हसीना का तीखा आरोप-“देश को अमेरिका को बेच दिया गया”
पूर्व प्रधानमंत्री ने अमेरिका की भूमिका पर भी सवाल उठाते हुए दावा किया कि मोहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश को वैश्विक शक्तियों, विशेषकर अमेरिका के हाथों गिरवी रख दिया गया है। उन्होंने भावुक स्वर में कहा”मेरे पिता शेख मुजीब ने अमेरिका की मांगों के आगे सिर नहीं झुकाया और उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी। अब मैं भी उसी रास्ते पर हूं, लेकिन देश बेचने का ख्याल तक नहीं ला सकती।”
अवामी लीग पर पाबंदी: असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक!
हसीना ने अवामी लीग पार्टी पर लगे हालिया प्रतिबंध की भी तीखी आलोचना की है। उनका कहना है कि यह प्रतिबंध पूरी तरह अवैध हैं और बांग्लादेश के संविधान के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा “जिस संविधान को हमने खून-पसीने से पाया, उसे एक व्यक्ति जिसे जनता ने चुना ही नहीं, कैसे बदल सकता है? यूनुस के पास कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है।”
चरमपंथी कनेक्शन और सत्ता पर कब्ज़ा
हसीना ने इल्जाम लगाया कि यूनुस ने सत्ता में आने के लिए प्रतिबंधित अंतरराष्ट्रीय उग्रवादी संगठनों की मदद ली। उन्होंने कहा कि यूनुस ने “एक सुनियोजित साजिश” के तहत छात्रों के आक्रोश और विरोध प्रदर्शनों का लाभ उठाया, जिससे उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और देश से बाहर जाना पड़ा। हसीना ने रोष व्यक्त करते हुए कहा,“अब जेल खाली हैं, और आतंकवादी बाहर घूम रहे हैं। यह कैसा बांग्लादेश बन गया है?”
आम चुनावों से पहले सियासी उथल-पुथल
यह विवाद ऐसे समय पर सामने आया है, जब बांग्लादेश में आगामी दिसंबर 2025 में आम चुनाव होने हैं। इस बीच यह चर्चा भी तेज है कि यूनुस ने सेना के बढ़ते दबाव के चलते इस्तीफा देने की धमकी दी थी, लेकिन आपात बैठक में इस्तीफा न देने पर मान भी गए। यह दीगर बात है कि चुनाव की तारीख घोषित न करने पर उनसे इस्तीफा देने की मांग की जाती रही है।
ऐसे में देश की सियासत और अधिक अस्थिर होती दिख रही है।
“उग्रवादी नेता” कह कर किया करारा प्रहार
शेख हसीना ने यूनुस को “उग्रवादी नेता” करार देते हुए दोहराया, “ऐसे व्यक्ति को संविधान छूने का कोई अधिकार नहीं है। वह न तो चुने गए हैं और न ही उनके पास नैतिक या संवैधानिक आधार है। फिर वह कैसे कानूनों को बदल सकते हैं और एक राष्ट्रीय पार्टी पर प्रतिबंध लगा सकते हैं?”
बांग्लादेश गहरे राजनीतिक संकट और वैचारिक टकराव के दौर से गुजर रहा
बहरहाल बांग्लादेश इस समय गहरे राजनीतिक संकट और वैचारिक टकराव के दौर से गुजर रहा है। जहां एक ओर हसीना लोकतंत्र और संविधान के उल्लंघन की बात कर रही हैं, वहीं यूनुस पर सत्ता को चरमपंथियों को सौंपने का आरोप लगाकर पूरे दक्षिण एशिया की राजनीति में हलचल मचा दी है। आने वाले चुनाव और यूनुस की संभावित भूमिका को लेकर अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें बांग्लादेश पर टिकी हैं।
हसीना के आरोपों से मचा सियासी बवाल, यूनुस की चुप्पी पर उठे सवाल
शेख हसीना के मोहम्मद यूनुस पर लगाए गए “आतंकवादियों को सत्ता सौंपने” और “देश को अमेरिका को बेचने” जैसे तीखे आरोपों ने सिर्फ बांग्लादेश ही नहीं, बल्कि पूरी अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की आँखें खोल दी हैं। ढाका विश्वविद्यालय के छात्र नेताओं ने हसीना के दावे पर “चौंकाने वाला ,लेकिन ध्यान देने योग्य” प्रतिक्रिया दी है। विपक्षी दल BNP ने बयान जारी कर कहा, “शेख हसीना सत्ता से बाहर होने के बाद बौखलाहट में बेबुनियाद आरोप लगा रही हैं।” अमेरिकी विदेश विभाग ने इस घटनाक्रम पर चुप्पी साध रखी है, लेकिन अंदरखाने हलचल की खबरें हैं।
क्या यूनुस सामने आएंगे? चुनावी प्रक्रिया पर संकट के बादल
इस बयान के बाद सियासी विश्लेषकों की नजर अब मोहम्मद यूनुस की प्रतिक्रिया पर टिकी हुई है। क्या यूनुस प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे ? क्या वे दिसंबर 2025 के चुनाव से पहले इस्तीफा देंगे, जैसा कि कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है? चुनाव आयोग की स्थिति भी स्पष्ट नहीं है। क्या वे निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित कर पाएंगे? सूत्रों के हवाले से जानकारी मिल रही है कि यूनुस आगामी सप्ताह संयुक्त राष्ट्र की एक उच्चस्तरीय बैठक में शामिल होने वाले हैं, जहां वे अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने की कोशिश करेंगे।
सेना की भूमिका और छात्र आंदोलन का सच
शेख हसीना ने भले ही यूनुस पर आरोप मढ़े हों, लेकिन असली ताकत किसके पास है-सेना या यूनुस ? सूत्र बताते हैं कि सेना फिलहाल “निष्पक्ष पर्यवेक्षक” की भूमिका में है, लेकिन बैकडोर बैठकों का दौर तेज है।
छात्र आंदोलन को लेकर भी दो मत उभर रहे हैं
एक वर्ग इसे जनसामान्य का गुस्सा बता रहा है। वहीं दूसरा इसे “आर्टिफिशियल क्रांति” मानता है, जिसे उच्च वर्गीय हितों और विदेशी फंडिंग से हवा दी गई। पॉलिटिकल इनपुट : इस रिपोर्ट की जानकारी अवामी लीग के सोशल मीडिया विंग की ओर से जारी किए गए ऑडियो क्लिप, फेसबुक स्टेटमेंट्स, और अनाम उच्च-स्तरीय सूत्रों से ली गई है। विश्लेषण के कुछ हिस्से बांग्लादेशी स्वतंत्र पत्रकार नादिया खान की ओर से शेयर की गई विशेष इनसाइट्स पर आधारित हैं, जिन्हें फिलहाल बांग्लादेश सरकार ने नजरबंद कर रखा है।