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पत्रिका बुक फेयर : गीता समझने और जीवन में उतारने के लिए है: गुलाब कोठारी

Patrika Book Fair 2025: गीता को इस भाव से पढ़ना चाहिए कि मानो कृष्ण हमसे कह रहे हैं। इसके लिए हमें अर्जुन बनना पड़ेगा। अर्जुन बनकर गीता पढ़ने से ही इसका उपयोग समझ में आएगा।

जयपुरFeb 18, 2025 / 09:52 pm

Kamlesh Sharma

Gulab Kothari
जयपुर। गीता को इस भाव से पढ़ना चाहिए कि मानो कृष्ण हमसे कह रहे हैं। इसके लिए हमें अर्जुन बनना पड़ेगा। अर्जुन बनकर गीता पढ़ने से ही इसका उपयोग समझ में आएगा। इसमें जीवन के मूल प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे। किसी भी युग में आए प्रश्नों के उत्तर नहीं बदलेंगे। समय के साथ सभ्यता बदलती है विज्ञान नहीं बदलता। गीता ज्ञान भी है और विज्ञान भी है।
यह बात राजस्थान पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने जवाहर कला केंद्र में चल रहे पत्रिका बुक फेयर में मंगलवार को उनके ग्रंथ ‘गीता विज्ञान उपनिषद्’ पर चर्चा के दौरान कही। उन्होंने कहा कि गीता शरीर और आत्मा की बात करती है। गीता ज्ञान-ब्रह्म, कर्म का ग्रंथ है। जो गीता को विषय की तरह पढ़ रहे हैं उन्हें ये ध्यान देना चाहिए कि गीता समझने और जीवन में उतारने के लिए है।
गीता विज्ञान उपनिषद् आने वाले कल की गीता है। विज्ञान शब्द से तात्पर्य किताबों में जो विज्ञान है वह नहीं है। इसका आधार वही है, आधार कभी बदलता नहीं है। विज्ञान शब्द नई पीढ़ी को अलग तरह से दु:ख दे रहा और पुरानी पीढ़ी को अलग ढंग से दु:ख दे रहा है। ब्रह्मांड में जितने घटक हैं, वे सारे घटक शरीर में हैं। यदि शरीर को समझ लो तो ब्रह्मांड समझ में आ जाएगा। कोठारी ने कहा, गीता सृष्टि का विज्ञान है और यह सभी प्राणियों पर समान नियम लागू होता है।

विज्ञान दृष्टि से गीता की विवेचना: प्रो. दुबे

जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर के कुलपति प्रो. रामसेवक दुबे ने कहा, विज्ञान की दृष्टि से गीता की विवेचना पहले नहीं हुई। गीता सभी प्राणियों के लिए है। इस ग्रंथ में सभी जिज्ञासाओं का समाधान है। गीता उपदेश में अर्जुन से कहा गया…उठो। इस पर ग्रंथ में समझाया गया है कि किसी भी दशा में हो, उठो, जाग्रत हो, तभी ज्ञान की प्राप्ति होगी। इसलिए यह आज के युवाओं के लिए उपयोगी है।
प्रो. दुबे ने कहा, शोक में पड़े रहोगे तो भगवत की प्राप्ति नहीं होगी। मनुष्य हृदय की दुर्बलता के कारण शोक में रहता है। अर्जुन जब युद्ध के मैदान में स्वजनों को देख रहे थे तब उन्हें शोक हुआ। आज भी तो परिवार के लोग ही लड़ रहे हैं और हम शोक में चले जाते हैं। कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि हृदय की दुुर्बलता से दूर हो जाओ। यही गीता का फलितार्थ है। शोक में हैं तब तक गीता शास्त्र को नहीं समझ पाएंगे। कर्मफल की चिंता करना और चिंता छोड़ना अपने वश में नहीं है। फल की इच्छा हो ही जाती है, इच्छा के प्रति आसक्ति होना दु:ख का कारण है। इसलिए शोक नहीं चिंतन करो और कर्म में लग जाओ।
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युवा पीढ़ी को गीता के भावों को जानने में मदद मिलेगी

मॉर्डनेटर सुकुमार वर्मा ने कहा, गीता पर सैकड़ों व्याख्याएं हैं, लेकिन इस ग्रंथ में कर्म और ब्रह्म के विज्ञान भाव को प्रस्तुत किया है। यह पाठकों के लिए ज्ञान का स्रोत है। लेखक की 45 वर्षों से चल रही ज्ञान की धारा का अद्भूत परिणाम है। इसमें कृष्ण ने अपने को सातों विभक्तियों में अभिव्यक्त किया है।

श्वेता तिवारी ने कहा, गीता विज्ञान उपनिषद् आज के युग में प्रासांगिक है। इससे गीता का सार सरलता से समझ सकते हैं। उन्होंने इस ग्रंथ पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रतिक्रिया का जिक्र करते हुए कहा, पुस्तक के माध्यम से पाठकों, विशेषकर आज की युवा पीढ़ी को गीता के भावों को और उसमें विज्ञान के समाहार को जानने में मदद मिलेगी। गीता के ज्ञान रूपी प्रकाश से अधिक से अधिक लोगों का जीवन आलोकित होगा।

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