पर्यटन ग्राम सावरवानी में महिलाएं शुद्ध देशी घी बेचकर हजारों रुपए कमा रही हैं। बीते दो सालों में सावरवानी में पर्यटकों को एक हजार तीन सौ पचास किलो घी बेचा जा चुका है, जिससे गांव में करीबन 11 लाख रुपए की आमदनी हुई है। यहां की महिलाएं अपने घर के आंगन में उगाए गए पपीते, खेतों में उगी सब्जियां और दाल बेचकर आत्मनिर्भर बनीं हुई हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आठ मार्च को ग्रामीण अर्थव्यवस्था में उनके योगदान को स्मरण करना होगा।
देखा जाए तो सावरवानी में महिलाएं सुबह-सुबह दूध से मक्खन निकालकर और मक्खन से घी निकालने का कार्य करती हैं। घर के आंगन में बिल्कुल देशी अंदाज में पर्यटकों के सामने ही घी निकाला जाता है। कई बार पर्यटक भी इस प्रक्रिया का आनंद उठाते हैं। सावरवानी के घी की धूम देश-विदेश में है, जिसका उदाहरण यहां हुई घी की बिक्री है। बीते दो सालों में चंद्रा बाई, शांति बाई, शारदा बाई, सरस्वती बाई, सिमिया बाई, राधा बाई, कला बाई ने पर्यटकों को एक हजार तीन सौ पचास किलो घी बेचा है, यह अपने आप में एक अनूठा रेकॉर्ड है। आठ सौ रुपए प्रतिकिलो के मान से बिके घी की कुल कीमत 11 लाख 80 हजार रुपए होती है।
आइएएस अधिकारी और पर्यटक घर तक ले गए घी
देश व प्रदेश से पर्यटन ग्राम सावरवानी घूमने आए कई आईएएस अधिकारी, दिल्ली-चंडीगढ़, महाराष्ट्र-गुजरात के व्यापारियों के साथ यहां आने वाले नौकरीपेशा पर्यटक खाने में घी मिलने पर इसके स्वाद को भूल नहीं पाए। कुछ मर्तबा ऐसा भी हुआ कि गांव में जितना भी घी था, पूरा ही खरीद कर ले गए। इसी से यहां घी की बिक्री का रेकॉर्ड बन गया है। इसके अलावा सावरवानी आने वाले पर्यटक यहां से घर के आंगन में उगाए गए पपीते और सब्जियां, लकड़ी के खिलौने भी खरीद कर जाते हैं।
मजदूर से बकरीपालक बनी सुनीता
अमरवाड़ा विकासखंड के लहगडुआ ग्राम में रहने वाली सुनीता बंजारा की कहानी एक ऐसी महिला की है, जिसने अपनी मेहनत और हौसले से न केवल अपने जीवन को बदला बल्कि अपने गांव की अन्य महिलाओं के लिए भी एक मिसाल कायम की। सुनीता शुरुआत में मजदूरी करती थीं। आय चार से पांच हजार रुपए थी। बकरी पालन में रुचि ली। आजीविका समूह से छोटे-छोटे ऋण लेकर इस काम को शुरू किया। अब इस बकरी पालन से महीने में 15-20 हजार रुपए कमा रही हैं। सुनीता की कहानी बताती है कि कैसे एक महिला अपनी मेहनत और हौसले से अपनी जिंदगी को बदल सकती है।
वंदना ने जैविक खेती के साथ बनाया वर्मी कम्पोस्ट
ग्राम मारई में रहने वाली वंदना इंगले अपने दो एकड़ के खेत में वर्तमान में जैविक खेती कर रही हैं। साथ ही वर्मी कम्पोस्ट का अपने खेत में उपयोग एवं बिक्री कर अच्छा जीवन यापन कर रही हैं। पहले रासायनिक खेती करती थी। बाद में जैविक खेती अपनाया। केंचुआ टांका बनाया। इसमें केचुएं का उपयोग कर साल भर खाद निकालती हैं। इस खाद को छानकर पैकेजिंग करके अच्छे दामों में बेच रही है। साथ ही ये जीवामृत नीमास्त्र, पांचपत्ती काढ़ा, ब्रम्हास्त्र आदि की बॉटलिंग करके भी विक्रय कर रही हैं।
नॉन बीटी कपास की खेती कर बना रहीं राखी
सौंसर के ग्राम पारडसिंगा की निवासी श्वेता भट्ट नॉन बीटी कपास की खेती कर रही हैं। इसके साथ ही इस धागा का रेशा बनाकर उसे प्राकृतिक रंगों से रंगती है। फिर केमिकल फ्री रेशे से बीज से राखी बना रही है। इसे बनाने में उनसे 300 से अधिक महिलाएं जुड़ी हैं। इस राखी के साथ बीज युक्त पटाखे का निर्माण भी कर रही है। फिर फसल अवशेषों से पेपर का निर्माण पर भी ध्यान है। जामसांवली और विभिन्न मंदिरों से फूल एकत्रित करके उससे प्राकृतिक कलर बना रही हैं। ये धागे को रंगने के काम आता है। लुप्त होते बीजों से गहनों का निर्माण का भी व्यवसाय है।
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