मूंग पर पीला मोजेक और मारुका इल्ली का हमला
कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. स्वप्निल दुबे ने बताया कि मूंग की यह फसल महज 65-70 दिनों में तैयार हो जाती है। लेकिन, हर साल इसमें पीला मोजेक वायरस रोग और मारुका इल्ली का भारी प्रकोप देखा जा रहा है। इनसे निपटने के लिए किसान शुरुआत से ही कीटनाशकों का सहारा ले रहे हैं। साइपरमैथिन, इंडोक्साकार्ब, मिथोमिल जैसे खतरनाक रसायनों का तीन से चार बार छिड़काव किया जाता है। कीटनाशकों के इस अंधाधुंध प्रयोग का दुष्प्रभाव न केवल पर्यावरण पर बल्कि मूंग का सेवन करने वाले लोगों पर भी पड़ रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, इन जहरीले रसायनों के कारण कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। मूंग को बचाने का मंत्र
डॉ. दुबे ने किसानों को साइपरमैथिन जैसे रसायनों की जगह जैविक कीटनाशकों का उपयोग करने की सलाह दी है। व्यूवेरिया बेसियाना, बेसिलस थूरूजेनेंसिस, एनपीवी वायरस, नीम ऑयल, पीले प्रपंच, ब्रम्हास्त्र और नीमास्त्र जैसे उपाय न केवल फसल को सुरक्षित रखते हैं, बल्कि मानव स्वास्थ्य और मृदा के लिए भी फायदेमंद हैं।
ऑर्गेनिक फार्मिंग की तरफ बढ़े किसान
कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि किसान जैविक कीटनाशकों का प्रयोग शुरू करें, तो मूंग की फसल को बचाया जा सकता है। साथ ही कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से भी बचाव संभव है। अब देखना यह है कि रायसेन के किसान इस बदलाव को अपनाकर अपनी सेहत और फसल दोनों को सुरक्षित रखते हैं या नहीं!