संपादकीय : तमिलनाडु में हिंदी विरोध की राजनीति अनुचित
नई शिक्षा नीति (एनईपी) और त्रिभाषा फॉर्मूले को लेकर तमिलनाडु में फिर विवाद गहरा गया है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन के बाद अभिनेता कमल हासन ने आरोप लगाया है कि तमिलनाडु पर ‘हिंदी थोपने’ की कोशिश की जा रही है। उनका कहना है कि वह बहुभाषी होने के पक्षधर हैं, लेकिन राज्य […]
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नई शिक्षा नीति (एनईपी) और त्रिभाषा फॉर्मूले को लेकर तमिलनाडु में फिर विवाद गहरा गया है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन के बाद अभिनेता कमल हासन ने आरोप लगाया है कि तमिलनाडु पर ‘हिंदी थोपने’ की कोशिश की जा रही है। उनका कहना है कि वह बहुभाषी होने के पक्षधर हैं, लेकिन राज्य में हिंदी को अनिवार्य करना स्वीकार्य नहीं है। तमिलनाडु के नेताओं, अभिनेताओं और दूसरे नुमाइंदों के ऐेसे तर्कों के कारण त्रिभाषा फॉर्मूला लागू करना मृगमरीचिका बना हुआ है। कस्तूरीरंगन कमेटी पहले ही सिफारिश कर चुकी है कि तमिलनाडु समेत सभी गैर-हिंदी भाषी राज्यों के सेकंडरी स्कूलों में एक क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी के अलावा हिंदी पढ़ाई जानी चाहिए।
भाषा को लेकर संकीर्ण सोच से ऊपर उठने के बजाय राज्य के नेता इस मुद्दे पर राजनीति चमकाने में जुटे हैं। तमिलनाडु में हिंदी विरोध का लंबा इतिहास है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने दक्षिण भारत में वर्ष 1918 में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना की थी। वे हिंदी को भारतीयों को एकजुट करने वाली भाषा मानते थे। तब ही तमिलनाडु में हिंदी विरोध शुरू हो गया था। ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में तमिलनाडु को मद्रास प्रेसिडेंसी कहा जाता था। तब 1937 में सी. राजगोपालाचारी की सरकार ने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य किया तो तमिलनाडु में इसके खिलाफ तीन साल तक आंदोलन चला। फैसला वापस लेने पर आंदोलन तो खत्म हो गया, पर इसने राज्य में हिंदी विरोध के जो बीज बोए थे, वे जब-तब अंकुरित होने लगते हैं। क्षेत्रीय पार्टियां राजनीतिक फायदे के लिए इन्हें खाद-पानी मुहैया कराती रहती हैं। तमिलनाडु के स्कूलों में 1967 से दो-भाषा फॉर्मूले (तमिल और अंग्रेजी) का पालन किया जा रहा है। त्रिभाषा फॉर्मूले के तहत हिंदी वहां क्षेत्रीय पार्टियों के लिए आंख की किरकिरी बनी हुई है। शिक्षा प्रणाली को आधुनिक बनाने के इस नीति के मकसद के बावजूद ये पार्टियां पुराना राग नहीं छोडऩा चाहतीं। द्रमुक की मौजूदा सरकार पर केंद्र की यह चेतावनी भी बेअसर रही कि जब तक तमिलनाडु एनईपी को पूरी तरह लागू नहीं करेगा उसे समग्र शिक्षा निधि की २१५२ करोड़ रुपए की राशि जारी नहीं की जाएगी।
तमिलनाडु सरकार हिंदी के पठन-पाठन के दरवाजे इसलिए बंद रखना चाहती है, क्योंकि उसे लगता है कि एक बार दरवाजे खुले तो राजनीति का रंग-रोगन बदल जाएगा। नई शिक्षा नीति हिंदी थोपने के बजाय विद्यार्थियों को एक अतिरिक्त भाषा सीखने का अवसर दे रही है। दक्षिणी राज्यों में त्रिभाषा फॉर्मूले का रास्ता बनाने के लिए फूंक-फूंककर कदम रखना होगा।
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