले रहे हैं, तो उसकी सही पार्किंग की जिम्मेदारी भी हमारी ही है। -अभिषेक सिंह राजावत, मिहोना भिण्ड
आजकल ज़्यादातर घरों में पार्किंग की जगह नहीं होती, तो लोग मजबूरी में गाड़ियां बाहर खड़ी कर देते हैं। इससे सड़कें सिकुड़ जाती हैं, जाम लगता है और मोहल्ले में झगड़े तक हो जाते हैं। सरकार को चाहिए कि कॉलोनियों में पार्किंग की ठोस व्यवस्था करे। हमें भी सोचना होगा कि अगर गाड़ी ले रहे हैं, तो उसकी सही पार्किंग की जिम्मेदारी भी हमारी ही है। -अभिषेक सिंह राजावत, मिहोना भिण्ड
पैदल चलने वालों को परेशानी होती
घरों में पार्किंग सुविधा न होने के कारण लोग अपनी गाड़ियां बाहर खड़ी कर देते हैं, जिससे पैदल चलने को काफी परेशानी उठानी पड़ती है। सड़क पर गाड़ियां और बसें दौड़ती हैं और जहां लोग पैदल चल सकते हैं, वहां बड़ी-बड़ी गाड़ियां खड़ी होती हैं। गाड़ी खरीदने से पहले ही पार्किंग की उचित व्यवस्था कर लेनी चाहिए। बड़े शहरों में किराए की पार्किंग का चलन तेजी से बढ़ रहा है। – विभा गुप्ता, बेंगलूरु
घरों में पार्किंग सुविधा न होने के कारण लोग अपनी गाड़ियां बाहर खड़ी कर देते हैं, जिससे पैदल चलने को काफी परेशानी उठानी पड़ती है। सड़क पर गाड़ियां और बसें दौड़ती हैं और जहां लोग पैदल चल सकते हैं, वहां बड़ी-बड़ी गाड़ियां खड़ी होती हैं। गाड़ी खरीदने से पहले ही पार्किंग की उचित व्यवस्था कर लेनी चाहिए। बड़े शहरों में किराए की पार्किंग का चलन तेजी से बढ़ रहा है। – विभा गुप्ता, बेंगलूरु