एक वह दौर भी था जब खासतौर से युवा वर्ग इसकी अहमियत तब समझता था जब मैच का प्रसारण होता था। वहीं अंग्रेजी या हिंदी समाचारों के प्रसारण को सुनकर लोग देश और विदेश की खबरों की जानकारी लेते थे। अब ऐसा नहीं है। रेडियो घर की चौखट से ही नहीं बल्कि समाज से भी दूर हो गया। अब सब कुछ स्मार्टफोन में ही उपलब्ध है जो सभी हाथों में है लेकिन रेडियो तो गिने चुने लोगों के पास ही बचा होगा। विश्व रेडियो दिवस को लेकर 2011 में, यूनेस्को के सदस्य राज्यों ने 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के रूप में घोषित किया। जहां पर 2013 में इसे पूर्ण रुप से एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में अपनाया गया।
राजस्थान के बालोतरा जिले के मोकलसर निवासी एवं हुब्बल्ली प्रवासी उद्योगपति व समाजसेवी उकचन्द बाफना कहते हैं, पहले के दौर में रेडियो ही समाचार एवं मनोरंजन का प्र्रमुख साधन हुआ करता था। लोगों में रेडियो सुनने को लेकर बहुत क्रेज हुआ करता था। लोग अमीन सायनी के गाने घंटों रेडियो पर सुनते थकते नहीं थे। कई बुलेटिन लोग नियमित रूप से सुनते थे। कई फरमाइसी गाने रेडियो पर काफी प्रसिद्ध हुआ करते थे। रेडियो सुनने से व्यक्ति खुद को एकदम तनाव मुक्त महसूस करता था। टीवी से भी अधिक आनंद रेडियो सुनने में आता था। आजकल रेडियो का क्रेज नहीं के बराबर है। रेडियो लोग अब खरीदते भी नहीं है। फोन में ही रेडियो होने से लोग कभी-कभार सुन लेते हैं। या फिर कार में रेडियो पर गाने सुन लेते हैं। वैसे अब रेडियो का कोई क्रेज नहीं रह गया है।