फुलेरा दूज की राधा कृष्ण कथा (Phulera Dooj Ki Kahani)
ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा के अनुसार प्राचीन कथा बताती है कि द्वापर युग में जब भगवान कृष्ण गोकुल वृंदावन से मथुरा चले गए तो व्यस्तता के चलते कई दिन राधा से मिलने वृंदावन नहीं आ पाए। इससे राधा दुखी रहती थीं, इसके कारण राधा रानी की सहेलियां भी भगवान कृष्ण से रूठ गई थीं।
राधा के उदास रहने के कारण मथुरा के वन सूखने लगे और पुष्प मुरझा गए। वनों की स्थिति देखकर कृष्ण को कारण पता चल गया और वह राधा से मिलने वृंदावन पहुंच गए। श्रीकृष्ण के आने से राधा खुश हो गईं और चारों ओर फिर से हरियाली छा गई।
कृष्ण ने एक खिल रहे पुष्प को तोड़ लिया और राधा को छेड़ने के लिए उनपर फेंक दिया। राधा ने भी ऐसा ही किया। यह देख वहां मौजूद ग्वाले और गोपिकाएं भी एक दूसरे पर फूल बरसाने लगीं। तब से आज भी प्रतिवर्ष मथुरा में फूलों की होली खेली जाती है। यह घटना फुलेरा दूज यानी फाल्गुन शुक्ल द्वितीया को ही हुई थी।
फुलेरा दूज की धार्मिक मान्यताएं (Phulera Dooj Ki Manyatayen)
ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा के अनुसार फूलेरा दूज पर ब्रज की समस्त गोपियों ने राधा-कृष्ण के प्रेम की खुशी में फूल बरसाए थे, इस कारण से इस त्योहार का महत्व होता है। इसके अलावा होली से करीब पंद्रह दिन पहले शादियों का शुभ मुहूर्त समाप्त हो जाता है, जबकि फुलेरा दूज के दिन हर पल शुभ होता है।
मान्यता है कि इस दिन मथुरा में भगवान कृष्ण भक्तों के साथ फूलों की होली खेलते हैं। इसके अलावा फुलेरा दूज पर शादी करने से युगल का वैवाहिक जीवन मधुरता से भरा रहता है। इसी कारण इस दिन बिना मुहूर्त के ही शादी-ब्याह संपन्न किए जाते हैं।
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ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा के अनुसार फुलेरा दूज का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान भगवान कृष्ण के साथ रंग-बिरंगे फूलों से होली खेलने का होता है।
ब्रज क्षेत्र में इस विशेष दिन पर देवता के सम्मान में भव्य उत्सव होते हैं। घरों और मंदिरों को फूलों, रंगों और रोशनी से सजाया जाता है और भगवान कृष्ण की मूर्ति को एक सजाए गए रंगीन मंडप में रखा जाता है। रंगीन कपड़े का एक छोटा टुकड़ा भगवान कृष्ण की मूर्ति की कमर पर लगाया जाता है, जिसका प्रतीक है कि वह होली खेलने के लिए तैयार हैं।
फुलेरा दूज पर भोग बनाने की परंपरा (Bhog Lagane Ki Parampara)
ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा के अनुसार फुलेरा दूज के दिन भगवान श्रीकृष्ण के लिए स्पेशल भोग तैयार किया जाता है। जिसमें पोहा और अन्य विशेष व्यजंन शामिल हैं। भोजन पहले देवता को अर्पित किया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में सभी भक्तों में वितरित किया जाता है।
फुलेरा दूज पर गुलरियां बनाने की परंपरा (Tradition Of Making Gulariya)
ज्योतिषाचार्य शर्मा के अनुसार इस दिन गोबर से गुलरियां बनाई जाती हैं। इसके तहत महिलाएं गोबर के छोटे-छोटे गोले बनाकर, उसमें अंगुली से बीच में सुराख बनाती हैं। सूख जाने के बाद इन गुलरियों की पांच सात मालाएं बनाई जाती हैं और होलिका दहन के दिन इन गुलरियों को होली की अग्नि में चढ़ा दिया जाता है। कब है फुलेरा दूज का त्योहार
फुलेरा दूज का पर्व फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वितीया को मनाया जाता है। यह पर्व इस साल 1 मार्च 2025 को पड़ रहा है। इस दिन मथुरा वृंदावन में विशेष आयोजन होते हैं। घर और मंदिर सजाए जाते हैं।