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बालाघाट

विपरीत परिस्थितियों में पढ़ाई कर असिस्टेंट प्रोफेसर बने विशाल दमाहे

बचपन में खाने की दिक्कतए सिवनी व वर्धा में पढ़ाई के दौरान किया आर्थिक समस्याओं का सामना
. हर परिस्थितियों में कम नहीं होने दिया हौसलाए हमेशा रखी सकारात्मक सोच

बालाघाटJun 06, 2025 / 08:24 pm

akhilesh thakur

बचपन में खाने की दिक्कतए सिवनी व वर्धा में पढ़ाई के दौरान किया आर्थिक समस्याओं का सामना . हर परिस्थितियों में कम नहीं होने दिया हौसलाए हमेशा रखी सकारात्मक सोच

बचपन में खाने की दिक्कतए सिवनी व वर्धा में पढ़ाई के दौरान किया आर्थिक समस्याओं का सामना
. हर परिस्थितियों में कम नहीं होने दिया हौसलाए हमेशा रखी सकारात्मक सोच

बालाघाट. जिला मुख्यालय से करीब 16 किमी दूर समनापुर निवासी विशाल दमाहे अब असिस्टेंट प्रोफेसर ;सहायक प्राध्यापकद्ध बन गए हैं। उनकी इस सफलता की जानकारी के बाद घर में पिता कैलाश दमाहेए माता पुष्पा दमाहेए तीन छोटी बहने व रिश्तेदार सहित गांव में खुशी की लहर दौड़ गई है।
बतौर विशाल पहले घर में खाने की समस्या होती थी। तीन एकड़ जमीन पर पिता खेती करते। इसके अलावा आमदनी का कोई जरिया नहीं था। वर्तमान में उस खेत से 60 से 70 हजार रुपए वार्षिक कमाई हो पाती है।
विशाल ने बताया कि वर्ष 2022 में सहायक प्राध्यापक के लिए आवेदन किया था। नौ जून 2024 को परीक्षा हुई। साक्षात्कार चार मार्च 2025 को हुआ। परिणाम 30 मई को आया तो वह मप्र में 13वें नंबर पर थे। विशाल का चयन अंग्रेजी विषय के लिए हुआ है। बताया कि अब काउंसलिंग का इंतजार है। इसके बाद पोस्टिंग मिलेगी।
विशाल ने श्पत्रिका्य को बताया कि यहां तक का सफर आसान नहीं रहा। पांचवी तक पढ़ाई गांव से की। इसके बाद जवाहर नवोदय विद्यालय वारासिवनी में चयन हो गयाए जहां 12वीं तक पढ़ाई की। 12वीं पास करने के बाद पैसे के अभाव में बीए करने की सोचा और दोस्त व रिश्तेदार के सहयोग किए जाने के आश्वासन पर पीजी कॉलेज सिवनी से पढ़ाई करने चला गया। वहां पर जब आर्थिक कठिनाई हुई तो घर.घर जाकर ट्यूशन पढ़ाना शुरू किए। रहने के लिए जहां ट्यूशन पढ़ाते थेए वहीं पर एक जगह मिल गईए जहां जैसे.तैसे समय काटकर बीए की पढ़ाई पूरी की।
वर्ष 2017 में महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा महाराष्ट्र चले गए। पहले वे हिंदी विषय से एमए करना चाहते थेए लेकिन वहां जाने के बाद विशाल का मन बदला और अंग्रेजी में दाखिला लिए। बीए में विशाल का एक विषय अंग्रेजी था।
वर्ष 2019 में पढ़ाई पूरी करने के बाद वे गांव आए। उस समय उनको समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें फिर गांव में बच्चों को जुटाकर कोचिंग पढ़ाना शुरू किया। शुरुआती समय में गांव के बच्चे उनसे पढऩे नहीं आ रहे थे। पहले उन्होंने पांच बच्चों को पढ़ायाए जिसमें से दो का चयन नवोदय विद्यालय के लिए हुआ। इसके बाद उनके पास बच्चे पढऩे आने लगे।
वर्ष 2022 तक गांव में पढ़ाया कोचिंग

वर्ष 2022 तक गांव में कोचिंग पढ़ाया। उनके पढ़ाए बच्चों में पांच नवोदय विद्यालयए चार श्रमोदयए चार ज्ञानोदय व 20 बच्चे एकलव्य विद्यालय में सेलेक्ट हुए हैं। वर्ष 2020 में विशाल ने भी नेट क्वालीफाई कर लिया। वर्ष 2022 से अब तक पहले तिरोड़ी और फिर हट्टा के शासकीय महाविद्यालय में बतौर गेस्ट फैकल्टी सेवाएं दे रहे हैं।
वर्धा में भी हुई आर्थिक कठिनाई

विशाल ने बताया कि सिवनी के बाद मेरे सामने वर्धा में भी आर्थिक कठिनाई आई। एक वर्ष तक मैंने सिवनी में किए गए सेविंग से काम चलाया। इसके बाद फीस के लिए घर से पैसा लिया। खाना और रहने की व्यवस्था दोस्तों के सहयोग से किया। बताया कि सफलता के लिए कठिन परिश्रम करना अनिवार्य है। इसके साथ सकारात्मक सोचए ईश्वर पर भरोसाए मन का साफ व सच्चा होना जरूरी है। बताया कि आप जिस फिल्ड में जाना चाहते हैं। उसके प्रति मेहनत में निरंतरा बनाए रखे।
प्रतिदिन चार घंटे पढ़ाई

बताया कि मैं महाविद्यालय में पढ़ाने के अलावा प्रतिदिन चार घंटे पढ़ाई करता था। विशाल ने सफलता का श्रेय माता.पिताए बड़े पापा उदेलाल दमाहेए मौसा बंशीलाल बोहनेए कृष्ण कुमार सुलाखे। प्रोफेसर सत्येंद्र कुमार शेंडेए प्रोफेसर तेजेंद्र सिंह शिवए प्रोफेसर प्रवीण कुमार कौशलेए प्राचार्य शासकीय महाविद्यालय हट्टा मुकेश बिसेन व वर्धा के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉण् सुरेश मौर्या को दिया है। विशाल की तीन बहनों में पहली एमए कर चुकी है। दूसरी एमए कर रही है। तीसरी लॉ की पढ़ाई कर रही है।

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