scriptPrimary Education: प्राथमिक स्कूलों के विलय पर बवाल, सरकार और याचिकाकर्ता आमने-सामने | UP Govt Faces Backlash Over Primary School Merger; HC Hearing Continues | Patrika News
लखनऊ

Primary Education: प्राथमिक स्कूलों के विलय पर बवाल, सरकार और याचिकाकर्ता आमने-सामने

Primary Education Policy: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्राथमिक स्कूलों के विलय के फैसले को लेकर विवाद तेज हो गया है। हाईकोर्ट में इस पर सुनवाई जारी है, जबकि कांग्रेस ने इसे बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ बताते हुए विरोध प्रदर्शन किया। सरकार का कहना है कि यह कदम बच्चों के हित और संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल के लिए है।

लखनऊJul 04, 2025 / 08:20 am

Ritesh Singh

हाईकोर्ट में सुनवाई जारी; सरकार बोली, बच्चों के हित में लिया गया फैसला फोटो सोर्स : Social Media

हाईकोर्ट में सुनवाई जारी; सरकार बोली, बच्चों के हित में लिया गया फैसला फोटो सोर्स : Social Media

Primary Education UP Govt: उत्तर प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों के विलय को लेकर विवाद लगातार गहराता जा रहा है। प्रदेश सरकार द्वारा जारी आदेश के खिलाफ याचिकाओं पर गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में सुनवाई हुई। न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार, 4 जुलाई को निर्धारित की है। वहीं, दूसरी ओर इस निर्णय के विरोध में कांग्रेस पार्टी ने लखनऊ में जोरदार प्रदर्शन करते हुए इसे बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ बताया है।

क्या है मामला: विलय का आदेश और उस पर उठे सवाल

प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षा विभाग ने 16 जून 2024 को एक आदेश जारी किया, जिसके अनुसार उन प्राथमिक स्कूलों को, जिनमें विद्यार्थियों की संख्या बहुत कम है, पास के उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में मर्ज (विलय) करने का निर्णय लिया गया है। सरकार का तर्क है कि यह कदम शिक्षा संसाधनों के बेहतर उपयोग, स्कूलों की गुणवत्ता बढ़ाने और प्रशासनिक खर्चों को नियंत्रित करने के लिए उठाया गया है।
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लेकिन इस फैसले को लेकर सीतापुर के छात्रों की ओर से याचिका दायर की गई, जिसमें कहा गया कि सरकार का यह आदेश निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम 2009 का उल्लंघन है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह मर्जर स्कूल जाने वाले छोटे बच्चों के लिए असुविधाजनक है क्योंकि उन्हें अब अधिक दूरी तय करनी पड़ेगी। बच्चों की सुरक्षा, पहुंच और पढ़ाई में बाधा जैसे गंभीर मुद्दों को उठाते हुए याचकों ने इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से क्या कहा गया

याचिकाओं की पैरवी कर रहे अधिवक्ता डा. एल. पी. मिश्र और गौरव मेहरोत्रा ने अदालत में दलील दी कि सरकार का आदेश बच्चों के शिक्षा के मूल अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। छोटे बच्चे, जो पहले मोहल्ले के स्कूल में आसानी से पढ़ने जाते थे, अब उन्हें लंबी दूरी तय करनी पड़ेगी। इससे बच्चों में स्कूल छोड़ने की दर (drop-out rate) बढ़ सकती है। साथ ही यह कदम स्थानीय समुदाय में शिक्षा के प्रति रुचि और भागीदारी को भी प्रभावित कर सकता है।
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राज्य सरकार का पक्ष,बच्चों के हित में है फैसला

आज शुक्रवार को पुनः होगी सुनवाई
सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता अनुज कुदेसिया और मुख्य स्थायी अधिवक्ता शैलेन्द्र कुमार सिंह ने अदालत में पक्ष रखते हुए कहा कि यह निर्णय पूरी तरह से बच्चों के हित में और शैक्षिक संसाधनों के कुशल उपयोग हेतु लिया गया है। जिन स्कूलों में छात्रों की संख्या अत्यधिक कम है, वहां शिक्षकों की उपलब्धता, गुणवत्ता और संसाधनों का प्रभावी उपयोग नहीं हो पा रहा था। राज्य सरकार ने यह भी कहा कि इस निर्णय के तहत शिक्षकों की संख्या, भवन की गुणवत्ता, डिजिटल सुविधाएं आदि बढ़ाई जाएंगी, जिससे छात्रों को बेहतर शिक्षा मिल सकेगी। सरकार ने यह भी आश्वासन दिया कि मर्जर के बाद किसी भी बच्चे की शिक्षा बाधित नहीं होगी और न ही किसी शिक्षक को सेवा से हटाया जाएगा।
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हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 4 जुलाई की तारीख तय की

कोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई के बाद निर्णय सुरक्षित रखते हुए अगली सुनवाई शुक्रवार 4 जुलाई को तय की है। माना जा रहा है कि यह मामला राज्यभर के हजारों प्राथमिक विद्यालयों से जुड़ा होने के कारण बेहद महत्वपूर्ण है और इसका प्रभाव व्यापक होगा।
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कांग्रेस ने किया प्रदर्शन, सरकार पर लगाया शिक्षा विरोधी होने का आरोप

सरकार के इस निर्णय के विरोध में गुरुवार को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय के नेतृत्व में लखनऊ में जोरदार प्रदर्शन और मार्च आयोजित किया गया। परिवर्तन चौक से लेकर डीएम कार्यालय तक कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने मार्च निकाला और राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन सिटी मजिस्ट्रेट को सौंपा। प्रदर्शन के दौरान कांग्रेसियों ने नारेबाजी करते हुए सरकार पर शिक्षा व्यवस्था को कमजोर करने का आरोप लगाया।
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अजय राय ने कहा, “सरकार प्रदेश में 5000 से अधिक विद्यालयों को बंद कर छोटे-छोटे बच्चों को शिक्षा से वंचित करना चाहती है। यदि यह निर्णय वापस नहीं लिया गया तो कांग्रेस राज्यभर में बड़ा आंदोलन करेगी।” प्रदर्शन में शहर कांग्रेस अध्यक्ष अमित त्यागी, जिलाध्यक्ष रुद्रदमन सिंह, शहजाद आलम, और अन्य नेता जैसे शिव पांडे, अनिल यादव, ममता चौधरी, शन्नो खान, इंदु गौतम आदि बड़ी संख्या में शामिल रहे।
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शिक्षा क्षेत्र से जुड़े कई विशेषज्ञों ने इस निर्णय पर मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। कुछ का मानना है कि मर्जर से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है यदि संसाधनों का सही तरीके से दोहन किया जाए। वहीं, दूसरी ओर कई शिक्षा विदों का कहना है कि यह निर्णय सामाजिक और भौगोलिक वास्तविकताओं को नजरअंदाज करता है, विशेषकर ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में जहां विद्यालय बच्चों के लिए उनकी पहुंच में होते हैं। इस मुद्दे पर राजनीतिक घमासान भी शुरू हो गया है। कांग्रेस जहां इसे जनविरोधी बता रही है, वहीं भाजपा इसे सुधारवादी और दूरदर्शी कदम बता रही है। आने वाले दिनों में यह विवाद और भी गहराने की संभावना है, खासकर जब तक कोर्ट अंतिम निर्णय नहीं देता।

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