ट्रंप की सलाह को क्यों किया मना?
द टाइम्स ऑफ इजरायल की रिपोर्ट के मुताबिक मिस्र की राजधानी काहिरा (Cairo) में एक बैठक के बाद अरब देशों के प्रतिनिधियों ने एक ज्वाइंट स्टेटमेंट जारी किया। इनमें मिस्र, जॉर्डन, सऊदी अरब (Saudi Arabia), कतर, संयुक्त अरब अमीरात, फिलिस्तीनी प्राधिकरण और अरब लीग के विदेश मंत्री शामिल थे। इस बयान में कहा गया है कि अगर वो गाज़ा से फिलिस्तीनियों को शरण देते हैं तो इस कदम से क्षेत्र में स्थिरता को खतरा होगा, संघर्ष बढ़ सकता है और शांति की संभावनाएं कमजोर होंगी। अरब देशों ने कहा कि वे किसी भी रूप में या किसी भी हालात में फिलिस्तीनियों के इन अधिकारों से समझौता नहीं कर सकते। चाहे वो बस्तियों के निर्माण के जरिए से हो, या फिर पर कब्जा करने या जमीन को उसके मालिकों से खाली कराने के जरिए हो।
दो राज्य समाधान के लिए अमेरिका के साथ काम करने को तैयार
अरब देशों ने सिर्फ ट्रंप के इस सुझाव को अस्वीकार ही नहीं किया बल्कि कहा कि वे इस समस्या से निपटने के लिए दो राज्य समाधान के जरिए शांति स्थापित करने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के साथ काम करने को तैयार हैं। इससे पहले मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सीसी ने बीते बुधवार को ही ट्रंप के इस सुझाव को खारिज कर दिया था। अब्देल फत्ताह ने तब कहा था कि मिस्र की जनता ट्रंप के इस सुझाव पर अपनी अस्वीकृति जताने के लिए सड़कों पर उतर जाएगी। गौरतलब है कि डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले सप्ताह ये बयान दिया था कि मिस्र और जॉर्डन को गाज़ा से फिलिस्तीनियों को हटाकर अपने यहां शरण देनी चाहिए।
मिस्र और जॉर्डन को मदद रोकेगा अमेरिका?
हालांकि मिस्र का बयान आने के बाद अगले दिन गुरुवार को ही डोनाल्ड ट्रंप ने अपने इसी सुझाव को दोहराया और कहा था कि अमेरिका इन देशों के लिए बहुत कुछ करता है, और उन्हें भी ऐसा ही करना होगा। उनका इशारा मिस्र और जॉर्डन, दोनों को सैन्य सहायता समेत बड़ी अमेरिकी मदद को लेकर था। हालांकि पहले ही अमेरिका ने सभी विदेशी सहायता पर रोक लगा दी थी, लेकिन इसमें सिर्फ मिस्र और इजरायल को छूट दी थी। दरअसल गाज़ा में 15 महीने तक इजरायली बमबारी के बाद गाज़ा के 2.3 मिलियन यानी करीब 23 लाख लोग बेघर हो गए हैं। जिस पर ट्रंप ने ये बयान दिया था, लेकिन आलोचकों ने ट्रंप के इस बयान को जातीय सफाया बताया था।