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वैदिक परंपरा के अनुसार तय करें विवाह, मर्यादा विहीन संबंध उचित नहीं : पं. किशोरदास

पत्रिका से पं. किशोरदास की खास बातचीत, उन्होंने बताया दांपत्य जीवन में हो रहे बिखराव के सवाल पर वैदिक परंपरा के अनुसार ही विवाह संबंध तय करने की बात कही।

सागरJul 04, 2025 / 04:57 pm

Rizwan ansari

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सागर . भक्तमाल कथा, गुरुपूर्णिमा महोत्सव और संतजनों का संत समागम देवराहा बाबा सिद्ध प्रांगण बम्होरी रेंगुआ में हो रहा है। भक्तों को भक्तमाल कथा का रसपान किशोरदास देव वृंदावन वाले करा रहे हैं। गुरुवार को पत्रिका से उन्होंने खास बातचीत में भक्तमाल कथा महत्व बताया। साथ ही दांपत्य जीवन में हो रहे बिखराव के सवाल पर वैदिक परंपरा के अनुसार ही विवाह संबंध तय करने की बात कही।
सवाल : भक्तमाल कथा का रसपान जरूरी क्यों, भक्तमाल कथा क्या है ?
जवाब : भक्तमाल कथा और भागवत कथा एक ही है। जहां भक्तों के चरित्र का आचार्यों ने गायन किया है। जन का कल्याण के लिए भक्तमाल कथा महान औषधि है। जैसे के रोगी को अनुपात के अनुसार औषधि दी जाती है तो उसका रोग ठीक हो जाता है। ठीक जीव जगत कल्याण के लिए भक्तमाल का रसपान करना जरूरी है। भक्तमाल की कथा का सारांश यह है कि भक्त और भगवान की सच्ची कथाएं जो भक्ति के मार्ग पर चल कर भगवान को पाने वाले भक्त रहे हैं।
सवाल : कुंडली मिलाकर विवाह के बाद भी इंदौर के राजा हत्याकांड ने सबको चौंका दिया, ऐसे में विवाह संबंध तय करने क्या जरूरी होना चाहिए?
जवाब : दांपत्य जीवन जीने और शादी विवाह तय करने के लिए हमें शास्त्रों का सहारा लेना चाहिए। वैदिक परंपरा ने जो निश्चित किया है उसके अनुसार ही जीवन जीना प्रत्येक जीव का परम धर्म है। जहां जातीयकरण है, ब्राह्मण ब्राह्मण को, क्षत्रिय क्षत्रिय को व वैश्य को वैश्य में शादी करनी चाहिए। इसी में हमें समाहित होना चाहिए। यदि हम यह नहीं करते हैं तो यह उचित नहीं है, लेकिन यह मर्यादा विहीन कार्य माना जाएगा। मर्यादा वही है जो पुरुषोत्तम भगवान राम की है।
सवाल : गुरुपूर्णिमा का पर्व आ रहा है, बच्चों को उनके जीवन में गुरु का महत्व कैसे बताया जाए ?
जवाब : सरलतम उपाय यही जहां सत्संग होते हैं वहां बच्चों को लेकर जाएं। सत्संग में श्रवण मात्र से भगवत कृपा होती है। हम कुसंग का परित्याग करते हैं, सुसंग की ओर बढ़ते हैं। बगैर सत्संग के अनुग्रह नहीं होता है। कोई भी वस्तु को जब तक श्रवण नहीं किया जाएगा हम उसका स्वरूप पहचान नहीं सकते हैं। भगवान का स्वरूप क्या है यह श्रवण करने से ज्ञात होगा। बच्चों को गुरु की महिमा बताने सत्संग में लेकर जाना होगा।

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