बैंड-बाजों के साथ निकली ‘भूतों की बारात’
गुर्रा गांव की सड़कों पर रंगपंचमी के दिन बैंड-बाजों के साथ भूतों की बारात निकाली गई। इस बारात में ग्रामीण भूत, पिशाच और डरावने किरदारों के रूप में सजे नजर आए।अनोखी वेशभूषा और रहस्यमय माहौल ने इसे खास बना दिया। लोग नाचते-गाते हुए इस जुलूस में शामिल हुए और पूरे आयोजन को एक उत्सव का रूप दे दिया।
‘भूत उतारने’ के लिए जलाई जाती है होली
बारात के बाद गांव में भूत-प्रेत बाधाओं को दूर करने के लिए एक विशेष होली जलाई जाती है। मान्यता है कि इस प्रक्रिया से गांव की सभी नकारात्मक शक्तियां समाप्त हो जाती हैं और किसी को कोई परेशानी नहीं होती। यह आयोजन धार्मिक आस्था और परंपरा का संग है, जिसे स्थानीय लोग बड़े श्रद्धा भाव से निभाते हैं। पूजे जाते हैं पीर बाबा और शिवलिंग
गुर्रा गांव धार्मिक सद्भाव का भी प्रतीक है। यहां पीर बाबा की मजार और शिवलिंग एक ही स्थान पर स्थित हैं, जहां दोनों समुदायों के लोग आकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। यह स्थान सिर्फ भूत-प्रेत बाधा मुक्ति के लिए ही नहीं, बल्कि सर्वधर्म सद्भाव का संदेश देने के लिए भी प्रसिद्ध है।
मंदिर के मुखिया की अनोखी कहानी
मंदिर के मुखिया रिखीराम कहार बताते हैं कि जब वे 12 साल के थे, तब किसी परेशानी के कारण उनके परिवारजन उन्हें खंडवा के पास स्थित सैलानी बाबा की मजार पर लेकर गए थे। वहां से स्वस्थ होने के बाद उन्होंने अपने भीतर एक दिव्य शक्ति का अनुभव किया जिससे वे लोगों की समस्याओं को दूर करने लगे। इसके बाद गांव में ही एक धार्मिक स्थल का निर्माण किया गया जहां लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आने लगे।
भूतों की बारात बनी क्षेत्र का बड़ा आयोजन
समय के साथ इस धार्मिक स्थल की ख्याति बढ़ी और दूर-दराज से लोग यहां आने लगे। इसी के साथ रंगपंचमी पर भूतों की बारात निकालने की परंपरा भी प्रसिद्ध हो गई। अब यह आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि गांव का सबसे बड़ा उत्सव बन चुका है, जिसमें सैकड़ों लोग शामिल होते