बताते चलें कि नागा साधु हिंदू धर्मावलंबी साधु हैं, ये युद्ध कला में भी माहिर होते हैं। ये जिन मठों में रहते हैं और युद्ध कला की शिक्षा लेते हैं, उन्हें अखाड़ा कहते हैं। इन अखाड़ों का गठन ईसा पूर्व 5वीं शती में आदिगुरु शंकराचार्य ने उस समय की थी, जब भारत पर बाहरी आक्रांताओं के हमले बढ़ गए और वो हमारे मठ मंदिर और धार्मिक पुस्तकों का नाश करने लगे।
इन सैनिकों का काम अपने मठ मंदिरों, ज्ञान, पुस्तकों और संस्कृति की रक्षा करना था। इनका जीवन कठोर और अनुशासित होता है। ये तीर्थ स्थलों के दूर दराज के इलाकों में रहते हैं। 20213 तक 13 अखाड़े हुआ करते थे और 2014 में किन्नर अखाड़ा जुड़ने से इनकी संख्या 14 हो गई है।
इन अखाड़ों में शामिल होने की उम्र 17 से 19 साल होती है। इनके सबसे बड़े आचार्य महामण्डलेश्वर कहे जाते हैं, इनका कार्यकाल छह साल का होता है। इसके अलावा मुख्य संरक्षक और उपाध्यक्ष के पद भी होते हैं। इस वरीयता में श्रीमंहत, महंत, सचिव, मुखिया, जखीरा प्रबंधक भी आते हैं।
अखाड़ों में व्यवस्था के लिए साधुओं के कई पद
अखाड़े वैष्णव, शैव और उदासीन तीन भागों में बंटे होते हैं। इनमें नाम भले अलग हो लेकिन संगठन की संरचना मिलती जुलती है। अखाड़ों की व्यवस्था के लिए प्रवेशी-रकमी, मुदाठिया, नागा, सदर नागा, कोतवाल और भंडारी जैसे पद होते हैं।इसके अलावा अखाड़ों में उपाधियां भी होती हैं. महामंडलेश्वर, सबसे बड़े आचार्य होते हैं. जिनका कार्यकाल छह साल का होता है। इसके अलावा मुख्य संरक्षक और उपाध्यक्ष के पद भी होते हैं. वहीं, इस वरीयता में श्रीमंहत, महंत, सचिव, मुखिया, जखीरा प्रबंधक भी आते हैं। एक निश्चित समय के बाद ये बड़े पद पर पहुंचते हैं।
प्रवेशी साधु
अखाड़ों में प्रवेश लेने वाला नया साधु प्रवेशी कहा जाता है। इसे मर्यादा, अनुशासन और आदर्श का अभ्यास कराया जाता है।प्रवेश के समय साधु को एक गुरु बनाना होता है और रकम यानी पद और गोपनीयता की शपथ लेनी पड़ती है। इसे अपने वरिष्ठों की सेवा करनी पड़ती है। साफ-सफाई, खाना बनाना, पढ़ना, साधना इनके काम होते हैं।
इधर, वैष्णव अखाड़ों में किसी नए प्रवेशी को किसी भी संप्रदाय में दीक्षित या विरक्त होना जरूरी होता है। इसे अलग-अलग समय 6 अलग-अलग नाम मिलते हैं। इसके बाद तीन-तीन वर्षों वाली विशेष कक्षाओं से प्रवेशी को आगे बढ़ना पड़ता है। इससे ऊपर क्रमशः छोटा, बंदगीदार, हुरदंगा, मुदाठिया, नागा, सदरनागा, अतीत और महाअतीत की उपाधि वाले साधु होते हैं।