शोध में सामने आई बड़ी बात
गौरतलब है कि दिसंबर 2023 में कबूतर के संपर्क में रहने से हुई एलर्जी के कारण 10 साल की बालिका के फेफड़े खराब हो गए थे। बच्ची को सांस लेने में तकलीफ हुई तब बीमारी का पता चला। दरअसल, कबूतर बालकनी व एसी डक्ट में अपने घोंसले बना लेते हैं। बाद में उनकी बीट व पंखों के अवशेष बालकनी में जमा होते रहते हैं। साफ सफाई करते समय ये अवशेष सांस के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश कर संक्रमण फैलाते हैं। शोध में सामने आया कि गत 5 वर्षों में कबूतरों के संपर्क में आने से श्वसन संबंधी बीमारियों में 10 से 15 फीसद की वृद्धि हुई है।बीट व पंखों में 20 से अधिक पैथोजेनिक बैक्टीरिया
शोध में कबूतर के बीट व पंखों में 20 से अधिक पैथोजेनिक बैक्टीरिया और फंगस पाए गए। बेसिलस एसपीपी, ई-कोलई, सेल्मोनेला एसपी, प्यूडोमोनस एसपी, क्लेब्साइला एसपी व फंगस एस्परजिलस, फ्यूसारियम, माइक्रोस्पोरम, क्राइसोस्पोरियम, पेनीसिलीयम, ट्राइकोफीटोन, व केनडिडा को आइसोलेट किया है। ये खतरनाक बीमारियों के कारक हैं। ऐरोमोनस एसपी, सेरेटीया एसपी, प्रोटीयस, स्टेफीलोकस, रिजोपस, फुसारियम, अल्टर्नेरिया और माइकोबेक्टेरियम जैसे घातक सूक्ष्मजीवों के भी वाहक हैं।Good News : पटेल नगर आवासीय योजना की आज निकलेगी लॉटरी, बस करें थोड़ा इंतजार
कई देशों में प्रतिबंध, कबूतरों को दाना डालने भी बैन
कबूतर विभिन्न बीमारियों के कारण बन सकते हैं। कई डॉक्टरों ने भी इसकी पुष्टि की है। ऑस्ट्रेलिया, अमरीका, न्यूजीलैंड, कनाडा, जर्मनी जैसे देशों के महानगरों में इन्हें पालना व सैन फ्रांसिस्को में कबूतरों को दाना डालने पर प्रतिबंध है। कबूतर जहां घर बनाते हैं उस स्थान को आसानी से नहीं छोड़ते। घर के आंगन, बालकनी या छत पर कबूतरों को दाना नहीं खिलाएं। खुले मैदान में ही इन्हें दाना डालना चाहिए। लंबे समय तक खुले में पानी भरकर न रखें।डॉ. पल्लवी शर्मा, विभागाध्यक्ष, सूक्ष्मजीव विज्ञान, कोटा विश्वविद्यालय