शायद जिम्मेदारों को ऐसा लगा होगा कि, बाप की जगह जब बेटा उनके काम की पूर्ति कर रहा है तो क्यों ना उनका पूरा वेतन हर माह निकल ही लिया जाए।भले ही शासकीय दस्तावेजों में श्यामलाल रोजाना
स्कूल पहुंच रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि उनका बेटा उनकी जगह स्कूल में सेवा दे रहा है। जिस विद्यालय से बच्चों को ज्ञान परोसा जा रहा है उसी विद्या के मंदिर से इस तरह से धोखाधड़ी उचित नही है।
आखिर अनुमति कैसी मिली
समझ से परे यह है कि, बाप की जगह बेटे से सेवा लेने की अनुमति आखिर स्थानीय स्कूल प्रबंधन को कैसे और किसने दे दी। क्या स्थानीय स्कूल प्रबंधन ने अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं दी या फिर उन्हें अंधेरे में रखे रहा और तो और स्कूलों की जांच में जाने वाले अधिकारियों ने भी कभी इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया। खैर यह तो जांच का विषय है और जांच के बाद ही इस मामले की पूरी पिक्चर सामने आएगी। आपके माध्यम से सूचना मिली है इस मामले की जांच कराई जाएगी और दोषी पाए जाने पर नियमानुसार कार्रवाई होगी। – चित्रकांत चार्ली ठाकुर, अपर कलेक्टर