मधुलता ने ग्वालियर में स्कूली शिक्षा के दौरान ठेले पर नाश्ता बेचने का काम अपनी बहनों के साथ किया। जीवन के इस कठिन दौर से गुजरकर उन्होंने एमए संस्कृत एमएलबी कॉलेज ग्वालियर से किया और फिर पीएचडी तक की शिक्षा पूरी की। उच्च शिक्षा विभाग में मधुलता जैन की बतौर प्राध्यापक प्रथम नियुक्ति पिछोर में हुई, फिर भांडेर और आज वह शहर के पीजी कॉलेज में काम कर रही है। प्रोफेसर मधुलता जैन अब तक 6 विद्यार्थियों को अपने शोध मार्गदर्शन में पीएचडी करा चुकी हैं।
कोरोना काल में परिवार के चार सदस्यों को खोया, कर्तव्य निभाकर बनीं प्रेरणा
नियति की त्रासदी यह रही कि कोरोना काल में प्रोफेसर मधुलता जैन ने अपने पारिवारिक सदस्यों सास-ससुर, पति और देवर को खो दिया। खुद भी कोरोना संक्रमित होने के कारण जीवन और मृत्यु के संघर्ष से जूझतीं रहीं। बाद में वापस सामान्य जीवन में लौटने में जीवन की इस कठिन त्रासदी के बाद उन्हें काफी समय लगा, लेकिन जीवन के इतने कठिन दौर से गुजरने के बावजूद आज भी बतौर प्राध्यापक अपने कर्तव्यों को निभाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर महिलाओं के लिए प्रेरणा की केंद बिंदु बनी हुईं हैं। ये भी पढ़ें: बुरी खबर, एमपी में पेट्रोल-डीजल की इन गाड़ियों पर लगेगा बैन, मोहन सरकार ने दिए निर्देश पढ़ाई हिन्दी मीडियम से बनी इंग्लिश की प्रोफेसर
प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस शासकीय पीजी कॉलेज शिवपुरी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत डॉ पल्लवी शर्मा गोयल महिला शिक्षा के सामर्थ्य का एक प्रेरक उदाहरण हैं। इन्होंने स्कूल एजुकेशन की अपनी पूरी पढ़ाई हिंदी मीडियम से पूरी करने के बाद इंग्लिश विषय की असिस्टेंट प्रोफेसर बनीं। स्कूल से लेकर कॉलेज तक उनके जीवन में शिक्षा की प्राथमिकता का आलम यह रहा कि पल्लवी कक्षा.3 से लेकर एमए इंग्लिश पूरा करने तक हर क्लास में टॉप आती रही। बीएससी और एमए इंग्लिश में पल्लवी जीवाजी विश्वविद्यालय की गोल्ड मेडलिस्ट भी रहीं। प्रोफेसर पल्लवी शर्मा ने अपनी पीएचडी प्रोफेसर चंद्रपाल सिंह सिकरवार के शोध निर्देशन में ही पूरी की और बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर पीजी कॉलेज शिवपुरी के इंग्लिश डिपार्टमेंट में पदस्थ होने के बाद कोरोना काल में उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ऑनलाइन स्पेशलाइजेशन कंटेम्पररी रेलवेंस ऑफ शेक्सपियर्स वर्क पर किया।
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पीजी कॉलेज में ही पदस्थ प्रोफेसर शिखा झा के संघर्ष की कहानी भी बड़ी है। शिखा ने 2017 में एमपी पीएससी की परीक्षा दी और चूंकि शिखा ओबीसी वर्ग से आती है, लेकिन इसके बाद भी उन्होने अच्छी पढ़ाई करते हुए अनारक्षित वर्ग से अपनी दावेदारी पेश की। इसमें शिखा का चयन तो हो गया, लेकिन अनारक्षित वर्ग से आने के कारण कोर्ट का स्टे लगा और ज्वानिंग रुक गई। दो साल तक कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर शिखा की ज्वानिंग शासकीय पीजी कॉलेज में हुई। शिखा अपने पूरे परिवार में असिस्टेंट प्रोफेसर बनकर सार्वजनिक जीवन में कैरियर बनाने वालीं पहली महिला हैं। महिला सशक्तिकरण पर प्रोफेसर शिखा झा का कहना था कि जो सामर्थ्य व शक्ति महिलाओं के पास है, उसे पहचानना आज के समय में महिलाओं के लिए जरूरी है। अक्सर हम अपनी शक्तियों को तब तक नहीं पहचानते हैं, जब तक हमें चुनौतियों से जूझने का अवसर नहीं आता।