क्षेत्र में भी बढ़ी संख्या
देश में प्रत्येक 100 में एक बच्चे में यह बीमारी होती है। क्षेत्र में भी 900 से अधिक बच्चे इसके शिकार हैं। बीमारी का पता 2 साल की उम्र में असामान्य व्यवहार से चलता है। इलाज के लिए कुछ थेरेपी और एंटीसाइकोटिक दवाएं हैं, जो असामान्य व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए होती हैं। कुछ शोधों में यह भी पता चला है कि बीमारी ठीक करने में खान-पान महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।बीमारी के बच्चों में लक्षण
अकेले चुपचाप रहना, खेलने में रूचि न लेना।कोई भी कार्य या बात को बार-बार दोहराना।
खुद को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करना।
गुस्सा और तोड़-फोड़ करना।
दूसरे की पसंद-नापसंद न समझना।
थेरेपी से बच्चों को फायदा
प्रयागराज के 9 साल के गुमसुम रहते बच्चे में ऑटिज्म का पता चला तो परिजनों ने डॉ. सुमित रावत और डॉ. मयंक जैन से संपर्क किया। डॉक्टर्स ने स्टेम सेल्स और माइक्रोबायोम की दोहरी पद्धति से इलाज किया, बच्चा अब पहले से बेहतर बोलने लगा है।अमेरिका से वापस वाराणसी आया 8 वर्षीय बच्चे में ऑटिज्म के लक्षण थे। बीएचयू के डॉक्टर पाटने ने इलाज संभव बताया। 4 माह ऑनलाइन इलाज समझाने के बाद अब बालक बोलने लगा है।
हैदराबाद का 16 साल का लड़का घर में चुपचाप बैठा रहता था, झगड़ा करता था, स्कूल से भाग जाता था। थेरेपी के बाद अब नॉर्मल है, स्कूल जाता है।
दिल्ली में 3 साल की बच्ची चुपचाप घर में बैठी रहती थी। 6 माह के ट्रीटमेंट के बाद अब वह नॉर्मल बच्चों के जैसे व्यवहार करने लगी।
डॉक्टर्स की टीम की नई थेरेपी के कारण कुछ बच्चे ठीक हो रहे हैं। हम बच्चों के शरीर के अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ाकर उपचार करते हैं, जिसका फायदा मिल रहा है और वह सामान्य बच्चों की तरह रहने लगे हैं।
डॉ. सुमित रावत, बीएसमी।