scriptसंपादकीय: गोल्डन आवर में इलाज, दिखावटी न बने योजना | Treatment in the golden hour, the plan should not be a sham Editorial: Treatment in the golden hour, the plan should not be a sham | Patrika News
ओपिनियन

संपादकीय: गोल्डन आवर में इलाज, दिखावटी न बने योजना

गोल्डन आवर के दौरान कैशलेस इलाज की योजना बनाने और उसको लागू करने के मामले में केंद्र सरकार की लापरवाही से भी यह साफ होता है कि सरकारें जनता की जान से जुड़ी योजनाओं को लेकर भी खास गंभीरता नहीं बरततीं।

जयपुरApr 30, 2025 / 12:52 pm

Gyan Chand Patni

तमाम प्रयासों के बावजूद देश में सड़क हादसों की वजह से हो रही मौतों में कमी नहीं आ पा रही है। गत वर्ष करीब एक लाख अस्सी हजार लोगों ने इन हादसों में अपनी जान गंवाई, जो वाकई चिंताजनक है। इन आंकड़ों से सड़क हादसों की भयावहता का साफ पता चलता है। घायलों को समय पर चिकित्सा मदद नहीं मिलने के कारण भी मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है।
सड़क हादसों को रोकने और घायलों को संभालने के मामले में सरकार की तरफ से बरती जा रही लापरवाही भी इसके लिए जिम्मेदार है। हालत यह है कि मोटर वाहन अधिनियम को लेकर सरकार गंभीर नहीं है। इस अधिनियम की धारा 162(2)के तहत केंद्र सरकार को गोल्डन आवर के दौरान कैशलेस इलाज की योजना बनानी थी, लेकिन इस मामले में घोर लापरवाही बरती गई।
एक अप्रेल, 2022 से धारा 162(2)लागू होने के बावजूद कैशलेस योजना अब तक लागू नहीं हुई है। सरकार के इस रवैये से सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई। इस तरह की योजना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार की रक्षा के लिए आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट ने सड़क दुर्घटना पीडि़तों के इलाज के लिए कैशलेस योजना बनाने में देरी पर केंद्र सरकार को फटकार तक लगाई है। कोर्ट ने कहा कि हाइवे तो बन रहे हैं लेकिन इलाज की सुविधा के अभाव में लोग मर रहे हैं।
न्यायालय की ऐसी तीखी टिप्पणी के बाद केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ‘गोल्डन आवर’ के दौरान सड़क दुर्घटना पीडि़तों के कैशलेस उपचार की योजना एक सप्ताह के भीतर अधिसूचित कर दी जाएगी। असल में सरकारें नियम-कानून बनाने में तो आगे रहती हैं, लेकिन अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के मामले में फिसड्डी होती हैं। गोल्डन आवर के दौरान कैशलेस इलाज की योजना बनाने और उसको लागू करने के मामले में केंद्र सरकार की लापरवाही से भी यह साफ होता है कि सरकारें जनता की जान से जुड़ी योजनाओं को लेकर भी खास गंभीरता नहीं बरततीं।
गोल्डन आवर वह समय होता है जब तुरंत चिकित्सा उपलब्ध करवाकर घायल की जान बचाने की सबसे अधिक संभावना होती है। विकसित देश दुर्घटना के बाद पहले घंटे के भीतर पीडि़तों को तत्काल चिकित्सा सहायता प्रदान करने के मामले में बहुत ज्यादा गंभीर हैं। यही वजह है कि वहां सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या अपेक्षाकृत कम होती है। अब जब भारत में भी गोल्डन आवर में घायलों को निशुल्क कैशलेस इलाज का रास्ता खुल रहा है, तो यह उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे घायलों की जान बचाने में मदद मिल सकेगी।
इसके बावजूद यह ध्यान रखना आवश्यक है कि योजना बनाना ही काफी नहीं होगा। घायलों को तुरंत अस्पताल पहुंचाने के लिए एम्बुलेंस और प्रशिक्षित चिकित्सा कर्मचारियों की उपलब्धता भी सुनिश्चित की जानी चाहिए। एम्बुलेंस और अस्पतालों का नेटवर्क बनाए बिना इस तरह की कोई भी योजना सिर्फ दिखावटी ही साबित होगी।

Hindi News / Opinion / संपादकीय: गोल्डन आवर में इलाज, दिखावटी न बने योजना

ट्रेंडिंग वीडियो