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Amalaki Ekadashi Puja Vidhi: इन 5 चरण में करें आमलकी एकादशी पूजा, हर मनोकामना होती है पूरी

Amalaki Ekadashi Puja Vidhi: फाल्गुन शुक्ल एकादशी यानी आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु के साथ आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। आइये जानते हैं आमलकी एकादशी पूजा विधि (amla vriksh ki puja)

भारतMar 10, 2025 / 07:25 am

Pravin Pandey

Amalaki Ekadashi Puja Vidhi

Amalaki Ekadashi Puja Vidhi: आमलकी एकादशी पूजा विधि

Amla Vriksh Ki Puja: आमलकी एकादशी का सभी 26 एकादशी में बड़ा महत्व है। भगवान विष्णु ने इसका महत्व स्वयं ही बताया है। कहा है कि जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं उनके लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष में जो पुष्य नक्षत्र में एकादशी आती है उस एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है। इस एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। आइये जानते हैं आमलकी एकादशी पूजा विधि (Amalaki Ekadashi Puja Vidhi) ..

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आमलकी एकादशी पूजा विधि (Amalaki Ekadashi Puja Vidhi)

1.आमलकी एकादशी व्रत के पहले दिन यानी दशमी की रात में व्रती को भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए और आमलकी एकादशी के दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता और अपने मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो इसके लिए श्रीहरि मुझे अपनी शरण में रखें।

इसके बाद यह मंत्र पढ़ें


‘मम कायिकवाचिकमानसिक सांसर्गिकपातकोपपातकदुरित क्षयपूर्वक श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फल प्राप्तयै श्री परमेश्वरप्रीति कामनायै आमलकी एकादशी व्रतमहं करिष्ये’ इस मंत्र से संकल्प लेने के बाद भगवान विष्णु की षोड्षोपचार पूजा करें।

2. भगवान विष्णु की पूजा के बाद पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें। सबसे पहले वृक्ष के चारों ओर की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें।
3. पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें और इस कलश में देवताओं, तीर्थों, सागर को आमंत्रित करें। कलश में सुगंधी और पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें। कलश पर श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं।
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4. अंत में कलश पर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत परशुरामजी की पूजा करें।
5. रात में भगवत कथा और भजन कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें और द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन करा कर दक्षिणा दें। साथ ही परशुराम की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। इन क्रियाओं के बाद पारण करके अन्न जल ग्रहण करें।

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