देश की सरकारों ने, स्वयंसेवी संगठनों और जनता ने मिलकर इन महामारियों को प्रीवेंटिव और क्यूरेटिव अप्रोच के जरिए हरा दिया। देखा जाए तो भारत ही नहीं पूरे विश्व में ऐसी कई सामाजिक बीमारियां भी हंै। ऐसी ही एक बीमारी है, बाल विवाह। अक्षय तृतीया पर बाल विवाह के बढ़ते मामले चिंताजनक हैं। बाल विवाह एक ऐसी बीमारी है जिसने मासूम बच्चों को कैद कर रखा है। जो बाल विवाह पीडि़त है, वह यौन शोषण का भी शिकार होगा, घरेलू हिंसा का भी शिकार होगा, बाल श्रम का भी शिकार होगा। बाल विवाह के बाद छोटी लड़कियों को घरेलू कार्य करने पड़ते हैं और छोटे लड़कों को कमाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इससे उनके स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर असर होता है। एक बाल विवाह पीडि़त से आप उसके सभी बाल अधिकार छीन लेते हैं। बाल विवाह की बीमारी सिर्फ अधिकार छीनने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बीमारी पीडि़तों को उस स्तर तक एंजायटी, फ्रस्ट्रेशन और डिप्रेशन तक ले जाती है कि पीडि़त कई बार खुद अपनी जीवन लीला समाप्त करने पर आमादा हो जाते हैं।
यह बाल विवाह का शोषण कब घरेलू हिंसा, यौन शोषण, ट्रैफिकिंग और दहेज का रूप लेकर एक मासूम को जीवन नष्ट कर दे, पता ही नहीं चलता। हमने कई बार सुना है कि शिक्षा को बढ़ावा देकर और गरीबी को मिटाकर बाल विवाह का खात्मा किया जा सकता है, पर जब सामान्यत: पढ़े-लिखे संपन्न लोग ही बाल विवाह का समर्थन करें तो क्या ही कहा जाए। हम अपनी बेटियों और बेटों को शिक्षा रूपी पंख तो दे देते हैं कि अब वे उड़ान भर सकेंगे पर उनके पैरों में पड़ी बाल विवाह की बेडिय़ों को नहीं तोड़ते। तो इन बेडिय़ों के साथ कैसे वे बच्चे उड़ान भरेंगे?
बाल विवाह की बेडिय़ां जब तक नहीं टूटेंगी, तब तक शिक्षा रूपी पंखों से उड़ान संभव ही नहीं है। जैसे हर जानलेवा बीमारी को रोकथाम और उपचार के जरिए पूरी तरह से खात्मा किया जाता है, वैसे ही बाल विवाह जैसी भयानक बीमारी का खात्मा आवश्यक है। बाल विवाह से बीमार पीडि़त को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से बचाना जरूरी है। बाल विवाह बीमारी की रोकथाम के लिए बाल विवाह निरस्तीकरण या तकनीकी शब्दों में कहें तो बाल विवाह शून्यीकरण जैसे कदम बहुत उपयोगी हैं। इस प्रक्रिया यानी बाल विवाह निरस्त करने से व्यक्ति को बाल विवाह की बेडिय़ों से मुक्ति मिलती है।
यह तलाक से भिन्न है तथा इसमें न्यायालय द्वारा बाल विवाह को जिस दिन कारित किया गया था, उसे तारीख से कैंसिल किया जाता है। इसमें एक प्रकार से विक्टिम को उसके ‘डिग्निटी रिटर्न’ की जाती है। उसे शोषण से मुक्त करके पुनर्वास के जरिए नव और सुनहरा जीवन प्रदान किया जाता है। यह उन पीडि़तों के लिए आशा की किरण है जो यह सोचकर बाल विवाह की बेडिय़ों में कैद रह जाते हैं कि ‘अब कुछ नहीं हो सकता, अब बाल विवाह हो चुका है इसे ढोना ही पड़ेगा’।
एक प्रकार से बाल विवाह निरस्तीकरण वह उपचार है जिसके द्वारा हम पीडि़त के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक जीवन से बाल विवाह की बीमारी के छोटे-बड़े सभी ‘जीवाणुओं’ को पूरी तरह से खत्म कर देते हैं। पीडि़त को नया जीवन प्रदान किया जाता है। बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा – 3 प्रत्येक बाल विवाह पीडि़त को चाहे वह नाबालिग अवस्था में हो या बालिग हो या बालिग होने के 2 वर्ष तक बाल विवाह शून्यीकरण या निरस्त करने का अवसर प्रदान करती है अर्थात इस समय अंतराल के बीच यदि पीडि़त ने अपने क्षेत्र के पारिवारिक न्यायालय या जिला न्यायालय में अपने बाल विवाह को निरस्त करने का वाद प्रस्तुत कर दिया तो वह इस वैक्सीन के द्वारा अपने जीवन से बाल विवाह की बीमारी को पूरी तरह से खात्मा कर सकता है।
भारत की अगर बात करें तो 1929 से हम शारदा एक्ट के द्वारा बाल विवाह पर अंकुश लगाने की बात कर रहे हैं। 1947 में हम आजाद तो हो गए पर हमारे देश के बच्चे आज भी बाल विवाह की बेडिय़ों में कैद हैं। हम सभी तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन आज भी गांव और शहरों में मासूम बाल विवाह की बलि चढ़ जाते हैं। ऐसे में अब हमें गैर जिम्मेदार की तरह नहीं, बल्कि राष्ट्र के जिम्मेदार नागरिक की तरह बाल विवाह की बीमारी को जड़ से मिटाने के समेकित प्रयास करने होंगे। अगर कहीं बाल विवाह हो रहा हो तो उसे संबंधित विभाग या तंत्र को सूचित कर रुकवाना होगा और जो पीडि़त बाल विवाह की बीमारी से त्रस्त है उन्हें बाल विवाह निरस्त करवाकर इन पीडि़तों को नव एवं सुनहरा जीवन देना होगा।
हमारा देश पुन: सोने की चिडिय़ा तभी बन सकता है जब हमारे देश की चिडिय़ा यानी लड़कियां और लड़के बाल विवाह जैसे शोषण की बीमारी से मुक्त हों। वे तभी शिक्षा और विकास की उन्मुक्त उड़ान भर सकते हैं, जब वे बाल विवाह की इस जानलेवा बीमारी की बेडिय़ों से आजाद हों।