जैन दंपती ने हिंदू विवाह अधिनियम(Hindu Marriage Act) के तहत परिवार न्यायालय में तलाक का केस फाइल किया। प्रधान न्यायाधीश पारिवारिक न्यायालय की कोर्ट ने 8 फरवरी को आदेश पारित किया। इसमें उन्होंने जैन समाज को अल्पसंख्यक मानते हुए उनकी पूजा पद्धति और धार्मिक आस्थाओं को चिह्नित करते हुए उन्हें हिंदू धर्म से अलग बता हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक से इनकार कर अर्जी खारिज कर दी थी। इस फैसले के खिलाफ दंपती ने हाईकोर्ट में अपील की।
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8 फरवरी को परिवार न्यायालय के फैसले के आधार पर 28 और तलाक की अर्जियां खारिज की गई थीं। इनमें से 5 केस हाईकोर्ट में अपील के रूप में आ चुके हैं। इन सभी केसों में हाईकोर्ट के ताजा आदेश के तहत दोबारा अपील करने का अधिकार पति-पत्नी को मिलेगा।
हाईकोर्ट को भेजना चाहिए था केस
हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय को फटकार लगाते हुए आदेश में सिविल प्रक्रिया संहिता के कानून का उल्लेख किया है। इसमें कहा कि यदि किसी अधिनियम, अध्यादेश या विनियमन में निहित किसी प्रावधान की वैधता पर सवाल खड़ा होता है तो निचली अदालत उसे हाईकोर्ट को राय के लिए भेज सकती है। इस पर हाईकोर्ट आदेश कर सकता है। इस केस में कोर्ट ने वकीलों को अपनी बात रखने का अवसर ही नहीं दिया। ये भी पढें –
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कोर्ट ने 14 पेज के आदेश में कहा, केंद्र सरकार ने 2014 में जैन समाज को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया। यह सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा देने के लिए था। इसके तहत मौजूदा कानूनों के प्रावधानों को संशोधित, अमान्य या अतिक्रमित नहीं कर रही है। अधिसूचना में जैन समाज को किसी भी कानून से बाहर रखने का प्रावधान नहीं किया। संविधान के संस्थापकों और विधायिका ने हिंदू विवाह अधिनियम के लिए हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन को एकीकृत किया है। कोर्ट ने निचली अदालत के 8 फरवरी के फैसले को खारिज कर परिवार न्यायालय को कानूनी कार्रवाई को केस वापस भेज दिया।