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जब बाघिन अमरकंटक के जलेश्वर महादेव इलाके में देखी गई, तब वन्यजीव विशेषज्ञों ने
छत्तीसगढ़ के पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ सुधीर अग्रवाल से संपर्क कर इसे जल्द पकड़ने की सलाह दी। अधिकारियों ने आशंका जताई कि अगर इसे पकड़कर वापस लाया गया और यहां के किसी बाघ ने हमला कर दिया, तो स्थिति बिगड़ सकती है। इस तरह निर्णय लेने में अनावश्यक देरी होती रही।
बारनवापारा में भी लापरवाही जारी
ऐसा ही मामला बारनवापारा टाइगर रिजर्व में भी देखने को मिला, जहां आठ महीने बीत जाने के बाद भी वन विभाग एक बाघ के लिए बाघिन उपलब्ध नहीं करा पाया। नतीजा यह हुआ कि यह बाघ 40 किमी दूर कसडोल इलाके तक पहुंच गया, जहां से उसे रेस्क्यू कर गुरुघासीदास-तामोरपिंगला टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया।
सबक लेने की जरूरत?
विशेषज्ञों का मानना है कि छत्तीसगढ़ के वन विभाग को निर्णय लेने की गति तेज करनी होगी, ताकि भविष्य में इस तरह की गलतियां न दोहराई जाए। अगर समय रहते बाघिन को पकड़कर लाया जाता, तो आज यह अचानकमार टाइगर रिजर्व की शान होती। अब सवाल यह उठता है कि क्या वन विभाग इस घटना से सीख लेकर बाघ संरक्षण के लिए नई रणनीति बनाएगा? आखिरकार, जब बाघिन अमरकंटक क्षेत्र में दिखी तो मध्यप्रदेश के वन विभाग ने उसे खतरनाक मानते हुए तुरंत कार्रवाई की। बांधवगढ़ से हाथी बुलाकर बाघिन को बेहोश कर पकड़ा गया और संजय टाइगर रिजर्व में शिट कर दिया गया। इस फैसले से अब बाघिन हमेशा के लिए मप्र की हो गई और छत्तीसगढ़ के जंगलों में बाघों की संया बढ़ाने का सपना अधूरा रह गया।