मशीनें छीन रहीं मजदूरों का हक जिले की कई पंचायतों में तालाब गहरीकरण, मिट्टी खुदाई, सड़क मरम्मत और कुओं के निर्माण जैसे कार्य जेसीबी व अन्य मशीनों से कराए जा रहे हैं। इससे मजदूरों को काम से वंचित होना पड़ रहा है। शासन की मंशा थी कि मनरेगा से ग्रामीणों को रोजगार और आर्थिक सुरक्षा मिले, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों की अनदेखी से यह योजना दम तोड़ती नजर आ रही है।
38 दिन में सिमटा 100 दिन का रोजगार वित्तीय वर्ष 2024-25 में जिले में मनरेगा के तहत 4.53 लाख श्रमिक पंजीकृत थे, लेकिन इनमें से केवल 1.54 लाख श्रमिकों को ही काम मिल पाया। औसतन प्रति श्रमिक को महज 38 दिन का ही रोजगार मिला, जो कि योजना के न्यूनतम 100 दिन के वादे का उल्लंघन है।
फर्जीवाड़े का आरोप, बढ़ा पलायन कई गांवों के ग्रामीणों द्वारा लगातार आरोप लगाए जाते हैं कि पंचायत स्तर पर ठेकेदार और पदाधिकारी मशीनों से काम करवा रहे हैं और बाद में फर्जी मस्टररोल भरकर मजदूरों के नाम पर भुगतान निकाल रहे हैं। इससे वास्तविक मजदूरों को न काम मिल रहा है, न मजदूरी। मजबूर होकर कई परिवार रोजी-रोटी की तलाश में पलायन कर रहे हैं। मजदूरों का कहना है कि वे महीनों से काम की मांग कर रहे हैं, लेकिन पंचायतों से कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिलता। उन्हें यह भी नहीं बताया जा रहा कि अगला काम कब और कैसे मिलेगा। इस स्थिति को लेकर ग्रामीणों में भारी नाराजगी है।पत्रिका व्यूमनरेगा जैसी जनहितकारी योजना की जमीनी हकीकत यह दर्शाती है कि यदि समय रहते प्रशासनिक स्तर पर सख्त निगरानी और जवाबदेही तय नहीं की गई, तो योजना का उद्देश्य पूरी तरह निष्फल हो जाएगा। ग्रामीणों ने शासन से मांग की है कि पंचायतों में जांच कर मशीनों से कराए जा रहे कामों पर रोक लगाई जाए और मजदूरों को वास्तविक हक दिलाया जाए।