दरअसल भोपाल स्थित वन विहार के केरवा में कैप्टिव ब्रीडिंग से जन्में गिद्ध के बच्चों के तीन जोड़ों को प्राकृतिक रूप से विकसित करने वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व को चुना गया था। विभाग ने टाइगर रिजर्व के नरसिंहपुर जिले में स्थित डोंगरगांव रेंज में गिद्ध कोंच एरिया को चिन्हित किया था। अक्टूबर 2024 में स्टेट लेवल कमेटी ने निरीक्षण करने भी टाइगर रिजर्व पहुंची थी। इसके बाद नवंबर 2024 में एवियरी (जिसमें गिद्ध के बच्चों को रखा जाना था) बनाने का काम भी शुरू कर दिया था। प्लान था कि गिद्ध के बच्चों को इसी एवियरी में रखा जाएगा और वन विभाग इस प्रकार से उन्हें ट्रेंड करेगा कि वे खुद से खाना-पीना सीख जाएं। इसके लगभग पांच माह बाद उन्हें एवियरी से बाहर छोड़ दिया जाएगा।
– इसलिए टाइगर रिजर्व हुआ था चिन्हित
वीरांगना टाइगर रिजर्व बाघों को लेकर तो चर्चा में है ही, क्योंकि यहां उम्मीद से बढ़कर बाघों की संख्या में बढ़त हुई है। देश में पाई जाने वाली गिद्ध की 9 प्रजातियों में से 7 प्रजातियां टाइगर रिजर्व में मौजूद हैं। इस समय सबसे ज्यादा संकट में भारतीय गिद्ध हैं, लेकिन पिछली दो गणनाओं में टाइगर रिजर्व में सबसे ज्यादा संख्या भारतीय गिद्धों की मिली थी। यही कारण है कि कैप्टिव ब्रीडिंग से जन्में भारतीय गिद्ध के बच्चों को विकसित करने टाइगर रिजर्व को चिन्हित किया गया था।
– एक साल में 492 से बढ़कर 870 हुई संख्या
टाइगर रिजर्व में स्थानीय गिद्धों की संख्या लगातार बढ़ रही है। पिछले साल अप्रेल 2024 में हुई ग्रीष्मकालीन गणना में कुल 492 गिद्ध वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व क्षेत्र में पाए गए थे, जबकि इस साल हुई ग्रीष्मकालीन गणना में टाइगर रिजर्व में स्थानीय गिद्धों की संख्या बढ़कर 870 हो गई है, इसमें 814 वयस्क व 56 अवयस्क गिद्ध शामिल थे। इस हिसाब से देखें तो एक साल के अंदर 378 गिद्ध बड़े हैं।
– बीमारी फैलने का डर है
प्रदेश में गिद्धों की सबसे ज्यादा हेल्दी जनसंख्या टाइगर रिजर्व की मानी गई है, इसके साथ छेड़छाड़ नहीं करना है। पहले प्लानिंग थी कि भोपाल में कैप्टिव ब्रीडिंग से जन्मे गिद्धों को टाइगर रिजर्व लाकर छोड़ेंगे, लेकिन बाद में डिसीजन हुआ कि वह पालतु होकर यहां आएंगे, ऐसा न हो कि कहीं कोई बीमारी न फैला दें। डॉ. एए अंसारी, उप संचालक, टाइगर रिजर्व