1956-57 से 1962-63 तक का रिकॉर्ड गायब
प्रशासन के अनुसार, वर्ष 1956-57 से लेकर 1962-63 तक का सरकारी भूमि से संबंधित रिकॉर्ड लापता है। इसी अवधि में तत्कालीन पटवारियों द्वारा कई सरकारी जमीनें निजी व्यक्तियों के नाम दर्ज की गई थीं। सरकारी नियमों के अनुसार, जब किसी शासकीय भूमि को किसी व्यक्ति को आवंटित किया जाता है, तो तहसीलदार के आदेश के साथ इसे रिकॉर्ड के कॉलम नंबर 12 में दर्ज किया जाता है। लेकिन अब प्रशासन का कहना है कि उसके पास यह दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं। इसी आधार पर नामांतरण पर रोक लगा दी गई है। नामांतरण की प्रक्रिया ठप, हजारों लोग प्रभावित
रियल एस्टेट कारोबारियों के अनुसार, नामांतरण पर रोक से जिले में लगभग 1000 भूमि सौदों के नामांतरण अटके हुए हैं। जबकि इन जमीनों के मालिक 60 साल से अधिक समय से सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हैं और इनकी कई बार खरीद-बिक्री भी हो चुकी है।
रतलाम जिला प्रॉपर्टी व्यवसायी संघ के अध्यक्ष राकेश पिपाड़ा ने कहा, भूमि स्वामी जब नामांतरण करवाने जाते हैं तो तहसीलदार 1956-57 के रिकॉर्ड को आधार मानकर जमीन को सरकारी घोषित कर देते हैं। जबकि यह जमीनें दशकों से निजी स्वामित्व में हैं। इस कारण लोग अपनी ही जमीन का नामांतरण नहीं करवा पा रहे हैं।
राजस्व को भी हो रहा नुकसान
नामांतरण पर रोक से शासन को राजस्व का भी बड़ा नुकसान हो रहा है। पंजीयन विभाग में अप्रैल-मई के महीनों में होने वाले पंजीयन की संख्या अब आधी हो गई है। रतलाम जिला प्रॉपर्टी व्यवसायी संघ के सदस्य हेमंत कोठारी ने प्रशासन के रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘एक तरफ प्रशासन कहता है कि जमीनों का रिकॉर्ड नहीं है, इसलिए नामांतरण नहीं हो सकता। दूसरी ओर उन जमीनों को निजी भी नहीं माना जा रहा। अगर यही स्थिति रही त प्रशासन को सभी भूमि को शासकीय घोषित कर देना चाहिए।’ मौखिक आदेश से रुकी नामांतरण प्रक्रिया
यह मामला तत्कालीन कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम के कार्यकाल में सामने आया था। उन्होंने मौखिक रूप से आदेश दिया कि जिनकी भूमि का रिकॉर्ड गायब है, उन्हें स्वयं इसके प्रमाण प्रस्तुत करने होंगे। तब से लेकर अब तक एक भी इंच भूमि का नामांतरण नहीं हुआ।
इन तहसीलों में रिकॉर्ड गायब
रतलाम जिले की जावरा, पिपलौदा, आलोट, ताल, रावटी, रतलाम ग्रामीण और रतलाम शहर तहसीलों का रिकॉर्ड प्रशासन के पास नहीं है। सैलाना और बाजना तहसीलों में यह समस्या नहीं है। प्रशासन का पक्ष
शहर तहसीलदार ऋषभ ठाकुर ने कहा, ‘वर्ष 1956-57 से 1962-63 तक का रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। इसलिए शासकीय भूमि के नामांतरण नहीं किए जा रहे हैं। यदि कोई व्यक्ति नामांतरण करवाना चाहता है, तो उसे स्वयं दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे।’
लोगों की अपील – जल्द निकले समाधान
प्रभावित लोग और व्यवसायी संघ राज्य शासन से मांग कर रहे हैं कि इस समस्या का जल्द समाधान निकाला जाए। उनका कहना है कि अगर प्रशासन के पास रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है, तो वर्षों से भूमि मालिकों के पास मौजूद दस्तावेजों को वैध मानकर नामांतरण की प्रक्रिया फिर से शुरू की जाए।