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दमोह

कानून की शिक्षा के लिए जिले में नहीं है सरकारी लॉ कॉलेज

दमोह. कानून की पढ़ाई के लिए जिले में शासकीय लॉ कॉलेज नहीं है। इसको लेकर स्थानीय स्तर पर किए गए प्रयास अब तक सफल नहीं हो पाए हैं। बता दें कि लॉ के क्षेत्र में बच्चों का रूझान काफी बढ़ रहा है। बीकॉम, बीएससी और आट््र्स की अपेक्षा बच्चे लॉ की फील्ड पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं। हालांकि शहर में एक निजी लॉ कॉलेज हैं, जहां सौ छात्रों को दाखिला मिल जाता है, लेकिन अन्य छात्रों को पढ़ाई करने के लिए बाहर ही जाना पड़ रहा है।

दमोहFeb 08, 2025 / 01:55 am

हामिद खान

कानून की शिक्षा के लिए जिले में नहीं है सरकारी लॉ कॉलेज

कानून की शिक्षा के लिए जिले में नहीं है सरकारी लॉ कॉलेज

हर साल हजारों छात्र बाहरी जिलों में ले रहे प्रवेश, परिवार पर पड़ रहा आर्थिक बोझ

दमोह. कानून की पढ़ाई के लिए जिले में शासकीय लॉ कॉलेज नहीं है। इसको लेकर स्थानीय स्तर पर किए गए प्रयास अब तक सफल नहीं हो पाए हैं। बता दें कि लॉ के क्षेत्र में बच्चों का रूझान काफी बढ़ रहा है। बीकॉम, बीएससी और आट््र्स की अपेक्षा बच्चे लॉ की फील्ड पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं। हालांकि शहर में एक निजी लॉ कॉलेज हैं, जहां सौ छात्रों को दाखिला मिल जाता है, लेकिन अन्य छात्रों को पढ़ाई करने के लिए बाहर ही जाना पड़ रहा है।
निजी कॉलेज होने के कारण गरीब तबके के बच्चों को ज्यादा फीस देनी पड़ रही है। इधर, संभाग की बात करें तो यह स्थिति लगभग सभी जिलों में हैं। सागर के बीना को छोड़ दें तो कही भी सरकारी लॉ कॉलेज नहीं खुल पाया है। बताया जाता है कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया की जटिल प्रक्रिया के कारण ऐसा हो रहा है, पर प्रक्रिया में बदलाव किए जाने या फिर प्रक्रिया को पूरा करने की दिशा में जिम्मेदार ध्यान नहीं दे रहे हैं।

हर साल ढाई हजार छात्र हो रहे पास आउट

हर जिले में कक्षा १२वीं और कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने वाले विद्यार्थयिों की संख्या लगभग ढाई हजार है। इसमें से लॉ की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी भी होते हैं। अधिकांश सरकारी कॉलेज में दाखिले का प्रयास करते हैं। इनमें डॉ. हरिङ्क्षसह गौर केंद्रीय विवि सागर, भोपाल, इंदौर, जबलपुर जैसे शहर शामिल हैं। सरकारी कॉलेज में प्रवेश न मिल पाने की वजह से कई छात्र वापस लौट आते हैं और अन्य विषय लेकर अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं।
आसान नहीं रहता दाखिला मिलना
मप्र में दो सेंट्रल यूनिवर्सिटी हैं। इनमें डॉ. हरिङ्क्षसह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय शामिल हैं। यहां पर लॉ की पढ़ाई करने का सपना हर किसी छात्र का होता है, लेकिन सीमित सीट होने के कारण यहां पर दाखिला मिलना काफी मुश्किल रहता है। अधिकांश सीटें बाहरी राज्यों के बच्चों से भर जाती हैं।
पत्रिका व्यू
जिले में सरकारी लॉ कॉलेज न होना अजीब लगता है। मैंने खुद प्रायवेट कॉलेज से लॉ की पढ़ाई की। प्रायवेट कॉलेज में लॉ की पढ़ाई करना आसान नहीं होता। सरकारी कॉलेज की अपेक्षा काफी ज्यादा फीस देना पड़ती है। लॉ के क्षेत्र में क्लेट की तैयारी के लिए भी यहां कोई सुविधा नहीं है। लॉ की पढ़ाई करने के बाद जज बनने की तैयारी के लिए भी यहां कोई सुविधा नहीं है। शासन-प्रशासन को चाहिए कि विद्यार्थियों की सुविधा के लिए सरकारी लॉ कॉलेज खोले जाने के
प्रयास करें।
सहिब खान, युवा अधिवक्ता

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