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विश्व पुस्तक दिवस : जहां ज्ञान की उपासना की जाती है, वह देश आगे बढ़ता है

— प्रो. मिलिंद मराठे
(अध्यक्ष, नेशनल बुक ट्रस्ट)

जयपुरApr 23, 2025 / 01:05 pm

विकास माथुर

मनुष्य के जीवन में विचारों का बड़ा महत्त्व है। विचार जीवन बदलने की शक्ति रखते हैं। विचार और भावना पुस्तकों के माध्यम से व्यक्तियों तक पहुंचती रहती है। सतत वाचन करने से व्यक्ति विचारों और भावनाओं से परिचित होता जाता है। नए-नए विचारों से समृद्ध होता रहता है। भाव-भावनाएं, आनंद, दुख, ईष्र्या, क्रोध, हताशा, प्रतिशोध वाचन के माध्यम से अनुभव कर सकता है। वाचन के माध्यम से हजारों व्यक्तियों का जीवन, अपरोक्ष रूप से ही सही, व्यक्ति जी सकता है, समझ सकता है। लेकिन जो व्यक्ति बिल्कुल पढ़ता नहीं है, वह केवल स्वयं का जीवन जीता है। व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास के लिए जीवनभर पढ़ते रहना, वाचन करते रहना अत्यंत आवश्यक है।
जिस देश का समाज, ज्ञान की उपासना करता है, वह देश आगे बढ़ता रहता है। ‘पढ़ेगा भारत तो बढ़ेगा भारत।’ पुस्तकों का यह महत्त्व है। लेकिन संपूर्ण समाज को ज्ञानवान, सहृदयी, संवेदनशील, सर्वसमावेशी बनाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति पुस्तकों को पढ़ता रहे, यह आवश्यक है। केवल कुछ लोग ही पढ़ते रहें, यह पर्याप्त नहीं है। समाज में वाचन संस्कृति का विकास होना महत्त्वपूर्ण है। यह वाचन संस्कृति अपने आप नहीं बनती। उसे उत्पन्न करना पड़ता है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति, परिवार, पाठशालाओं, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों, समाज की विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं, समूहों, सरकारों सभी को अलग-अलग उपक्रम करते हुए वाचन संस्कृति को बढ़ाना होगा। पढऩे का उत्सव मनाना होगा। पढऩा, आदत में डालना पड़ेगा।
विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस पहली बार 1995 में 23 अप्रेल को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा मनाया गया था। यह दिन प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक विलियम शेक्सपियर का जन्मदिन है। विश्व पुस्तक दिवस किताबों और पढऩे के आनंद को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है। यह दिन पढऩे की आदत को प्रोत्साहित करता है और किताबों के प्रति लोगों की रुचि को बढ़ाता है। प्रत्येक व्यक्ति अनिवार्य पठन तो करता ही है। कक्षा की पुस्तकें, नोट्स, व्यावसायिक जीवन में आवश्यक कोर्स की पुस्तकें पढ़ी जाती हैं, लेकिन मैं इसे वाचन नहीं मानता हूं। वाचन वह है, जिसे मैं मेरी इच्छा से, मात्र आनंद के लिए, स्वांत सुखाय पढ़ता हूं।
