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रायपुर

Patrika Mahila Suraksha: लम्बी कानूनी प्रक्रिया से टूट जाती है हिम्मत, इंसाफ में देरी होने से नासूर बनते है जख्म..

Patrika Mahila Suraksha: छत्तीसगढ़ में अपराधों के विरुद्ध महिला सुरक्षा अभियान चलाया जा रहा है जिसमे बताया गया है की न्या य सिर्फ फैसला सुनाने का नाम नहीं, बल्कि पीड़ित के दर्द को कम करने की प्रक्रिया भी है।

रायपुरFeb 07, 2025 / 09:00 am

Shradha Jaiswal

Patrika Mahila Suraksha: लम्बी कानूनी प्रक्रिया से टूट जाती है हिम्मत, इंसाफ में देरी होने से नासूर बनते है जख्म..
Patrika Mahila Suraksha: छत्तीसगढ़ में अपराधों के विरुद्ध महिला सुरक्षा अभियान चलाया जा रहा है जिसमे बताया गया है की न्या य सिर्फ फैसला सुनाने का नाम नहीं, बल्कि पीड़ित के दर्द को कम करने की प्रक्रिया भी है। जब यही न्याय देरी से मिलता है तो पीड़िता के घाव भरने की बजाय और गहरे होते जाते हैं।
रेप और घरेलू हिंसा जैसी घटनाओं में जहां हर दिन मानसिक और शारीरिक संघर्ष से गुजरना पड़ता है, वहां पुलिस के बाद अदालतों की लंबी प्रक्रिया किसी दूसरी सजा से कम नहीं लगती। तारीख पर तारीख, सिस्टम की सुस्ती और अपराधियों का बेखौफ घूमना पीड़िताओं के दर्द को बढ़ाता है।
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Patrika Mahila Suraksha: इंसाफ…

Patrika Mahila Suraksha: केंद्र सरकार ने 2012 में देश में चर्चित निर्भया कांड के बाद फास्ट ट्रैक कोर्ट पर विचार किया। दिसंबर 2012 केंद्र सरकार एक समर्पित योजना लेकर आई, जिसे निर्भया फंड का नाम दिया। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अधीन यह फंडमहिला सुरक्षा में सुधार की योजनाओं पर खर्च किया जा सकता है। यह ऐसा कार्पस फंड है, जिसका बजट लैप्स नहीं होता। पत्रिका रक्षा कवच अभियान के तहत आज पांचवीं किस्त में हम चर्चा कर रहे हैं।
महिला अपराध में न्याय में देरी पर। इसमें सबसे बड़ी बाधा है लंबी और जटिल कानूनी प्रक्रिया। इसके साथ ही राजनीतिक हस्तक्षेप, सामाजिक दबाव और पुलिस की निष्क्रियता भी प्रमुख समस्याएं हैं।

केस से ऐसे समझें…

  • पुलिस के ‘मौन’ रहने से छोड़नी पड़ी पढ़ाई
मेडिकल की पढ़ाई की तैयारी के लिए दूसरे शहर से इंदौर आई छात्रा का सोशल मीडिया पर एक युवक से परिचय हुआ। छात्रा को बातों में उलझा आरोपी ने होटल में रेप कर वीडियो बना लिए। आरोपी सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी देकर डराने लगा। छात्रा ने परिवार को बताया और हिम्मत जुटाकर विजयनगर थाने पहुंची। उसे गिरफ्तार करने की बजाए पुलिस ने आवेदन लेकर जांच के नाम पर पीड़िता से चक्कर लगवाए। आरोपी भी धमकाता रहा। पुलिस के रवैये से परेशान परिजन छात्रा की पढ़ाई छुड़वाकर साथ ले गए।
  • प्रयासों से त्वरित न्याय व्यवस्था बनेगी प्रभावी
लोक प्रशासन संस्थान ने फील्ड विजिट में पाया कि आपसी प्रेम संबंधों को मान्य करें, बाल विवाह रोकने को समाज में जागरूकता फैलाएं तो इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है। न्यायालयों में एक-एक कर विशेष पोस्को न्यायाधीशों की नियुक्ति हो। जांच एजेंसी और अभियोजन पक्ष के बीच सूचना प्रणाली मजबूत करना भी आवश्यक है। बाल पीड़ितों के सही मार्गदर्शन से मामलों के निपटारे की गति बढ़ेगी।

छत्तीसगढ़ में 1975 केस लंबित

राज्य कोर्ट निराकृत लंबित

उत्तरप्रदेश 218 82,661 90,531

मध्यप्रदेश 67 29,765 10,259

बिहार 46 14,495 19,321

ओडिशा 44 17,707 9,577

राजस्थान 45 17,291 5,449
आंध्र प्रदेश 16 6,221 6,512

छत्तीसगढ़ 15 5,742 1,975

जम्मू-कश्मीर 04 263 509

पं. बंगाल 06 232 4,222

मेघालय 05 647 1,049

फ़ास्ट ट्रैक अदालतें व प्रकरण

भारतीय लोक प्रशासन संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, देश में बच्चों और महिलाओं के साथ पॉस्को एक्ट के प्रकरणों के त्वरित निबटारे के लिए 1023 फास्ट ट्रैक कोर्र्ट स्थापित किए जाने थे। वर्ष 2019 में इस व्यवस्था को शुरू कर दिया गया। फिलहाल देशभर में 747 फास्ट ट्रैक अदालतें काम कर रही हैं, इनमें 406 फास्ट ट्रैक अदालतें विशेष रूप से पॉस्कोे अपराधों पर सुनवाई के लिए हैं।
अभी तक इनमें 2,99,624 प्रकरणों पर फैसले दिए जा चुके हैं, जबकि 2,04,122 प्रकरण लंबित हैं। अभी फास्ट ट्रैक कोर्ट में 60 फीसदी फंड केंद्र और 40 फीसदी राज्य की हिस्सेदारी होती है। अरुणाचल प्रदेश और अंडमान निकोबार में अभी कोई फास्ट ट्रैक कोर्ट नहीं है। फास्ट ट्रैक कोर्ट में त्रैमासिक आधार पर 41 से 42 प्रकरणों में फैसले की उम्मीद की जाती है। सालभर में 165 प्रकरणों का निबटारा होना चाहिए। मध्यप्रदेश का 105.96 करोड़ रुपए खर्च होते हैं।

बड़ी बाधाएं

विधि मंत्रालय ने फास्ट ट्रेक कोर्ट का थर्ड पार्टी ऑटिड कराया। रिपोर्ट में इसे त्वरित न्याय को सुधार की दिशा में सख्त कदम बताया। रिपोर्ट में मप्र के ग्वालियर का अध्ययन भी किया। इसमें ये 3 बड़ी अड़चन मानी गईं।

पुलिस का जांच अधिकारी बदलना

अध्ययन से पता चला कि जांच अधिकारियों का स्थानांतरण कई मामलों की जांच में गंभीर बाधा बन रहा है, जिससे प्रभावी जांच में कमी आ रही है। विशेष रूप से निम्न जाति के पीड़ितों से संबंधित पोस्को और बलात्कार के मामलों में संवेदनशीलता नहीं दिखाते।

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