scriptपत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – विकास में भी दिखे चमक | Patrika Group Editor In Chief Gulab Kothari Special Article On 24th February 2025 On Shine Should Seen In Development | Patrika News
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पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – विकास में भी दिखे चमक

आजादी के 75 साल बाद भी हम विकास के लिए विदेशी-निवेश-तकनीक-भागीदारी पर ही आश्रित होते जा रहे हैं। हम गर्व करते हैं कि संसाधन और मजदूरी हमारी तथा उद्योग व्यापार बाहरी।

जयपुरFeb 24, 2025 / 07:44 am

Gulab Kothari

गुलाब कोठारी
आजादी के 75 साल बाद भी हम विकास के लिए विदेशी-निवेश-तकनीक-भागीदारी पर ही आश्रित होते जा रहे हैं। हम गर्व करते हैं कि संसाधन और मजदूरी हमारी तथा उद्योग व्यापार बाहरी। हमारी उच्च शिक्षा ही हमें अंधेरे में रखे हुए है। हम अपने-आप विकसित नहीं हो पाए। हमारी प्रतिभाएं विदेश जाकर सुखी हैं। अधिकारी और अभिजात्य वर्ग भी नई पीढ़ी को बाहर भेज रहा है। अधिकारी वर्ग भारतीय मानसिकता से कोसों दूर है। वे ही नीतियां बनाते हैं, उन्हें लागू भी करते हैं। इसका एक कारण हमारे जनप्रतिनिधियों में श्रेष्ठता का अभाव है। उनकी चयन प्रक्रिया जाति, वंश, वर्ग, आरक्षण आधारित है, योग्यता आधारित नहीं है। अत: विदेशी ज्ञान अंग्रेजी मानसिकता ही आज भी देश को चला रही है।
निवेशकों के लिए आयोजन भी वर्षों से होते रहे हैं। वही मुट्ठीभर उद्योगपति हर राज्य में बुलाए जाते रहे हैं, वे ही सब जगह एमओयू करते रहे हैं और वर्ष के अन्त तक पुन: अपने साधारण औसत पर लौट आते हैं। कुछ तो जमीनें खरीदकर चले जाते हैं, कुछ नीतियों से दु:खी होकर। देश में कितने उद्योगपति ऐसे हैं जो हर बार, हर प्रदेश में नया उद्योग लगा सकते हैं? शिक्षण-प्रशिक्षण-परिवहन-संचार आज भी सरकार पर निर्भर है। सरकारी स्कूलें, सरकारी नौकरियां आज भी नए युग की, देश के अनुपात में चुनौतियां झेलने की स्थिति में नहीं हैं। हाथी के दांत की तरह दिखावटी हैं। झूठ और स्वार्थ पर टिकी हैं। राष्ट्रधर्म, मानव मूल्य और चेतना के अध्याय शिक्षा से बाहर हो गए।

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अभी दिसम्बर 2024 में राजस्थान में भी निवेश समिट हुआ था। 35 लाख करोड़ के 11,628 प्रस्ताव प्राप्त हुए थे। राष्ट्रीय स्तर पर परिणाम नहीं आए तो हम ग्लोबल हो गए। मुख्यमंत्री स्तर के शीर्ष नेता विदेशों में रोड शो करें, दूतावासों से अनुरोध करें, उनके लिए कानूनों में परिवर्तन करें, देशी के नाम पर विदेशी माल (स्वदेशी निर्मित) पर हम गर्व करें, हम मजदूरी करके काम चलाते रहें, नेता वोट काटते रहें, जमीनें विदेशी खरीदें, मशीनें विदेशी। क्या बचेगा आने वाली नई पीढ़ियों के लिए। अधिक एमओयू, अधिक संसाधनों का बेचान, मानव संसाधन भी मूल में तो उनके ही काम आएंगे, जिनके उद्योग होंगे। मारुति सुजकी-एयरटेल-पेनासोनिक से लेकर ऊबर तक के लिए विदेशियों पर आश्रित हैं और गौरवान्वित भी महसूस करते हैं।
हमारा हाल यह है कि कहने को एक मुख्य सचिव राज्य का शासन चलाता है, किन्तु एक-एक विभाग में एक-एक दर्जन आइएएस मिल जाएंगे, क्लर्कों की तरह। मानों किसी काम के ही न हो। कर्मचारी तो इनके घरों में अर्दली की तरह हैं दर्जनों में। इसमें कोई विदेशी हमसे आगे नहीं निकल सकता। इस तंत्र के रहते हम अपने दम पर विकास नहीं कर सकते। न ही बजट आम आदमी तक पहुंच सकता है। हमारी स्वच्छंदता ही हमारी बेड़ियां हैं।
हमें विकसित तो दिखाई भी पड़ना है और पेट भी भरना है। अत: सारी शक्ति ग्लोबल समिट में झौंक रहे हैं। मध्यप्रदेश पिछले सालभर से संभाग स्तर पर ताकत झौंक रहा है। सड़क और बिजली तंत्र को खड़ा करने में कमर कस रखी है। सार्वजनिक परिवहन में नेताओं को दीमक जरूर लगी है, किन्तु मुख्यमंत्री आश्वस्त हैं कि किसी प्रकार की बाधा नहीं आएगी।
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राजस्थान की तर्ज पर मध्यप्रदेश के शीर्ष पुरुष विदेशों के और महानगरों के दौरों पर निकले। ‘आओ! हमारे यहां निवेश करो। हम बाजार देंगे। गारण्टी देते हैं कि चुनौती भी नहीं देंगे। आपके लिए कमाई का स्वर्ण अवसर है। देखो, हर तरफ से लोग भारत आ रहे हैं। सुरक्षित भी है, शान्त भी। संसाधन भरपूर हैं, खाली जमीन-जल-बिजली सब कुछ आपको समर्पित रहेगा। हम भी आगे बढ़ते नजर आएंगे।’
आज हमारे संसाधन नेता और अफसर लूट रहे हैं। इसका लाभ भी देश को नहीं मिल रहा। स्विस बैंकों के खातों का पेट भरता है। हमारे फाइलों का पेट भरता है। ग्लोबल निवेश समिट होते रहेंगे तो आम आदमी का पेट तो भरेगा। पीने को साफ पानी भी मिलेगा। सरकारों में अपराधियों का ही बोलबाला बढ़ रहा है। वहां तो सोने की चमक दिखती रहेगी। आने वाला ग्लोबल समिट भी लाखों-करोड़ के व्यापारियों को देश में आकर्षित करेगा, इसमें संशय नहीं है। देखना तो फिर भी है कि विकास का कितना अंश नीचे तक पहुंचता है। तंत्र वही रहेगा न! सोने का मारीच!

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