सम्पादकीय : समय पर उड़ानों के लिए व्यवस्थाएं दुरुस्त हों
विमान सेवाओं में लेटलतीफी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर गत शनिवार से रविवार के बीच 900 विमानों की उड़ान में देरी से यात्रियों के सब्र का बांध टूट गया।


समय की बचत को देखते हुए आवागमन के साधनों में विमान सेवाओं को चुना जाता है। लेकिन विमानों की आए दिन देरी से उड़ान भरने की घटनाएं न केवल समय की बचत के इस उद्देश्य को ही खत्म कर रही है बल्कि यात्रियों को मानसिक रूप से प्रताडऩा झेलने की बड़ी वजह भी बनने लगी हैं। विमान कंपनियां माफी के साथ यात्रियों से उड़ान के लिए समय मांगती नजर आती हैं। विमान सेवाओं में लेटलतीफी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर गत शनिवार से रविवार के बीच 900 विमानों की उड़ान में देरी से यात्रियों के सब्र का बांध टूट गया। इस दौरान यात्रियों व विमान कंपनियों के स्टाफ के बीच झड़पें भी खूब हुईं। 68 फीसदी विमान तो घंटों देरी से उड़ान भर पाए।
एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में रोजाना करीब 10 हजार से ज्यादा उड़ानें देरी का शिकार हो रही हैं। इनमें से 1700 के करीब तो रद्द ही हो जाती हैं। वर्ष 2024 में कुल 37 फीसदी विमान सेवाएं लेट हुईं और इनमें से भी दस फीसदी से ज्यादा आधे घंटे से ज्यादा की देरी का शिकार हुईं। हालांकि हर्जाने के रूप में अधिकतर विमान कंपनियों ने यात्रियों को खाने-पीने व ज्यादा विलंब होने पर होटल की व्यवस्था कर मनाया। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि यात्रियों को जो असुविधा और मानसिक यंत्रणा भोगनी पड़ी उसकी भरपाई क्या सिर्फ इस तरह का हर्जाना भरकर ही हो सकती है। दिल्ली में विमानों की उड़ान में देरी की वजह बताई गई कि एक रन-वे बंद है। इसलिए बाकी रन-वे पर दबाव ज्यादा है। इस देरी के कारण कई यात्रियों की कनेक्टिंग फ्लाइट छूटी तो बहुत से ऐसे हैं जो अपने घर, कार्यालय या अन्य जरूरी कार्यक्रमों में समय पर पहुंचने से वंचित रह गए। अधिक रकम खर्च कर व्यक्ति विमान में इसलिए सवार होता है कि समय बच सके। लेकिन यात्रियों की बढ़ती संख्या के अनुमान में विमान सेवाओं को लेकर आधारभूत सुविधाएं और स्टाफ तक की कमी नजर आती है। शिकायत करने पर अधिकतर मामलों में विमान कंपनियों का स्टाफ मौसम में गड़बड़ी या तकनीकी कारणों को गिनाते हुएपल्ला झाड़ लेता है। लेकिन कुछ ऐसे भी कारण होते हैं जिन्हें छिपाया जाता है। ओवरबुकिंग करना, खर्च बचाने के लिए उड़ानों के यात्रियों को मर्ज करना, सुरक्षा जांच में लग रहे अतिरिक्त समय, पायलट या ग्राउंड स्टाफ की अनुपलब्धता, सामान की लोडिंग या अनलोडिंग में देरी जैसे कई कारणों को बताया ही नहीं जाता। उपभोक्ता की नजर से देखें तो यह सेवादोष का मामला भी बनता है, लेकिन अधिकांश मामलों में यात्रियों को वह जानकारी मिल ही नहीं पाती, जिस आधार पर वे उपभोक्ता की लड़ाई लड़ सकें।
कुछ ऐसे हवाई मार्ग हैं जहां विमान सेवाओं को अस्थाई बंद करना और यात्री बढऩे पर फिर शुरू कर देना भी खेल हो गया है। महाकुंभ के छोटे शहरों से भी प्रयागराज के लिए बढ़ी सेवाएं इसका उदाहरण है। विमानों की संख्या बढ़ाने और समय पर उड़ानें हों इसके लिए हर व्यवस्था को दुरुस्त करने की आवश्यकता है।
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