Opinion : घर खरीदारों के धन की सुरक्षा का बड़ा कदम
अपना घर किसी भी व्यक्ति की जिंदगी का सबसे बड़ा सपना होता है। इस सपने को पूरा करने के लिए वह दिन-रात एक कर मेहनत भी करता है। न केवल मेहनत करता है बल्कि अपनी जीवन भर की कमाई पूंजी को घर के सपने को पूरा करने में लगा देता है। इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड […]
अपना घर किसी भी व्यक्ति की जिंदगी का सबसे बड़ा सपना होता है। इस सपने को पूरा करने के लिए वह दिन-रात एक कर मेहनत भी करता है। न केवल मेहनत करता है बल्कि अपनी जीवन भर की कमाई पूंजी को घर के सपने को पूरा करने में लगा देता है। इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया (आइबीबीआइ) के माध्यम से ताजा निर्देश अपने घर का सपना देखने वालों की जमा पूंजी की सुरक्षा को लेकर उठाए गए बड़े कदम ही कहे जाएंगे। अब यह व्यवस्था की गई है कि बिल्डर के दिवालिया होने की सूरत में भी खरीदार को घर का कब्जा मिल सकेगा। क्योंकि यह माना गया है कि बिल्डर के दिवालिया होने में खरीदारों का दोष नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आइबीबीआइ की ओर से किए गए प्रावधानों से आम आदमी अब आश्वस्त हो सकेगा कि बिल्डर को घर के नाम पर दिए गए उसके पैसे तो सुरक्षित रहेंगे ही, उसके दिवालिया होने की नौबत आने पर भी उन्हें घर का कब्जा मिलेगा ही।
आइबीबीआइ ने अपने इस निर्णय में उस रिपोर्ट को आधार बनाया है जिसमें कहा गया है कि देशभर में हजारों की संख्या में प्रोजेक्ट रुके हुए हैं और इन प्रोजक्ट में बुकिंग करवाने वाले लाखों लोगों का घर पाने का इंतजार बढ़ता जा रहा है। इसी रिपोर्ट का एक और बिंदु यह भी है कि बड़ी संख्या में परियोजनाओं में लोगों को घरों का कब्जा तीन से चार साल विलम्ब से मिलता है। बिल्डर ऐसा जानबूझकर करते भी हैं। खरीदार से बुकिंग और फ्लैट निर्माण के अलग-अलग चरणों से मिली रकम को तय अवधि से तीन-चार वर्ष आगे तक वे इस्तेमाल करने से नहीं चूकते। इतना ही नहीं खरीदारों के पैसे से ही कई दूसरे प्रोजेक्ट तक शुरू हो जाते हैं।
जबकि देखा जाए तो ऐसे प्रोजेक्ट में मुनाफे का हकदार प्रोजेक्ट में घर बुक कराने वाला होता है। बिल्डरों के प्रोजेक्ट में देरी नहीं हो और घर बुक कराने वालों की रकम का अन्यत्र इस्तेमाल नहीं हो, इस दिशा में भी ठोस व्यवस्था करने की जरूरत है। बड़ी संख्या में ऐसे मामले भी सामने आते हैं जिनमें बिल्डर की ओर से फ्लैट या सोसायटी की बुकिंग करते समय उपभोक्ताओं से जो किए वादे या तो पूरे ही नहीं होते या फिर आधे-अधूरे होते हैं। इसमें खरीदार खुद को ठगा सा महसूस करते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य सरकारों के रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरणों (रेरा) के माध्यम से अपने घर का सपना देखने वालों को राहत देने के कई उपाय किए गए हैं। लेकिन लोगों के खून-पसीने की कमाई को सुरक्षित रखने की दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
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