उनके पत्थर लोग ले जा रहे हैं। इनके बचाव के लिए अभी तक कोई ठोस योजना नहीं बनाई गई है। नष्ट होती शिल्प कलाकृतियों को बचाना जरूरी है। पौराणिक महत्व वाले एक दर्जन घाट जर्जर हो चुके हैं। घाटों की मरम्मत करवाने की मांग श्रद्धालु लम्बे समय से करते आ रहे है। राज्य सरकार ने सात साल पहले चम्बल नदी किनारे केशव घाट से नाव घाट तक चबूतरों पर छतरियां बनाई थी, लेकिन पचास लाख की लागत में बनी छतरियां पहली बारिश से ही उखड़ गए। इनके पत्थरों को लोग उठा कर ले गए। लाखों रुपए खर्च करने के बाद संवेदक भी काम अधूरा छोड़ कर चला गया।
पर्यटन के लिए आवश्यक
राज्य सरकार चाहे तो पौराणिक केशव धाम व चम्बल नदी के किनारों को पर्यटन की दृष्टि से विकसित कर सकती है। यहां पर्यटन की संभावनाएं हैं, लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। चम्बल के किनारे राजराजेश्वर महादेव मंदिर कल्याण राय भगवान मंदिर होते हुए जम्बूद्वीप तक किनारों को विकसित किया जा सकता है। पास ही जामुनिया द्वीप को विकसित कर बोट संचालित करने की अपार संभावनाएं हैं।