मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों पर नियंत्रण की कोशिश: असजद मियां
जमात रज़ा-ए-मुस्तफा की ओर से जारी आधिकारिक बयान में कहा गया कि यह संस्था आला हज़रत दरगाह व तजुश्शरिया की 107 वर्षों पुरानी धार्मिक विरासत से जुड़ी है। संस्था के प्रमुख असजद मियां ने वक्फ कानून में किए गए बदलावों को इस्लामी परंपराओं और धार्मिक अधिकारों पर सीधा हमला बताया। उन्होंने कहा कि वक्फ एक पूर्णतः धार्मिक व्यवस्था है, जो मुस्लिम संपत्तियों की हिफाज़त और धार्मिक उपयोग सुनिश्चित करती है। उन्होंने आरोप लगाया कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना और संपत्तियों की दोबारा जांच की प्रक्रिया शुरू करना संविधान की मूल आत्मा के खिलाफ है। असजद मियां ने यह भी कहा कि यह कदम मुस्लिम वक्फ संपत्तियों को माफिया के हवाले करने और उन पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने की साजिश का हिस्सा है।
“वक्फ संपत्तियां हमारी धार्मिक-सांस्कृतिक धरोहर: सलमान मियां
संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सलमान हसन खान (सलमान मियां) ने कहा कि वक्फ संपत्तियां सिर्फ जमीन-जायदाद नहीं, बल्कि मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सामाजिक विरासत का अहम हिस्सा हैं। उन्होंने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को नियुक्त करने, सरकारी अधिकारियों को सर्वेक्षण के लिए विशेषाधिकार देने और ट्रिब्यूनल के अधिकारों को सीमित करने जैसे प्रावधानों पर आपत्ति जताई है।
सुप्रीम कोर्ट में चार सदस्यीय वकील टीम ने दायर की याचिका
जमात रज़ा-ए-मुस्तफा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में वक्फ संशोधन कानून को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। यह याचिका वरिष्ठ अधिवक्ता रंजन कुमार दुबे, प्रिया पुरी, तौसीफ खान और मुहम्मद ताहा की चार सदस्यीय कानूनी टीम के माध्यम से दाखिल की गई।