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CG News: पिता-पुत्र की जान लेने वाला खूंखार भालू का मिला शव, वन विभाग ने पोस्टमार्टम कर किया अंतिम संस्कार मासूम पर छुरी चलाते समय मेरी ममता कांप उठी। आंखों से आंसू थम ही नहीं रहे थे। महीनेभर भावनाओं को बांध पाना मुश्किल था। लगा कि अपना पेशा छोड़ दूं लेकिन पोस्टमार्टम करना पेशा नहीं मेरी मजबूरी थी। मजबूरी मेरे 4 छोटी बच्चियों को पालने की…। क्योंकि बचपन में ही इनके सर से पीता का साया उठ गया था।
यह कहानी
राजनांदगांव के छुरिया की महिला पोस्टमार्टम असिस्टेंट शकुन खांडेकर की है। महिला दिवस पर इस मजबूत महिला की ये प्रेरणादायक कहानी हम सबको पढ़नी चाहिए। शकुन अब तक अपने 30 साल के करियर में एक हजार से भी ज्यादा पोस्टमार्टम कर चुकी है। चूंकि शकुन नक्सल प्रभावित इलाके छुरिया की रहने वाली है। इसलिए उन्होंने सबसे ज्यादा पोस्टमार्टम नक्सलियों और पुलिस जवानों का किया है।
चाय और नाश्ते से ही जिंदगी चलती रही शकुन को जब भी पीएम करने जाती उस दिन वह खाना नहीं खा पाती थी। भोजन करने के बाद उल्टी आ जाती थी इसलिए वह नाश्ता और चाय से ही अपना पेट भरती थी।
शकुन से जब पूछा गया कि दिल कैसे दिखाई देता तब जवाब हैरान कर देने वाला था। उन्होंने बताया कि इंसान का दिल मुर्गे की दिल की तरह ही होता है। किसी इंसान का दिल आधा पाव का तो किसी का एक पाव भी होता है। सभी इंसानों के दिल का वजन और आकार अलग-अलग हो सकता है। 62 वर्षीय शकुन ने बताया कि उनके पति गैंदलाल खांडेकर जो कि छुरिया हॉस्पिटल में स्वीपर के पद पर दैनिक वेतनभोगी थे।
वर्ष 1989 जब वह 28 साल की थी तब उनकी मौत हो गई। पति की मौत के बाद 4 बच्चियों की जिमेदारी उनके कंधों पर आ गई। पति की जगह उसने हॉस्पिटल में स्वीपर का काम किया। तब उसे महज 450 रुपए महीने के मिलते थे। छुरिया में जब पोस्टमार्टम हाऊस बना तो डोंगरगढ़ से पोस्टमार्टम करने वाले को बुलाया जाता था। लेकिन आने-जाने में होने वाली देरी के कारण वहां के तात्कालिक बीएमओ छुरिया के ही स्वीपर से पोस्टमार्टम करवाना चाहते थे।