पिता की उम्मीद और बेटे के लिए निरंतर संघर्ष
प्रिंस खालिद, अल-वलीद के पिता, ने कभी भी जीवन समर्थन बंद करने का निर्णय नहीं लिया। उन्होंने सोशल मीडिया के जरिये बेटे की मामूली प्रतिक्रियाओं जैसे उंगली हिलाने के वीडियो साझा किए और लोगों में उम्मीद जगाई। पिता का ये समर्पण और विश्वास उनकी अनोखी कहानी का सबसे बड़ा हिस्सा था।
निधन की खबर और पिता का भावुक संदेश
19 जुलाई 2025 को, ‘स्लीपिंग प्रिंस’ का निधन हो गया। उनके पिता ने सोशल मीडिया पर लिखा कि वे अल्लाह की मर्ज़ी पर पूरी तरह भरोसा करते हैं और गहरे दुःख के साथ अपने बेटे को अलविदा कहते हैं। यह संदेश उनके प्यार और धैर्य को दर्शाता है।
अंतिम संस्कार और शोक सभा
अल-वलीद का अंतिम नमाज़ 20 जुलाई 2025 को रियाद के Imam Turki bin Abdullah मस्जिद में पढ़ा गया। इस अवसर पर परिवार, दोस्त और राजपरिवार के सदस्य शामिल हुए। अंतिम विदाई में देश-विदेश से लोगों ने उनके प्रति सम्मान और संवेदना व्यक्त की।
‘स्लीपिंग प्रिंस’ की विरासत: उम्मीद और मानवता की मिसाल
अल-वलीद की कहानी सिर्फ एक राजकुमार की नहीं, बल्कि एक पिता की उम्मीद और परिवार के प्यार की मिसाल है। 20 साल तक कोमा में रहने के बावजूद, उनके लिए उम्मीद की लौ बुझी नहीं। उनकी कहानी आज भी लोगों के दिलों में एक प्रेरणा के रूप में जिंदा है।
विश्व समुदाय और धार्मिक संस्थाओं की प्रतिक्रिया
उनके निधन पर Global Imams Council सहित कई अंतरराष्ट्रीय धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं ने शोक व्यक्त किया। साथ ही, सऊदी राजपरिवार के लिए संवेदनाएँ भेजी गईं, जो इस दुखद क्षण में परिवार के साथ खड़े हैं।
दुनियाभर से प्रतिक्रियाएं: लोगों की आंखें नम
‘स्लीपिंग प्रिंस’ की कहानी ने न सिर्फ सऊदी अरब में बल्कि दुनियाभर में लोगों को भावुक कर दिया। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने उनके पिता की “अटूट उम्मीद” को सलाम किया। #SleepingPrince हैशटैग ट्रेंड करने लगा, जिसमें लोग कह रहे थे: “20 साल तक ज़िंदगी से लड़ना आसान नहीं होता। यह कहानी हमें प्यार और धैर्य सिखाती है।” धार्मिक नेताओं, प्रसिद्ध हस्तियों और आम लोगों ने इसे इंसानियत और आस्था की मिसाल बताया।
सुलगते सवाल: अब आगे क्या ?
अल-वलीद के निधन के बाद, ये सवाल उठ रहा है कि: क्या सऊदी शाही परिवार को अब चिकित्सा नीति में बदलाव लाना चाहिए? क्या लंबे कोमा मरीजों के लिए अलग मेडिकल दिशा-निर्देश बनाए जाएंगे? 20 साल की देखभाल की लागत और व्यवस्था पर पारदर्शिता आएगी? स्वास्थ्य क्षेत्र और नैतिक बहस में यह मामला रिफरेंस केस बन सकता है।
विज्ञान बनाम भावना
यह कहानी मेडिकल साइंस और भावनात्मक रिश्तों के बीच की जंग को उजागर करती है। डॉक्टरों ने कहा था कि “होश में आना असंभव है” -लेकिन परिवार ने 20 साल तक विश्वास नहीं खोया। यह मुद्दा कई समाजों में “कब जीवन समर्थन बंद किया जाए” जैसी बहस को और तेज़ कर रहा है। यह कहानी यह भी बताती है कि “कभी-कभी मेडिकल निर्णय सिर्फ दिमाग से नहीं, दिल से भी लिए जाते हैं।”