रोज निकलता है शहर से 140 टन कचरा
शहर से रोज औसतन 140 टन कचरा निकलता है। इसको टोर टू टोर वाहन, ट्रैक्टर-ट्रॉली व डंपर से गाड़ी अड्डा पर एकत्रित करते हैं। यहां से वाहनों से निंबी स्थित डपिंग स्थल पर पहुंचाया जाता है। इसके अलावा शहर की ऐसी कई बस्तियां हैं जहां से कचरा नहीं उठ रहा है, ऐसी बस्तियों में भी करीब 20 टन कचरा रोजाना एकत्रित हो रहा है, जिसका उठाव नहीं हो रहा है।
स्वच्छता प्रभारी पर फोकस सिर्फ डस्टबिन पर
निगम की स्वच्छता का पूरा दारोमदार स्वच्छता प्रभारी पर रहता है। लेकिन जो भी स्वच्छता प्रभारी रहा, उसका फोकस सिर्फ दीवार लेखन व डस्टबिन सहित खरीदारी पर रहता है। स्वच्छता के नाम पर जिम्मेदारों ने कूड़ेदान कचरा गाडिय़ां समेत अन्य सामग्री खरीद पर लाखों रुपए खर्च कर दिए। पिछली साल भी शहर की एम एस रोड पर करीब 20 लाख कूड़ेदान लगाए, वह सभी टूट गए और फिर से जगह- जगह कूड़ेदान लगा दिए हैं, इनकी क्वालिटी भी काफी हल्की बताई जा रही है।
रैकिंग बढ़ाने की दिशा में हों ये प्रयास
निगम की स्वच्छता रैकिंग बढ़ाने की दिशा में कई प्रयास हैं जो हो सकते हैं। इसमें शहर में जगह जगह पसरी गंदगी के ढेर समाप्त किए जाएं। डोर टू डोर वाहनों का प्रोपर बस्तियों तक पहुंचाया जाए। शिकायत का समय पर निराकरण हो, जब भी किसी द्वारा सीएम हेल्पलाइन पर गंदगी या नाले, नालियों संबंधी शिकायत की गई, उस पर निगम का मैदानी अमला मौके पर पहुंचकर समस्या का निराकरण करे, अक्सर कार्यालय में बैठकर ही समस्या का निराकरण दिया जाता है। वहीं सीवर लाइन, गैस पाइप लाइन, चंबल वाटर प्रोजेक्ट के लिए खोदी गई सडक़ों की मरम्मत कर दी जाए, जिससे वहां पर गंदगी न फैले।
एम्बेसडर ने कहा, निगम में नहीं होती कोई सुनवाई
शहर की रैकिंग बढ़े इसके लिए हमने पूरे शहर में सर्वे किया। स्वच्छता रैली भी निकाली। शहर में पड़ी गंदगी के फोटो बगैरह समय समय पर अधिकारी, कर्मचारियों को भेजते रहते हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती। स्वच्छता की दिशा क्या कदम उठाने हैं, बताया गया लेकिन कोई सुनवाई नहीं की। वहीं सफाई दरोगाओं को पॉइंट दो तो वह सुनते नहीं हैं।
विजय जैन, ब्रांड एंबेसडर स्वच्छता, नगर निगम
शहर में धरातल पर काम नहीं होता। प्लानिंग तो की जाती हैं लेकिन उसके हिसाब से काम नहीं होता। अगर 50 प्रतिशत काम भी प्लानिंग के हिसाब से हो जाए तो काफी हद तक सुधार हो सकता है। जब सर्वे टीम के आने का समय आता है, उस पहले निगम सक्रिय हो जाता है।
रविन्द्र माहेश्वरी, व्यवसायी
निगम में अधिकारी, कर्मचारी व जनप्रतिनिधि स्वच्छता रैकिंग को लेकर वर्ष भर निष्क्रीय रहते हैं। जब सर्वे टीम आने को होती है तब कुछ दिन के लिए सक्रिय होते हैं और फिर हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाते हैं। निगम प्लानिंग से कोई काम नहीं करती।
दीपक सिंह, समाजसेवी
काम में नियमितता नहीं रहती। जब भी कोई जागरुकता का कार्यक्रम शुरू किया जाता है, उसको अंतिम पायदान तक न ले जाते हुए बीच में ही बंद कर दिया जाता है। कचरा वाहन प्रोपर बस्तियों में नहीं पहुंच रहे। इनकी मॉनीटरिंग नहीं की जाती है।
शशि कुलश्रेष्ठ, समाजसेवी
निगम में कार्य के प्रति जिम्मेदार उदासीन हैं। शहर में कहीं गंदगी है, शिकायत के बाद भी सुनवाई नहीं होती। सफाई को लेकर प्रोपर मॉनीटरिंग नहीं होती। अधिकारी प्लानिंग के हिसाब से काम करें तो निश्चित ही रैकिंग में सुधार हो सकता है।
पदमचंद जैन, एडवोकेट
फैक्ट फाइल
80 वाहन लगे हैं निगम के सफाई कार्य में गाड़ी अड्डा पर।
10 जेसीबी जिनमें चार प्राइवेट शामिल।
25 ट्रैक्टर-ट्रॉली जिनमें 15 किराए पर लगे हैं।
45 डोर टू डोर वाहन जुड़े हैं गाड़ी अड्डा से।
100 कर्मचारी तैनात हैं गाड़ी अड्डा पर।
25 से 29 लाख का डीजल लगता है वाहनों में हर महीने।
01 लाख के करीब मेंटेंनेंस पर होते हैं महीने में खर्च।
12 लाख के करीब वेतन खर्च होता है गाडी अड्डा पर तैनात कर्मचारियों पर।
600 से अधिक सफाईकर्मी तैनात हैं निगम में।
स्वच्छता रैकिंग बढ़े इसके लिए हर तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। स्वच्छता सर्वेक्षण टीम कभी भी आ सकती हैं। हमने स्वच्छता अमले को सख्त हिदायत दी है कि सफाई को लेकर कहीं से कोई शिकायत नहीं मिलना चाहिए।