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बिना ब्रेक लिए डबल शिफ्ट में ड्यूटी करते हुए अगर सो गए तो कोई अपराध नहीं : हाई कोर्ट

सोने के अधिकार का महत्व और शिफ्ट में काम करने वालों के कार्य-जीवन संतुलन पर जोर देते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य परिवहन निगम के एक कांस्टेबल को ड्यूटी के दौरान सोने में कोई दोष नहीं पाया क्योंकि उसे बिना ब्रेक के 60 दिनों तक हर दिन डबल शिफ्ट (16 घंटे) में काम करने के लिए मजबूर किया गया था।

बैंगलोरFeb 25, 2025 / 11:38 pm

Sanjay Kumar Kareer

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केकेआरटीसी के कर्मचारी का निलंबन आदेश रद्द किया

बेंगलूरु. सोने के अधिकार का महत्व और शिफ्ट में काम करने वालों के कार्य-जीवन संतुलन पर जोर देते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य परिवहन निगम के एक कांस्टेबल को ड्यूटी के दौरान सोने में कोई दोष नहीं पाया क्योंकि उसे बिना ब्रेक के 60 दिनों तक हर दिन डबल शिफ्ट (16 घंटे) में काम करने के लिए मजबूर किया गया था।
कल्याण कर्नाटक सडक़ परिवहन निगम (केकेआरटीसी) के कांस्टेबल चंद्रशेखर को 1 जुलाई, 2024 को निलंबित कर दिया गया था, जब सोशल मीडिया और मैसेजिंग प्लेटफॉर्म पर ड्यूटी के दौरान सोते हुए एक वीडियो वायरल हुआ था।
न्यायाधीश एम. नागप्रसन्ना ने चंद्रशेखर की याचिका को स्वीकार करते हुए केकेआरटीसी के कोप्पल डिवीजन के अनुशासनात्मक प्राधिकारी की ओर से पारित निलंबन आदेश को रद्द कर दिया है। हालांकि केकेआरटीसी ने निलंबन आदेश को उचित ठहराया था, लेकिन न्यायालय ने पाया, निगम ने इस तथ्य से इनकार नहीं किया कि कांस्टेबलों के पदों पर कर्मियों की कमी के कारण चंद्रशेखर को बिना ब्रेक के 60 दिन तक प्रतिदिन 16 घंटे काम करना पड़ा।
साथ ही, न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता के निलंबन की सिफारिश करने वाले निगम के सतर्कता विभाग ने भी एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी कि डिपो में केवल तीन कांस्टेबल थे और मौजूदा कर्मचारियों पर काम का बोझ बहुत अधिक है, जबकि डिपो के सुचारू संचालन के उद्देश्य से दो और कांस्टेबल नियुक्त करने का सुझाव दिया।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को बिना ब्रेक के 60 दिनों तक 24 घंटे में दो शिफ्टों में अधिक काम करना पड़ता है। इसलिए, याचिकाकर्ता को निलंबित करने की कार्रवाई सद्भावना की कमी से ग्रस्त है।
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता की ड्यूटी एक ही शिफ्ट तक सीमित रहती और तब ड्यूटी के दौरान वह सोता तो निस्संदेह यह कदाचार माना जाएगा, लेकिन मामले के वर्तमान विशिष्ट तथ्यों में ड्यूटी के घंटों के दौरान याचिकाकर्ता के सोने में कोई दोष नहीं पाया जा सकता है।
न्यायालय ने यह भी बताया कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुबंधों में कार्य और जीवन संतुलन को मान्यता दी गई है और कार्य के घंटे सप्ताह में 48 घंटे और दिन में 8 घंटे से अधिक नहीं होने चाहिए, सिवाय असाधारण परिस्थितियों के, जैसा कि अनुबंधों में संकेत दिया गया है।

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