Oral Cancer: पौधा बताएगा आपको ओरल कैंसर है या नहीं, रिसर्च कर रहे CG के प्रोफेसर को मिली बड़ी कामयाबी
Oral Cancer: फार्मेसी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर मंजू सिंह, दीपेंद्र सिंह और बायोटेक्नोलॉजी के प्रोफेसर केशवकांत साहू मिलकर रिसर्च कर रहे हैं। मंजू ने बताया, इस रिसर्च का पेटेंट किया जाना है
Oral Cancer: ताबीर हुसैन. दुनियाभर के पुरुषों में तीसरे और महिलाओं मेंं पांचवें क्रम पर तेजी से होने वाले ओरल कैंसर पर रविवि के प्रोफेसर रिसर्च कर रहे हैं। उनके रिसर्च का केंद्र बिंदु औषधीय पौधा है जिसकी मदद से कैंसर की पहचान आसान हो जाएगी। फार्मेसी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर मंजू सिंह, दीपेंद्र सिंह और बायोटेक्नोलॉजी के प्रोफेसर केशवकांत साहू मिलकर रिसर्च कर रहे हैं।
मंजू ने बताया, इस रिसर्च का पेटेंट किया जाना है इसलिए अभी मेडिसीन प्लांट का नाम डिसक्लोज नहीं कर सकते। उन्होंने बताया, इस पर काम इसलिए शुरू किया गया क्योंकि छत्तीसगढ़ के रूरल क्षेत्रों में ओरल यानी मुंह का कैंसर बहुत पाया जाता है। क्योंकि गांव के लोग गुड़ाखू और तंबाकू का सेवन ज्यादा करते हैं।
Oral Cancer: रंग लगा यानी कैंसर है
मंजू ने बताया, ओरल कैंसर की पहचान इसलिए नहीं हो पाती क्योंकि यह छाले के रूप में शुरू होता है। जब समस्या बढ़ती है तब लोग डॉक्टर के पास जाते हैं। तब तक काफी देर हो चुकी होती है। हमने जो मेडिसीन प्लांट यूज किया है उसकी प्रॉपर्टी नेचुरल कलर एजेंट की होती है। कैंसर होने की स्थिति में यह मुंह के सेल लाइंस को कलर कर देता है। नॉर्मल होने पर कलर नहीं लगेगा।
मंजू बताती हैं, ओरल कैंसर की पहचान होने के बाद मेडिसीन वाले पैचेस (पट्टी) भी तैयार कर रहे हैं। हमारी कोशिश रहेगी कि यह पट्टी कम से कम 24 घंटे छाले वाले हिस्से में चिपक जाए और उसमें डाली गई दवा धीरे-धीरे चली जाए। इससे पहले हम एनिमल मॉडल्स पर भी काम करेंगे। इसमें सिंथेटिक्स ड्रग मिलाएंगे ताकि मेडिसीन के साइड इफेक्ट कम हो सकें। यह ट्रीटमेंट काफी सस्ता भी रहेगा।
जंग जीतकर दिया मैसेज- सकारात्मक सोच रखें, हार नहीं मानें
कस्तुरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय बेमेतरा की इंग्लिश टीचर शिखा विकास चौबे को ब्रेस्ट कैंसर था। उन्होंने रायपुर में इलाज कराया है। कैंसर से जंग जीत चुकी शिखा कहती हैं, मुझे कैंसर की 10 साल तक दवा लेनी है। शुगर के चलते मुझे रोजाना 4 बार इन्सुलिन लेनी पड़ती है। इतना होने पर भी मैंने जीवन का आनंद लेना नहीं छोड़ा। सालभर में मुझे 8 कीमो हुए। सिर के बाल झड़ गए इसलिए मैं विग पहनकर भी स्कूल जाती थी।
World Cancer Day 2025: मैंने अपना हौसला बरकरार रखा..
स्कूल जाने के पीछे मकसद यह था कि घर में रहने से कहीं नकारात्मकता न आ जाए। चूंकि मुझे लोगों को कैंसर से लडऩे की प्रेरणा भी देनी थी, इसलिए मैंने अपना हौसला बरकरार रखा। स्कूल में बच्चों को पढ़ाने, साथियों से मिलने और हंसी-मजाक करने से मेरा समय आसानी से कट जाता था। शिखा ने कहा कि जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़े, लेकिन हार नहीं माननी चाहिए। मुझे भी कैंसर हुआ, लेकिन मैंने हार नहीं मानी और स्कूल जाना जारी रखा। कैंसर जैसी बीमारी के समय में सकारात्मक सोच रखना बहुत जरूरी है। इससे हमें अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाने में मदद मिलती है।
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