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समस्या 100 थी पर हार नहीं मानीं सावित्रीबाई फुले, थकी-हारी महिलाओं को ताकत देती हैं उनकी ये बातें

Savitribai Phule Jayanti 2025: सावित्रिबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षक थीं। इन पर फिल्म फुले भी आ रही है। वो पति ज्योतिराव फुले को मुखाग्नि भी दी थीं। आज हम सावित्रिबाई फुले के जीवन की खास बातों को जानेंगे।

मुंबईApr 11, 2025 / 02:19 pm

Ravi Gupta

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Savitribai Phule Jayanti: सावित्रिबाई फुले जयंती स्पेशल

Savitribai Phule: देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले थीं। सावित्रीबाई फुले के जीवन पर फिल्म (Savitribai Phule Movie) भी आ रही है फुले (Phule movie) जिसमें पत्रलेखा सावित्रिबाई की भूमिका में हैं और ज्योतिराव फुले के रोल को निभा रहे हैं एक्टर प्रतीक गांधी। फुले के ट्रेलर में दिखाया गया है कि कैसे उनपर गोबर फेंका जाता है… फिर भी वो अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने से रूकती नहीं हैं। सावित्रीबाई फुले के कई कार्य हैं जो हमें ये इंस्पायर करते हैं। हम सावित्रीबाई फुले के उन महान कामों को यहां पर पढ़ेंगे।

9 की उम्र में शादी, बनीं देश की पहली शिक्षिका

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देश की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले की कहानी
सावित्रीबाई फुले की शादी 1840 में नौ साल की उम्र में ज्योतिराव फुले से हुआ था। सोचिए, बाल विवाह होने के बाद भी वो अपने सपने को मरने नहीं दीं। इसलिए समाज की बुरी ताकतों से लड़ते हुए देश की पहली महिला शिक्षक बनीं। लड़कियों के लिए स्कूल खोला।
जबकि, वर्ल्ड बैंक (World Bank) का आंकड़ा ये कहता है कि आज की महिलाएं शादी के बाद करियर छोड़ देती हैं। रिपोर्ट में ये बताया गया है कि शादी के बाद महिलाओं की रोजगार दर में 12 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिलती है। मतलब 3 में से एक महिला ही शादी के बाद फिर से नौकरी करती है। ऐसे में सावित्रिबाई की कहानी आज की महिलाओं को ये संदेश दे रही है कि समस्याओं के साथ आगे बढ़कर ही मुकाम हासिल किया जा सकता है।

पति ज्योतिराव फुले का का मिला साथ

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करियर में आगे बढ़ने के लिए पति का साथ कितना जरूरी है। ये हमें ज्योतिराव व सावित्रिबाई की कहानी से समझ आता है। जब नौ की उम्र में वो ज्योतिराव की पत्नी बनीं तब किसी धार्मिक पुस्तक के कारण सावित्रिबाई के अंदर पढ़ने की ललक अधिक जगी। इसके बाद उन्होंने ज्योतिराव को ये बात बताई और बतौर पार्टनर ज्योतिराव ने भरपूर साथ दिया। ऐसे में पुरुषों को आगे आकर पत्नी को सपोर्ट करने की जरूरत है ताकि वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट का आंकड़ा बदले।

गोबर फेंकने पर निकाला ये उपाय

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आज भी समाज महिलाओं के लिए कितना हितकर है, ये छिपा नहीं है। ऐसे में सोचिए कि 1853 में लड़कियों/ महिलाओं के लिए स्कूल खोलना और महिला शिक्षा का अभियान चलाना कितना मुश्किल काम होगा। इसकी सिर्फ आप कल्पना कर सकते हैं। इस कारण उनपर गोबर, कीचड़ फेंके गए। ऐसे में गंदे कपड़ों के साथ वो कैसे पढ़ातीं इसलिए हमेशा कई साड़ी लेकर साथ चलती थीं और स्कूल जाकर बदलती थीं। आज की महिलाओं को भी चाहिए कि समाज की गंदगी पर चलकर मिसाल पेश करें ताकि सावित्रिबाई का सपना अधूरा ना रहे।

Video: सावित्रिबाई फुले का जीवन

पति को दी मुखाग्नि, खोदा कुंआ

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आज समाज में भी जब हम ये खबर पढ़ते हैं कि महिला ने चिता को अग्नि दी तो आपका रिएक्शन क्या रहता है। ऐसे में 1890 में सावित्रिबाई ने जब पति ज्योतिराव फुले को मुखाग्नि दी होगी तो समाज इसे पचा पाया होगा। वैसे दौर में इस तरह के कदम को उठाना कितने हिम्मत का काम होगा, जरा सोचिए। मगर, सावित्रिबाई डरी नहीं और उन्होंने समाज के इस दकियानूसी कानून को तोड़ने का काम किया। उसी तरह कुंआ पर दलितों को रोका गया तो इसका जवाब कुंआ खोदकर दिया।
सावित्रिबाई फुले के ये कार्य बताते हैं कि इंसान के जीवन में समस्याएं 100 हैं लेकिन उनका समाधान काम करने से ही निकल सकता है।

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