Holi Celebration: ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में 10 मार्च से होगी होली की धूम, टेसू के फूलों के रंग में सराबोर होंगे भक्त
Holi 2025: वृंदावन के ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में 10 मार्च से रंगों की होली की शुरुआत होगी। द्वापर युग से चली आ रही परंपरा के तहत टेसू के फूलों से बने प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाएगा। सेवायतों ने अभी से फूलों को सुखाने की तैयारियां शुरू कर दी हैं, जिससे भक्त प्राकृतिक रंगों में सराबोर हो सकें।
Holi Banke Bihari: ब्रज क्षेत्र में होली का उत्सव अपनी अनूठी परंपराओं और उल्लास के लिए विश्वविख्यात है। यहां की लठमार होली, लड्डूमार होली, फूलों की होली जैसी विविध परंपराएं द्वापर युग से चली आ रही हैं, जो आज भी जीवंत हैं। इन परंपराओं में टेसू (पलाश) के फूलों से बने प्राकृतिक रंगों का विशेष महत्व है, जो न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि त्वचा के लिए भी लाभकारी हैं।
वृंदावन स्थित ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में होली का उत्सव बसंत पंचमी (3 फरवरी) से आरंभ हो जाता है। इस दिन ठाकुरजी को बसंती वस्त्रों से सजाया जाता है और गुलाल अर्पित किया जाता है। इसके बाद मंदिर में 40 दिनों तक होली की धूम रहती है, जिसमें भक्त अबीर-गुलाल के रंगों में सराबोर होते हैं।
टेसू के फूलों से रंग बनाने की परंपरा
होली खेलने के लिए टेसू के फूलों से रंग बनाने की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। मंदिर के सेवायत अभी से टेसू के फूलों को एकत्रित कर छाया में सुखा रहे हैं। होली से एक दिन पहले इन सूखे फूलों को पानी में भिगोकर उबाला जाता है, जिससे चटक रंग तैयार होता है। यह रंग न केवल प्राकृतिक और सुरक्षित है, बल्कि त्वचा संबंधी बीमारियों को दूर करने में भी सहायक है।
राधावल्लभ मंदिर में वसंत पंचमी से होली का उत्सव शुरू हो जाता है। हर दिन भक्त गुलाल में सराबोर होकर होली के रसिया गाते हैं और नृत्य करते हैं। मंदिर के सेवायत ठाकुरजी का प्रसादी गुलाल उड़ाकर माहौल को उल्लासमय बना देते हैं।
टेसू के फूलों के रंग का महत्व
टेसू के फूलों से बने रंग का उपयोग प्राचीन काल से होली में किया जाता रहा है। यह रंग प्राकृतिक होने के साथ-साथ त्वचा के लिए भी फायदेमंद है। रासायनिक रंगों के विपरीत, टेसू के फूलों का रंग त्वचा संबंधी बीमारियों को दूर करने में सहायक होता है और पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है।
ब्रज की होली में लठमार होली, लड्डू मार होली, फूलों की होली जैसी विविध परंपराएं शामिल हैं। इन सभी में टेसू के फूलों से बने रंगों का उपयोग किया जाता है, जो कृष्णकालीन परंपरा को जीवंत करते हैं। ब्रज की होली का यह अनूठा उत्सव देश-विदेश से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
टेसू के फूलों से रंग बनाने की विधि
टेसू के फूलों को एकत्रित कर छाया में सुखाया जाता है। होली से एक दिन पहले इन सूखे फूलों को पानी में भिगोकर उबाला जाता है, जिससे चटक रंग तैयार होता है। यह रंग न केवल प्राकृतिक और सुरक्षित है, बल्कि त्वचा संबंधी बीमारियों को दूर करने में भी सहायक है।
पर्यावरण संरक्षण में योगदान
टेसू के फूलों से बने रंगों का उपयोग पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देता है। रासायनिक रंगों के उपयोग से होने वाले प्रदूषण से बचने के लिए टेसू के फूलों से बने प्राकृतिक रंगों का उपयोग एक बेहतर विकल्प है।
ब्रज की होली का सांस्कृतिक महत्व अत्यंत गहरा है। यहां की होली की परंपराएं राधा-कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी हैं, जो भक्तों को आध्यात्मिक आनंद प्रदान करती हैं। लठमार होली, लड्डूमार होली, फूलों की होली जैसी विविध परंपराएं ब्रज की होली को विशेष बनाती हैं।
ब्रज की होली में श्रद्धालुओं की भागीदारी
ब्रज की होली में देश-विदेश से श्रद्धालु बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर, राधावल्लभ मंदिर जैसे प्रमुख मंदिरों में होली के उत्सव के दौरान भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, जो अबीर-गुलाल के रंगों में सराबोर होकर होली का आनंद लेते हैं।
टेसू के फूलों के रंग की विशेषताएं
टेसू के फूलों से बने रंग की विशेषता यह है कि यह प्राकृतिक होने के साथ-साथ त्वचा के लिए भी लाभकारी है। रासायनिक रंगों के विपरीत, टेसू के फूलों का रंग त्वचा संबंधी बीमारियों को दूर करने में सहायक होता है और पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है।
ब्रज की होली का धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। यहां की होली की परंपराएं राधा-कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी हैं, जो भक्तों को आध्यात्मिक आनंद प्रदान करती हैं। लठमार होली, लड्डूमार