राजस्थान के इस शहर में होती है अनूठी होली, रंग नहीं हाथों में होता है गोला-बारूद
Unique Holi : राजस्थान के इस शहर में अनूठी होली खेली जाती है। यह होली फूलों और रंगों से नहीं गोला-बारूद से खेली जाती है। आखिर यह होली राजस्थान में कहां होती है? पढ़ें पूरी स्टोरी।
Unique Holi : राजस्थान में होली का सुरूर चढ़ रहा है। सभी अपनी तैयारियों में जुट गए हैं। बस अब इंतजार सिर्फ होली का है। पूरे देश में होली खेलने का अलग-अलग चलन है। राजस्थान में भी एक अनूठी होली खेली जाती है। इस होली में हाथों में रंग नहीं गोला-बारूद होता है। इस होली में हिस्सा लेने और इसे अपनी यादों में बसाने के लिए राजस्थान ही नहीं देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं। वहीं इस गांव की जनता होली खेलकर अपने पूर्वजों की बहादुरी को याद करते हैं। 500 साल से इस परंपरा का निर्वहन बदस्तूर जारी है।
राजस्थान के झीलों के शहर उदयपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर मेनार गांव में यह अनूठी होली खेली जाती है। मेनार गांव के ग्रामीण होली के अवसर पर जमरा बीज पर्व मनाते हैं। मेनार गांव पूरी दुनिया में बर्ड विलेज के नाम से विख्यात है। मेनार गांव में धुलंडी के अगले दिन शौर्य की झलक और इतिहास की महक बिखरती नजर आएगी। तलवारें खनकायी जाएगी, वहीं बारूदी धमाकों से रणभूमि का नजारा उभर आएगा।
15 को मनाया जाएगा जमरा बीज पर्व
करीब 500 वर्ष पूर्व मेनार गांव की जनता मुगलों की सेना को शिकस्त देने की याद में इस होली को मनाते हैं। मेनार में होलिका दहन 13 मार्च रात 11.28 बजे होगा। अगले दिन 14 को धुलंडी और 15 को जमरा बीज पर्व मनाया जाएगा।
इस दिन 5 हांस मोहल्लों से ओंकारेश्वर चौक पर लोग जुटेंगे। मेनारवासी मेवाड़ी पोशाक में सज-धज कर योद्धा की भांति दिखेंगे। ढोल की थाप पर कूच करते हुए हवाई फायर और तोप से गोले दागे जाएंगे। आधी रात में तलवारों से जबरी गेर खेली जाएगी। योद्धाओं की भांति पुरुष ढोल की थाप पर एक हाथ में खांडा और दूसरे में तलवार लेकर गेर नृत्य करेंगे।
महाराणा प्रताप के आखिरी वक्त में जब समूचे मेवाड़ में जगह-जगह मुगल सैनिकों ने छावनियां डाली हुई थी, उस दौरान मुगलों ने मेवाड़ को अपने अधीन करने की पूरी कोशिश की, पर महाराणा अमरसिंह प्रथम की अगुवाई में हमेशा मुगलों को मुंह की खानी पड़ी। मुगलों की एक मुख्य चौकी ऊंटाला वल्लभगढ़ (वर्तमान वल्लभनगर) में स्थापित थी, जिसकी उपचौकी मेनार में थी। महाराणा प्रताप के मृत्यु के बाद मुगलों के आतंक से त्रस्त होकर मेनार के मेनारिया ब्राह्मणों ने मुगल सेना को हटाने की रणनीति बनाई। ओंकारेश्वर चबूतरे पर निर्णय लेकर ग्रामीणों ने मुगलों की चौकी पर हमला बोला। युद्ध में मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया। वह दिन विक्रम संवत 1657 (सन 1600) चैत्र सुदी द्वितीया का था। युद्ध में मेनारिया ब्राह्मण भी वीरगति को प्राप्त हुए थे। मुगलों से जीत की खुशी में महाराणा ने मेनार की 52 हजार बीघा भूमि पर लगान माफ कर दिया था। मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा अमरसिंह प्रथम ने ग्रामीणों को शौर्य उपहार स्वरूप शाही लाल जाजम, नागौर के रणबांकुरा ढोल, सिर पर कलंगी, ठाकुर की पदवी और 17वें उमराव की पदवी दी थी।