वन विभाग द्वारा कराई गई गणना में कटनी में 382 गिद्ध पाए गए हैं। विजयराघवगढ़ क्षेत्र के कैमोर की पहाड़ी में 332 गिद्ध मिले हैं, इनमें सर्वाधिक संख्या इंडियन लॉंग विल्ड वल्चर, 6 इजिप्शियन वल्चर गिद्ध पाए गए हैं। कटनी में 32 गिद्ध व रीठी में 13 गिद्ध पाए गए हैं। इन गिद्धों के 192 घोंसले चट्टानों पर व दो पेड़ों पर मिले हैं। वन परिक्षेत्र अधिकारी विजयराघवगढ़ विवेक जैन ने बताया कि गिद्धों के संरक्षण के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। लोगों को और भी जागरुक किया जाएगा।
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वन विभाग द्वारा अधिकारी-कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई। सुबह 7 से 8 बजे के बीच ही घोसलों में बैठे गिद्ध की ही गणना की गई। ऑनलाइन फॉर्म भरकर जानकारी वन बिहार नेशनल पार्क को रिपोर्ट भेजी गई। इसके अलावा एक प्र्रपत्र रेंज ऑफिस, प्रपत्र दो डिवीजन ऑफिस और फिर तीसरा प्रपत्र वन बिहार भोपाल भेजा जा रहा है। वन विभाग द्वारा 2016 से गिद्धों की गणना शुरू की गई। प्रदेश में 6 हजार 999 गिद्ध थे। 2018, 2019, 2021, 2024 के अब 2025 में गणना की जा रही है। यह गणना इस साल दो बार की जाएगी। इसमें यह तय हुआ है कि बाहर से जो गिद्ध आए हैं वो गर्मी में वापस चले जाएंगे। 29 अप्रेल को गीष्मकाली गणना होगी, उससे पता चलेगा कि हमारे वास्तविक कितने गिद्ध हैं।
ये दवा साबित हुईं प्राणघातक
मोहन नागवानी ने बताया कि पशुओं के लिए उपयोग में लाई गई दवा डाइकलोफेनिक, एसिकलो फेनिक, कीटो प्रोफेन, निमोशिड गिद्धों के लिए प्राणघातक साबित हुईं। डाइकलोफेनिक 5 जुलाई 2008 को प्रतिबंधित की गई। ये चारों दवाएं पशु चिकित्सकीय उपयोग के लिए प्रतिबंधित की गई। एसिकलो फेनिक, कीटो प्रोफेन 31 जुलाई 2023 को प्रतिबंध लगाया है। निमोशिड को 30 दिसंबर 2024 को प्रतिबंधित की गई हैं। दवा कारोबारी, किसानों, पशु चिकित्सक, गौरक्षकों, आम नागरिकों को अबतक जानकारी नहीं हैं। ये तीनों दवाएं अभी भी मार्केट में मिल रही हैं। लोग इन दवाओं का उपयोग तत्काल प्रभाव से बंद करना होगा। अब बाजार में मिलासिके वल्चर दवा उपलब्ध है, जो पशुओं के लिए लाभदायक है।
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वन जीव-जंतु विशेषज्ञ समाजसेवी मोहन नागवानी ने बताया कि पूरे विश्व में 23 प्रकार के गिद्ध पाए जाते हैं, इसमें देश में 9 प्रतातियां हैं, इनमें से मध्यप्रदेश में 7 प्रजातियां हैं। प्रदेश में 4 स्थानीय हैं, इंडियन लांग विल्ड वल्चर (देशी), चमर गिद्ध, गोबर गिद्ध इजिप्शियन गिद्ध, रेड हेड (राज गिद्ध), तीन प्रजाति के गिद्ध शर्दियों में आते हैं, गर्मी में चले जाते हैं। हिमालियन ग्रेफान वल्चर, यूरोपीय ग्रेफान, सेनेरियस वल्चर (काला गिद्ध) कहलाते हैं।
ऐसे निभाते हैं सफाई मित्र की भूमिका
जितनी भी प्राकृतिक रूप से मौतें होती हैं, 70 प्रतिशत मृत शरीरों का निपटान गिद्धों द्वारा किया जाता है। 1985 में इनकी संख्या देश में 5 करोड़ थी। अब कुल 70 हजार बचे हैं। इनके न होने से अवारा श्वानों की संख्या बढ़ी है, उनके हमले भी इंसानों में हमले भी बढ़े हैं। इसका दुष्प्रभाव व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पड़ा, साथ ही आर्थिक बोझ बढ़ गया है। एंटी रैबीज वैक्सीनेशन के कारण कई सौ करोड़ रुपए का खर्च बढ़ा है। गिद्धों को प्रकृति का सफाईकर्मी इसलिए कहा जाता है, क्योंकि वे मृत जानवरों के अवशेषों को खाकर पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखते हैं। यदि मृत जानवरों के शव खुले में पड़े रहें, तो वे बीमारियों को फैलाने वाले बैक्टीरिया और विषाणुओं का स्रोत बन सकते हैं। गिद्ध इन अवशेषों को खाकर संक्रामक रोगों के फैलाव को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
जिले में गिद्धों की गणना पूरी हो गई है। कुल 382 गिद्ध मिले हैं। कैमोर में सर्वाधिक संख्या है। गिद्धों की संख्या में में बढ़ोत्तरी बताती है कि वन विभाग और संरक्षण संगठनों द्वारा किए गए प्रयास सफल हो रहे हैं। यदि यह अभियान लगातार जारी रहा, तो आने वाले वर्षों में गिद्धों की संख्या और भी बढ़ सकती है, जिससे पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में मदद मिलेगी। वन्यजीवों के प्रति विभाग संवेदनशील है।
गौरव शर्मा, डीएफओ।