कविता, नाटक, उपन्यास, कथा, कल्पित, वास्तविक, बाल साहित्य, परा विद्या, अपरा विद्या ऐसा जो भी ऐच्छिक हो, उसे मैं पढ़ता हूं, वह ही वाचन है। वह ही व्यक्ति को सर्वार्थ से संपन्न व समृद्ध बनाता है। ऐच्छिक पुस्तक प्रतिदिन न्यूनतम दस पृष्ठ पढऩी चाहिए। लोग एक दूसरे से जब मिलते हैं तो पूछते हैं कि क्या भाई आजकल क्या कर रहे हो? हमें यह पूछना चाहिए क्या भाई आजकल क्या पढ़ रहे हो? प्रत्येक परिवार में प्रतिदिन सोने से पूर्व 15 मिनट सामूहिक वाचन और सप्ताह में एक घंटा उस पर चर्चा करनी चाहिए। आजकल माता-पिता अक्सर कहते हैं कि बच्चे पढ़ते नहीं है, हम इतना बताते हैं लेकिन सुनते ही नहीं है। सच्चाई तो यह है कि बच्चे सुनते नहीं हैं, बच्चे देखते हैं। बच्चा परिवार में अपने माता-पिता को प्रतिदिन 15 मिनट पढ़ते हुए देखेगा तो निश्चित स्वयं भी पढऩा प्रारंभ करेगा। पुस्तकों का सम्मान करने के संस्कार घर से मिलने चाहिए।
स्कूल में एकमात्र पुस्तकालय नहीं, कक्षा का ग्रंथालय होना चाहिए। प्रत्येक कक्षा में पचास से साठ पुस्तकें खुले रूप में उपलब्ध होनी चाहिए। विद्यार्थी उन्हें देख सकें, किताबों को घर ले जा सकें, सप्ताह-दस दिन में उन्हें लौटाया जा सके। ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। नई आने वाली किताबों, माह में सबसे ज्यादा पढ़ी गई किताब और नई पुस्तक जो पढऩी चाहिए, के बारे में चर्चा हो। पुस्तक गति और सटीकता से कैसे पढ़ें इसका प्रशिक्षण प्रत्येक विद्यार्थी को मिलना चाहिए। पढ़ते समय हाथ में पेंसिल होनी ही चाहिए, जिससे कठिन शब्द के अर्थ, प्रश्न, मत/कमेंट लिखे जा सकें। अक्सर हमारी नजर पुस्तक के पृष्ठ की शुरुआत से अंत तक घूमती है। उसकी जगह पंक्ति जहां से जहां तक है वही देखें तो समय बचेगा और गति बढ़ेगी। ‘द स्पीड रीडिंग बुक बाय टोनी बुजान’ या ‘हाऊ टू रीड बेटर एंड फास्टर बाय नॉर्मन लुईस’ ऐसी पुस्तकों के बारे में हमें लोगों को बताना चाहिए। शांतनु नायडू ने ‘बुकीज’ – कम्युनिटी बेस्ड रीडिंग इनीशिएटिव शुरू किया। क्या है वह?
शनिवार और रविवार को शहर के सार्वजनिक स्थानों पर मौन रूप में सामूहिक पुस्तक पढऩा, पढऩे के आनंद को पुन: प्रज्वलित करना और आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से होने वाले विचलन पर काबू पाना, इसका उद्देश्य है। आज ‘बुकीज’ मुंबई, पुणे, जयपुर और बेंगलूरु में चल रहा है। यह सभी जगह हो सकता है। स्वयंसेवी संस्थाएं इसे अपने शहर व गांव में शुरू कर सकती हैं। समग्र शिक्षा अभियान के अंतर्गत प्रत्येक राज्य अपने स्कूल लाइब्रेरीज को समृद्ध बनाकर बच्चों में पढऩे की रुचि को बढ़ाया जा सकता है। वैसे ही ग्राम पंचायत में सार्वजनिक लाइब्रेरीज को अनुदान देकर उसे समृद्ध बना सकते हैं।
सभी के भागीरथ प्रयासों से पढऩा एक उत्सव हो जाएगा। पढऩा एक सामाजिक गतिविधि होगी। फिर उसमें तंत्रज्ञान का समावेश होगा। ऑडियो बुक्स, ई-बुक्स, ऑनलाइन प्लेटफॉम्र्स से विविध विषयों की सामग्री की पहुंच अनेक व्यक्तियों तक बढ़ेगी। वाचन संस्कृति विकसित होगी। इसके विकसित होने से हमारे चरित्र, बुद्धिमत्ता, समझ और संस्कारों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और जीवनभर सीखने के लिए प्रेरित होते रहेंगे।

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